Friday, 20 December 2013


टेक. विघण हरण गणराज है, शंकर सुत देवाँ
कोट विघन टल जाएगाँ,
उड़ान. हारे गणपति गुण गायाँ.....विघण हरण....
(१) शीव की गादी सुनरियाँ, ब्रम्हा ने बणायाँ
हरि हिरदें में तुम लावियाँ,
उड़ान. सरस्वति गुण गायाँ........विघण हरण.......
(२)संकट मोचन घर दयाल है, खुद करु रे बँड़ाई
नवंमी भक्ति हो प्रभु देत है
उड़ान. गुण शब्द की दाँसी ..........विघण हरण.......
(३) गण सुमरे कारज करे, लावे लखं आऊ माथ
भक्ति मन आरज करे,
उड़ान. राखो शब्द की लाज ..........विघण हरण.....
(४) रीधी सीधी रे गुरु संगम, चरणो की दासी
चार मुल जिनके पास में,

उड़ान. हारे राखो चरण आधार.........विघण हरण....
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टेक. जोगी ढ़ुढ़ण हम गया, कोई न देखयो रे भाई
(१) एक गूरु दुजो बालको, तीजो मस्त दिवानो
छोटा सा आसण बैठणा
उड़ान. जोगी आया हो नाहीँ.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(२) जोगि की झोली जड़ाव की, हीरा माणीक भरीया
जो मांगे उसे दई देणा
उड़ान. जोगी जमीन आसमानाँ.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(३) आठ कमल नौ बावड़ी, जीन बाग लगाई
चम्पा चमेली दवणो मोंगरो
उड़ान. जीनकी परमळ वासँ.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
(४) पान छाई जोगी रावठी, फुल सेज बिछाई
चार दिशा साधु रमी रया
उड़ान. अंग भभुत लगाईँ.....जोगी ढ़ुढ़णँ.....
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टेक.ऐसी भक्ति साधू मत किजीये, जग मे होय नी हाँसी
(१) अन्त काल जम मारसे
उड़ान. गल दई देग फाँसी..........ऐसी भक्ति......
(२) जो मंजारी ने तप कियो, खोटा व्रत लिना
घर से दीपक डाल के
उड़ान. आरे मूसाग्रह लिना ..........ऐसी भक्ति......
(३) जो हो लास पिघल चली ,पावक के आगे
उड़ान. ब्रज होय वहा को अंग ..........ऐसी भक्ति.....
(४) देखत का बग उजला, मन मयला भाई
आख मिची ऋषी जप करे
उड़ान. मछली घट खाई ..........ऐसी भक्ति......
(५) ग्रह ने गज को घेरिया, आरे कुंजरं दुंख पाया
हरी नाम उचारीया
उड़ान. आरे तुरंत ताल छुड़ाया ..........ऐसी भक्ति....

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टेक. तुम म्हारी नौका धीमी चलो, आरे म्हारा दीन दयाला
(१) जाई न राम थाड़ा रयाँ, जमना पयली हो पारा
नाव लावो रे तुम नावड़ा
उड़ान. आन बैगा पार उतारो............तुम म्हारी........
(२) उन्डी लगावजै आवली, उतरा ठोकर मार
सोना मड़ाऊ थारी आवली
उड़ान. रूपया न को रास ............तुम म्हारी........
(३) निरबल्या मोहे बल नही, मोहे फेरा घड़ावो राम
म्हारा कुटूंम से हाऊ एकलो
उड़ान. म्हारो घणो परिवार ............तुम म्हारी........
(४) बिना पंख को सोरटो, आरे पंछी चल्यो रे आकाश
रंग रूप वो को कुछ नही
उड़ान. लग भुख नी प्यास............तुम म्हारी........
(५) कहत कबीर धर्मराज से, आरे हाथ ब्रम्हा की झारी
जन्म.जन्म का हो दुखयारी
उड़ान. राखो लाज हमारी ............तुम म्हारी........
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टेक. भाग हमारा जागीयाँ,आरे हम पाया निदाना
(१) सतगुरू शरण हम सेईयाँ
उड़ान. खुलीयां मुक्ति का द्वारा.........भाग हमारा....
(२) भव सागर म डुबता, देखीयाँ गुरूरायाँ
बैय्याँ पकड़ के उबारियाँ
उड़ान. आहो सत नाम उचारा..........भाग हमारा......
(३) क्रिया का अंजाण आबीयाँ, निरखीयाँ अपरमपारा
हम सब सोया सतगती
उड़ान. हम न लके कोई क्यारा..........भाग हमारा....
(४) जागण जग पत पारीयाँ, धोलई रया तन सारा
चेतन शरण समावीयाँ
उड़ान. मिट्टीयाँ जन्म बिचारा............भाग हमारा.......
(५) कहती तारा हरिदास सी, मानो वचन हमारा
मन का आपा मेटजो
उड़ान. आरे खोलो निरदाना............भाग हमारा.......
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टेक. हरे नोटिस आयारे राजा राम का,

आर तामील कर लेना



(१) जमपती राजा आई बैठीयाँ,

अरे बैठीया पंख पसार

हंसराज को हो लई गया

उड़ान. लईगया स्वर्ग द्वार......नोटिस आयारे....



(२)काया सिंगारी राई आगणा, झुरी रया सब लोग

साज बाज घर बाजी रयाँ

उड़ान. उड़े रंग गुलाला........नोटिस आयारे.......



(३) माता रोवे रे थारी जलमी,

बईण वार त्योहार

तीरया रोयवे थारी तीन घड़ी

उड़ान. दुसरो घर बार........नोटिस आयारे.......



(४) कहत कबिर धर्मराज से, साहेब सुण लेणा

अन्त का परदा हो खोल के

उड़ान. जीनको अन नी पाणी........नोटिस आयारे....



टेक. म्हारा भरपुर जोगी,

तुमन जगाया जुग जागजो



(१) सोई.सोई प्राणी क्या करे,

निगुरी आव घणी निंद

जम सिराणा आई हो गया

उड़ान. आरे उबीयाँ दुई.दुई बीर.....तुमन जगाया...



(२) चुन चुनायाँ देव ढलई गया,

आरे ईट गिरी लग चार

फुल फुलियाँ रे हम न देखीयाँ

उड़ान. देख्या धरणी का माय.........तुमन जगाया.....



(३) एक फुल ऐसा फुलिया,

ँ आरे बाति मिल नही तेल

नव खण्ड उजीयारा हुई हो रयाँ

उड़ान. देखो हरी जी को खेल.........तुमन जगाया..









टेक. काया नही रे सुहाणी भजन बिन

उड़ान. बिना लोण से दाल आलोणी

...........भजन बिन.....

(१) गर्भवास म्हारी भक्ति क भूली न

बाहर हूई न भूलाणी

मोह माया म नर लिपट गयो

उड़ान. सोयो तो भूमि बिराणी......भजन बिन........

(२) हाड़ मास को बणीयो रे पिंजरो

उपर चम लिपटाणी

हाथ पाव मुख मस्तक धरीयाँ

उड़ान. आन उत्तम दीरे निसाणी......भजन बिन........

(३) भाई बंधु और कुंटूंब कबिला

इनका ही सच्चा जाय

राम नाम की कदर नी जाणी

उड़ान. बैठे जेठ जैठाणी......भजन बिन........

(४) लख चैरासी भटकी न आयो

याही म भूल भूलाणी

कहे गरु सिंगा सूणो भाई साधू

उड़ान. थारी काल करग धूल धाणी

......भजन बिन........



टेक. दुखः सुखः मन म नी लावणा,

आरे रघुनाथ नी घड़ीया

(१) हरिशचँद्र सरीका हो राजवई,

जीन घर तारावंती राणी

अपणा सत् का हो कारणा

उड़ान. भर नीच घर पाणी.........दुखः सुखः मन......

(२) नल भऊ सरीका हो राजवई,

जीन घर दमवंती राणी

अपणा सत् का हो कारणा

उड़ान. मील अन्न नही पाणी........दुखः सुखः मन...

(३) द्रोपती सरीकी हो महासती,

जीनका पांडव स्वामी

चिर दुःशासन खईचीयाँ

उड़ान. चीर पुरावे मुरारी.........दुखः सुखः मन.....

(४) सीता सरीकी हो महा सती,

जिनका रामचंद्र स्वामी

रावण कपटी लई हो गया

उड़ान. सुंदर बिलखानी.........दुखः सुखः मन......

(५) हनुमान सरीका हो महायोद्धा,

आरे बल मे बल वंता

सीता की सुद हो लावीयाँ

उड़ान. चड़े तेल लंगोटा.........दुखः सुखः मन......



टेक. माय चली कैलाश को,

आरे कोई लेवो रे मनाय



(१) पयलो संदेशो उनकी छोरी न क दिजो

उड़ान. आरे दूजा गाँव का लोग.........माय चली......



(२) तिसरो संदेशो उनका छोरा न क दिजो

उड़ान. चवथो साजन को लोग..........माय चली.......



(३) हरा निला वास को डोलो सजावो

उड़ान. उड़े अबिर गुलाल...........माय चली........



(४) कुटुंब कबिलो सब रोई रोई मनाव

उड़ान. आरे मुख मोड़ी चली माय........माय चली....



(५) बारह बोरी की उनकी पंगत देवो

उड़ान. आरे उनकी होय जय जयकार

...........माय चली......





टेक. अमर कंट निज धाम है, नीत नंहावण करणा



(१) वासेण जाल से हो निसरी,

आरे माता करण कुवारी

कल युग म हो देवी आवियां

उड़ान. कलू कर थारी सेवा.............अमर कंट.........



(२) बड़े बड़े पर्वत फोड़ के,

आरे धारा बही रे पैयाला

कईयेक ऋषि मुनी तप करे

उड़ान. जल भये रे अपारा.............अमर कंट..........



(३) पैली धड़ ॐकार है, ऐली धड़ रे मंन्धाता

कोट तिरत का हो नावणा

उड़ान. नहावे नर और नारी.............अमर कंट.........



(४)मंन्धाता के घाट पे, आरे पैड़ी लगी रे पचास

आम साम रे वाण्या हाटड़ी

उड़ान. दूईरा पड़ रे बजार.............अमर कंट.....



टेक . चलो मनवा रे जहाँ जाइयो,

आरे संतन का हो द्वार

प्रेम जल नीरबाण है

उड़ान. आरे छुटी जायगा निवासी......चलो मनवा...

(१) मन लोभी मन लालची,

आरे मन चंचल चोर

मन का भरोसाँ नही चले

उड़ान. पल.पल मे हो रोवे.........चलो मनवा........

(२) मन का भरोसाँ कछु नही,

आरे मन हो अदभुता

लई जाय ग दरियाव मे

उड़ान. आरे दई दे ग रे गोता.........चलो मनवा......

(३) मन हाथी को बस मे करे,

आरे मोत है रे संगात

अकल बिचारी क्या हो करे

उड़ान. अंकुश मारण हार.........चलो मनवा........

(४) सतगुरु से धोबी कहे,

आरे साधु सिरीजन हार

धर्म शिला पर धोय के

उड़ान. मन उजला हो करे.........चलो मनवा.....



टेक. होत आवेरो म्हारा धाम को,

गुरु न भेज्यो परवाणो



(१) हम कारज निर्माण किया,

आरे परमेश्वर को जाणु

मुल रच्यो निजधाम को

उड़ान. जाकर होय रे ठिकाणु..........होत आवेरा.....

(२) ओ सल्ला बिहार के,काई लावो रे बयाना

कस के कमर को जायगो

उड़ान. जामे साधु समाना..........होत आवेरा.......

(३) बहु सागर जल रोखीयाँ,

देव जबर निसाणी

चेहरा हो देखो निहार के

उड़ान. काहे दल को हो धाम..........होत आवेरा......

(४) नाम शब्द को राखजो,आरे बैकुंट को जाणु

सब संतन का सार है

उड़ान. चाहे होय परवाणो..........होत आवेरा......

(५) तीरुवर परवाणो कीजीये, नही देणा रे भेद

गुरु मनरंग पहिचाणिया

उड़ान. मानो वचन हमारो..........होत आवेरा......

टेक. पढ़ो रे पोपट राजा राम का,

सीता माई न पढ़ायाँ

(१) भाई रे पोपट थारा कारणा,

खासा पिंजरा बणायाँ

उसका रंग सुरंग है

उड़ान. उपर चाप चड़ायाँ..............पढ़ो रे पोपट......(२) भाई रे पोपट थारा कारणा,

खासा महल बणायाँ

ईट गीरी लख चार की

उड़ान. नर रयण नी पायाँ..........पढ़ो रे पोपट...

(३) भाई रे पोपट थारा कारणा,

खासा बाग लगायाँ

चंपा चमेली दवणो मोंगरो

उड़ान. वामे केवड़ा लगायाँ............पढ़ो रे पोपट....

(४) भाई रे पोपट थारा कारणा,

खासा कुँवा खंडाया

कुँवा खडया घणा मोल का

उड़ान. पाणी पेण नी पायाँ............पढ़ो रे पोपट....

(५) अनहद बाजा हो बाजीया, आरे सतगुरु दरबार

सेन भगत जा की बिनती

उड़ान. राखो चरण अधारँ..............पढ़ो रे पोपट....

टेक. कहा तक तोहे समझाऊ, रे मन म्हारा

(१) हाथी होय तोे शाकल मंगाऊ,

पाव म जंजीर डलाऊ

लई हो मऊत थारा सिर पर डालू

उड़ान. दई.दई अकुंश चलाऊ............रे मन म्हारा..

(२) लोहा होय तो ऐरण मंगाऊ,

उपर धमण धमाऊ

लई रे हथौड़ी जाको पत्र मिलाऊ

उड़ान. जंतर तार चलाऊ............रे मन म्हारा......

(३) सोना होय तो सुहागी मंगाऊ,

कयड़ा ताव तपाऊ

बंक नाल से फुक दई मारु

उड़ान. पाणी कर पिघळाऊ ............रे मन म्हारा....

(४) घोड़ा होय तो लगाम मंगाऊ,

उपर झीण कसाऊ

चड़ पैगड़ा ऊपर बैठू

उड़ान. आन चाबुक दई न चलाऊ.......रे मन म्हारा.

(५) ग्यानी होय तो ज्ञान बताऊ,

ज्ञान की बात सुणाऊ

कहत कबीरा सुणो भाई साधु

उड़ान. आड़ ज्ञानी से आङू ........रे मन म्हारा...

टेक. जन्म दियो रे हरी नाम ने,

आरे खुब माया लगाई

(१) मृत्यु की माया आवीया, आरे सब छोड़ी रे आस

जम आया रे भाई पावणा

उड़ान. आन मारे सोटा को मार.......जन्म दियो रे..

(२) रोवता बालक तुम न छोड़ीयाँ,

आरे माथा नई फेरीयो हाथ

दुःशमन सरीका हो देखता

उड़ान. झुरणा दई हो जाय ..........जन्म दियो रे....

(३) बारह दिन जन्मी सती,

आरे पुरण जन्म की भक्ति

नेम धरम से हो तु भया

उड़ान. कैसा उतरा हो पार..........जन्म दियो रे...

(४) कोप किया रे मन माही,

आरे घरघर आसु बहावे

हंसा की मुक्ती सुधार जो

उड़ान. गया पंछी नही आवे..........जन्म दियो रे....

(५) हस्ता बोलता पंछी उड़ी गया,

आरे मुरख रयो पछताय

झान मीरदिंग घर बाजी रया

उड़ान. सिंग बाजे द्वार.......... जन्म दियो रे....

टेक. ऐसो करम मत किजो रे सजना

गऊ ब्राम्हण क दिजो रे सजना

(१) रोम.रोम गऊ का देव बस रे,ब्रम्हा विष्णु महेश

गऊ को रे बछुओ प्रति को हो पाळण

उड़ान. क्यो लायो गला बांधी..........सजना ऐसो......

(२) दुध भी खायो गऊ को दही भी जमायो

माखण होम जळायो

गोबर गोमातीर से पवित्र हुया रे

उड़ान. छोड़ो गऊ को फंदो...........सजना ऐसो.......

(३) सजन कसान तुक जग पेरयासो,

धकील माँस म्हारो

सीर काट तेरे आगे धरले

उड़ान. फिर करना बिस्मला...........सजना ऐसो.......

(४) तोरण तोड़ू थारि मंडप मोडू

ब्याव की करु धुल धाणी

लगीण बारत थारो दुल्लव मरसे

उड़ान. थारा पर जम मरासे...........सजना ऐसो.......

(५) कबीर दास न गवा मंगाई

जल जमुना पहुचाई

हेड डुपट्टो गऊ का आसु हो पोयचा

उड़ान. चरो चारो न पेवो पाणी........सजना ऐसो....

टेक. खेती खेडो रे हरिनाम की,

जामे मुकतो हे लाभ

(१) पाप का पालवा कटावजो, काठी बाहर राल

कर्म की फाँस एचावजो

उड़ान. खेती निरमळ हुई जाय......खेती खेडो रे....

(२) आस स्वास दोई बैल है, सुरती रास लगाव

प्रेम पिराणो कर धरो

उड़ान. ज्ञान की आर लगाव.........खेती खेडो रे.....

(३) ओहम् वख्खर जुपजो, सोहम् सरतो लगाव

मुल मंत्र बीज बोवजो

उड़ान. खेती लटा लुम हुई जाय.....खेती खेडो रे..

(४) सन को माँडो रोपजो,

धन की पयडी लगाव

ज्ञान का गोला चलावजो

उड़ान. सुआ उडी.उडी जाय..........खेती खेडो रे....

(५) दया की दावण राळजो,

बहुरि फेरा नही होय

कहे सिंगा पयचाण लेवो

उड़ान. आवा गमन नी होय..........खेती खेडो रे.....







टेक. सीता राम सुमर लेवो, तजी देवो सब काम



(१) सपना की संपत भई, बाधो रे जगराज

भोर भई उठ जागीयाँ

उड़ान. जीनका कोण हवाल..........सीता हो राम......

(२) बीगर पंख को सोकटो,

उडी चलीयो रे आकाश

रंग रुप वोको कछु नही

उड़ान. वक भुख नी प्यास...........सीता हो राम.......

(३) वायो सोनो नही उपजे,

मोती लग्या रे डाल

भाग बिना नही मीले

उड़ान. तपसंया बीन हो राज..........सीता हो राम....

(४) राजा दशरथ की अयोध्या, लक्ष्मण बलवीरा

माता जीनकी हो कोशल्याँ

उड़ान. जीन जल्मीयाँ रघुबीरा.......सीता हो राम.....

(५) अनहद बाजा हो बाजीया, सतगुरु दरबार

सेन भगत जा की बिनती

उड़ान. राखो चरण आधार.............सीता हो राम.....



टेक. म्हारी मैना वंती माता,

नीर भरो थारा नैन म



(१) क्यो रे बैठा तु अनमनो,

क्यो बठीयो रे उदास

दल बादल सब चड़ीरया

उड़ान. बरसः आखण्ड धार...........नीर भरो थारा.....



(२) नही वो माता हाऊ अनमनो,

नही बठीयो रे उदास

कोई कहे रे जब हाऊ कहूँ

उड़ान. करु सत्या हो नास...........नीर भरो थारा....



(३) नही रे बादल नही बीजली,

नही चलती रे वाहल

जहाज खड़ी रे दरियाव में

उड़ान. झटका चले तलवार..........नीर भरो थारा.....



(४) मार मीठा ईनी सबक,करु पैड़ी पार

दास दलुजा बिनती

उड़ान. राखो चरण अधार............नीर भरो थारा....

टेक. ऐसी हो प्रीत निकालजो,

जग मे होय नी हाँसी



(१) बैठे बामण चन्दन घसे,

थाड़ी कुबजा हो दासी

फुल फुल्यो रे गुललाब को

उड़ान. माला गुथो हो खासी.........ऐसी हो प्रीत....



(२) राम नाम संकट भयो,

दिल फिरे हो उदासी

तुम हो देवन का देवता

उड़ान. प्रभू तुमन हो राखी.........ऐसी हो प्रीत....



(३) जल डुबन बर्तन तैरिया, गज कुजर हाथी

पथ राज्यो प्रल्लाद को

उड़ान. लाज द्रोपती राखी.........ऐसी हो प्रीत....



(४) दास दलु की हो बिनती,

राखो चरण लगाई

मृत्यू लोक कैसे जायेगा

उड़ान. मन चिंता उपजाई.........ऐसी हो प्रीत....

टेक. आणो आयो रे पारीब्रम्ह को,

सासरिया को जाणो

(१) चालो म्हारा संग की सहेलीया,

आपुण पाणी क जावा

उंडो कुवो न मुख साकरो

उड़ान. आन रेशम डोर लगावा......आणो आयो रे...

(२) चालो म्हारा संग की सहेलीया,

आपुण बाग म जावा

चंपा चमेली दवळो मोगरो

उड़ान. फूल गजरा गुथावा...........आणो आयो रे.....

(३) चालो म्हारा संग की सहेलीया,

आपुण शीश गुथावा

कछु गुथा न कछु गुथणा

उड़ान. मोतीयाँ भांग सवारा........आणो आयो रे......

(४) चालो म्हारा संग की सहेलीया,

आपुण चोली सीलावा

कछु सीवी न कछु सीवणा

उड़ान. चोली अंगा लगावा...........आणो आयो रे......

(५) कहत कबीर धर्मराज से, साहेब सुण लेणा

सेन भगत जा की बिनती

उड़ान. राखो चरण आधार...........आणो आयो रे.....

टेक. मन भवरा तो लोभीया, माया फुल लोभाया

चार दिन का खेलणा

उड़ान. मीट्टी में भील जाणा.............मन भवरा......

(१) उगो दिन ढल जायेगा,

फुल खिल्या रे कोमलाया

चड़ीयाँ हो कलश मंदिर म

उड़ान. आसा जम मारीयाँ जाय ..........मन भवरा....

(२) कीनका छोरा न किनकी छोरीया,

किनका माय नी बाप

अन्त म जाय प्राणी एकलो

उड़ान. संग म पुण्य नी पाप.............मन भवरा......

(३) यहा रे माया के फंद को,

भरमी रयो दिन रात

म्हरो.२ करतो प्राणी मरी गया

उड़ान. मिट्टी मांस का साथ.............मन भवरा......

(४) छत्रपति तो चली गया, गया लाख करोड़

राजा करता तो नही रया

उड़ान. जेको हुई गयो खाक.............मन भवरा......

(५) पींड गया काया झरझरी, जीन हुई गया नाश

कहत कबीरा धर्मराज से

उड़ान. निर्मल करी लेवो मन.............मन भवरा......

टेक. कोई नी मिल्यो म्हारा देश को,

हारे केक कहूँ म्हारा मन की



(१) देश पति चल देश को,

हारे उने धाम लखायाँ

चिन्ता डाँकन सर्पनी

उड़ान. काट हुंडी लाया...............कोई नी........

(२) मन को चहु दिशा छोड़ दे,

साहेब ढूँढी कावे

ढूँढे तो हरि ना मिले

उड़ान. हारे घट में लव लावे...............कोई नी.......

(३) लाल कहू लाली नही, जरदा भी नाही

रुप कहु तो हैं नही

उड़ान. हारे व्यापक सब माही...............कोई नी.......

(४) पाणी पवन सा पतला, जैसे सुर्या को धाम

जैसे चंदा की हो चाँदनी

उड़ान. हारे साई हैं मेरो राम...............कोई नी.......

(५) पाव धरन को जगह नाही,

हारे मानो मत मानो





टेक. दया करो म्हारा नाथए

हुँउ रे गरीब जन ऐकलो



(१) अठ्ठारह भार वनस्पति फलियाँ,

हारे फुले डाल म डाल

वाही म चन्दन ऐकलो

उड़ान. जाकी निरमल वाँस........... हुँउ रे गरीब......

(२) कई लाख तारा झरमीयाँ,

गगन अस्मान बीच

वाही म चन्दाँ ऐकलो

उड़ान. जाकी निर्मल जोत........... हुँउ रे गरीब......

(३) अन्न ही चुगता चुगीरया,

हारे पंछी पंख पसार

वाही म हंसा ऐकलो

उड़ान. हारे मोती चुग-चुग खाय......हुँउ रे गरीब...

(४) कहेत कबीर धर्मराज से,

साहेब सुण लिजै

मिलती ते परदा खोल के

उड़ान. हारे आपणो कर लिजो.......हुँउ रे गरीब......





टेक. सोंहग बालो हालरो,

हारे निरमळ थारी जोत



(१) नदी सुक्ता के घाट पर, बैठे ध्यान लगाई

आवत देखीयो पींजरो

उड़ान. हारे लियो कंठ लगाई..........सोंहग बाला...

(२) सप्त धातु को पींजरो,

हारे पाठ्याँ तिन सौ साठ

एक कड़ी हो जड़ाँव की

उड़ान. वा पर कवि रचीयो ठाट........सोंहग बाला...

(३) आकाश झुलो बाँधियाँ,

हारे लाग्या त्रिगुण डोर

जुगत सी झलणो झुलावजो

उड़ान. हारे झुले मनरंग मोर..........सोंहग बाला...

(४) नही रे बाला तू सुतो जागतो,

बिन ब्याही को पुत

सदाशीव की शरण म आयो

उड़ान. हारे झल बाँझ को पुत..........सोंहग बाला...

(५) अणहद घुँघरु बाजियाँ, अजपा का मेवँ

अष्ट कमल दल खिली रयाँ

उड़ान. हारे जैसे सरवर मेवँ ..........सोंहग बाला...

टेक. अन्त नी होय कोई आपणा,

समझी लेवो रे मना भाई



(१) आप निरंजन निरगुणा हारे सगुण तट ठाढा

यही रे माया के फंद में

उड़ान. नर आण लुभाणा..............अन्त नी.........

(२) कोट कठिन गड़ चैढ़ना, दुर है रे पयाला

घड़ियाल बाजत पहेर का

उड़ान. दुर देश को जाणा..............अन्त नी.........

(३) कल युग का है रयणाँ,

कोई से भेद नी कहेणा

झिलमील झिलमील देखणा

उड़ान. मुख में शब्द को जपणा............अन्त नी......

(४) भवसागर को तैर के,

किस विधी पार उतरणा

नाव खड़ी रे केवट नही

उड़ान. अटकी रहयो रे निदाना...........अन्त नी........

(५) माया का भ्रम नही भुलणा,

ठगी जासे दिवाणा

कहेत कबीर धर्मराज से

उड़ान. पहिचाणो ठिकाणाँ..............अन्त नी.........

टेक. जोगी ढ़ुढ़ण हम गया,

कोई न देखयो रे भाई



(१) एक गूरु दुजो बालको, तीजो मस्त दिवानो

छोटा सा आसण बैठणा

उड़ान. जोगी आया हो नाही............जोगी ढ़ुढ़ण...



(२) जोगि की झोली जड़ाव की,

हीरा माणीक भरीया

जो मांगे उसे दई देणा

उड़ान. जोगी जमीन आसमाना...........जोगी ढ़ुढ़ण...



(३) आठ कमल नौ बावड़ी, जीन बाग लगाई

चम्पा चमेली धवळो मोंगरो

उड़ान. जीनकी परमळ फास............जोगी ढ़ुढ़ण...



(४) पान छाई जोगी रावठी, फुल सेजा बिछाई

चार दिशा साधु रमी रया

उड़ान. अंग भभुत लगाई............जोगी ढ़ुढ़ण......





टेक. नीकल चले दो भाई रे बन को

(१) अभी मोरे आगणा म राम रमता,

रमी रयाँ जोगी की लार

माता कोशल्याँ ढुढ़ण नीकली

उड़ान. अन खोज खबर नही आई रे.......बन को...

(२) आगे आगे राम चलत है, पिछे लक्ष्मण भाई

जिनके बीच मे चले हो जानकी

उड़ान. शिभा वरनी न जाई रे.......बन को...

(३)राम बिना म्हारो रामदल सुनो, लक्ष्मण बीना ठकूराई

सीता निना म्हारी सुनी रसवाई

उड़ान. अन कुण कर चतुराई.......बन को...

(४) हारे श्रावण जरजे, भादव बरसे, पवन चले पखा

कोण झाड़ निच भीजता होयगँ

उड़ान. राम लखन सीता माई रे.......बन को...

(५) भीतर रोवे माता कोशल्या, बाहर भारत भाई

राजा दशरथ ने प्राण तजो हैं

उड़ान. अन कैकई रई पछताई रे.......बन को...

(६) हारे गंगा किनारे मगन भया रे, वहा आसण दियो लगाई

तुलसीदास आशा रभुवर की

उड़ान. अन मड़ीयाँ रहि बन्दवाई रे.......बन को...

टेक. दई से हो हंसा निकल गया,

हंसा रयण नी पाया



(१) पाँच दिन का पैदा हुआ,

घटीन की करी तैयारी

आधी रात का बीच म

उड़ान. लिखी गई हौ लेख..............दई से.....



(२) सयसर नाड़ी बहोत्तर कोटा,

जामे रहे एक हंसा

काडी मोडी को थारो पिंजरो

उड़ान. बिना पंख सी जाय ..............दई से.....



(३) चार वेद बृम्हा के है, सुणी लेवो रे भाई

अंतर पर्दा खोल के

उड़ान. दुनिया म नाम धराई..............दई से.....



(४) गंगा यमुना सरस्वती जामे है जल नीर

दास कबिर जा की बिनती

उड़ान. राखौ चरण आधार..............दई से.....





टेक. मै बंजारो हरि नाम को,

लेतो हरि जी को नाम

(१) गगन मंडल म घर तेरा,

भवसागर म दुकान

सौदा ही सौदा करे

उड़ान. मस्त लगी रे दुकान..........मै बंजारो........



(२) मन तुम्हारी ताकड़ी, तन है तेरी दीर

सुरत मुरत हुंडी बणी

उड़ान. मन चाहे को मोल..........मै बंजारो........



(३) झुम लहेर नदिया बहे, नगिया अगम अपार

कर्मी धर्मी पार हुये

उड़ान. पापी डूबे मझधार..........मै बंजारो........



(४) कहत कबीर धर्मराज से, साहेब सुण लेणा

सेन भगत जा की बिनती

उड़ान. राखो चरण आधार..........मै बंजारो........





टेक. भक्ती भरमणा दुर करो, ठगाई नही जाणा



(१) कायन की साधु गोदड़ी,

कायन का हो धागा

कोण पुरुष दर्जी भया

उड़ान. कुण सिवण लाग्या.............भक्ती.........

(२) हवा की बणी साधु गोदड़ी,

पवन का हो धागा

मन सुतार दर्जी भया

उड़ान. आसा ऊ सिवण लाग्या.............भक्ती.........

(३) काहाँ से रे पवन पधारिया,

कहा से आया रे पाणी

कहा से आई स्वर्ग स्याणी

उड़ान. कब से कळु हो छपाणी.............भक्ती.........

(४) आगम पवन पधारिया, पीछम आया रे पाणी

बीच मे आई स्वर्ग स्याणी

उड़ान. जब से कळु हो छपाणी.............भक्ती.........

(५) धवळो घोड़ो रे मुख आसळो,

मोती जड़ीया रे पयाल

चंदा सुरज दुई पेगड़ा

उड़ान. आरे स्वामी हूया असवार.............भक्ती.........

टेक. चलो पंक्षी सब पावणा,

घुँग बाई को छे ब्याव



(१) मिनी बाई माता पर टोपलो,

हारे मिनी बाई चली रे बाजार

खारीक खोपरा मिनी बाई लाईयाँ

उड़ान. सईयों चावा रे पान...........चलो पंक्षी.....



(२) मिनी बाई बाजार से घर आईया,

ऊदरो पुछ हिसाब

एतरा म आया कुतराँ जेट जी

उड़ान. मिनी बाई भाँग ऊबी वाँट.........चलो पंक्षी...



(३) हाड़ीयाँ न डोल बजावीयाँ,

कबुतर नाच बतावे

काबर वर मायँ बणी गयाँ

उड़ान. चीड़ीयाँ गावे हो मँजला...........चलो पंक्षी....



(४) घुस ने मंटी खोरीया, डेडर कर रे गीलावों

मयना ने काम लगावीया

उड़ान. कोयल आई वई दवड़...........चलो पंक्षी.....

टेक. कब के भये बैरागी कबीर जी,

कब के भये बैरागी

उड़ान. आदि अंत से आएँ गोरख जी,

जब से भये बैरागी



(१) जल्में नही जब का जनम हमारा,

नही कोई जग में नांही

पाव धरण को धरती नाही

उड़ान. आदी अंत से लय लागी.......जब से.....

(२) धन्धो कार कहुकानी मेला,

वही गुरु वही चैला

जब से हमने मंड मड़ायाँ

उड़ान. आप ही आन अकेला.......जब से.....

(३) सतजुग पेरी पाव पवड़ियाँ,

द्वापूर लीयाँ उड़ा

त्रिताजुग म अड़बद कसियाँ

उड़ान. कलूम फिरीयों नव फेडा.......जब से.....

(४) राम भया जब टोपी सिलाई,

गोरख भया जब टीका

तासे जब का हो गया मेला

उड़ान. अंत से सुरत लगाई.......जब से.....





टेक. मानो बचन हमारो रे,राजा,

मानो बचन हमारो



(१) भिष्म करण दुर्योधन राजा,

पांडव गरीब बिचारा

पाचँ गाँव इनको दई देवो

उड़ान. बाकी को राज तुम्हारो.........मानो बचन.....



(२) गड़ गुजरात हतनापुर नगरी,

पांडव देवो बसाई

दिल्ली दंखण दोनो दिजो

उड़ान. पुरब रहे पछवाड़ो.........मानो बचन.....



(३) किसने तुमको वकील बनाया,

कोई का कारज...जरा

राज काज की रीती नी जाणो

उड़ान. युद्ध करी न लई लेवो.........मानो बचन.....





टेक. कबीरो किन भरमायो, अम्माँ महारो



(१) कबीरा की औरत कहती सासु सेए

ऐसो पुत्र क्यो जायो

खबर हुती मख नीच काम की

उड़ान. ब्याव काहै को करती.........अम्माँ.......



(२) कबीरा की माता कहती कबीर से

तुन म्हारो दुध लजायो

खबर हुती मख गर्भवाँस की

उड़ान. दुध काहे को पिलाती.........अम्माँ.......























टेक. क्यो रोवे मोरी माई हो ममता

क्यो रोवे मोरी माई



(१) पाँच हाथ को कफन बुलायो,

अप दियो झपाई

चार वेद चैरासी लीजियो

उड़ान. उपर लीयो उठाई........... ममता......

(२) लाख करोड़ माया हो जोड़ी,

कर कर कपट का माही

नही तुन खाई, नही तुन खरची

उड़ान. रई गई धरी की धरी........... ममता......

(३) भाई बन्धू थारो कुटूम कबीलो,

सबई रोवे रे घर बार

छोरि हो तीरीया तीन दिन रोवे

उड़ान. दूसरो कर घर बार........... ममता......

(४) हाड़ जल जसी बंध कीहो लकड़ी,

कैश जल जसो घाँस

सोना सरीकी थारी काया हो जल

उड़ान. कोई नी थारा पास........... ममता......



टेक. चली गई माल दुलारी तजी न थारी

उड़ान. सोयो पाव पसारी तजी न थारी

(१) जिसकी जान थारा पास नही रे,

सोना क दियो रे गमाई

भरम भंभू का उठण लाग्या

उड़ान. नोटीश प नोटीश जारी.......तजी न थारी...

(२) बृम्ह कोठरी बृम्ह का वासा,

गीत का मुजरा लेई

नव नाड़ी और बावन कोठड़ी

उड़ान. अंत बिराणी होय .......तजी न थारी...

(३) जब हो दिवानी ने दफ्तर खोला,

नही शरीर नही श्वास

माता छटी ने डोर रचीयो है

उड़ान. रती फरक नही आव.......तजी न थारी...

(४) हिम्मत का हाल टुटी गया रे, रयि हमेशा रोई

सतगुरु राखा अभी ले जाजो

उड़ान. नही तो चैरासी का माही.....तजी न थारी..

(५) कहत कबीर सुणो भाई साधो,

यो पद है निरबाणी

यही रे पंथ की करो खोजना

उड़ान. रही जासे नाम निसाणी

टेक. म्हारा संत सुजान

ध्यान लग्यो न गुरु ज्ञान सी

(१) ज्ञान की माला फेर जोगी,

बंद में धुणी तो रमावे

जोगी की झोली जड़ाव की

उड़ान. मोती माणक भरीया.........ध्यान लग्यो......

(२) बड़े बड़े भवर गुफा में,

जोगी धुणी तो रमावे

जेका रे आंगणा म तुलसी

उड़ान. जेकी माला हो फेर.........ध्यान लग्यो......

(३) चंदन घीस्या रे अटपटा,

तिलक लीया लगाय

मोहन भोग लगावीया

उड़ान. साधु एक जगा बैठा.........ध्यान लग्यो......

(४) कई ऋषि मुनी तप करे,

इना पहाड़ो का माई

अब रे साधु वहा से चल बसे

उड़ान. गया गुरुजी का पास.........ध्यान लग्यो......

(५) गंगा जमुना सरस्वती, बेव रेवा रे माय

जीनका रे नीरमळ नीर हैं

उड़ान. साधु नीत उठ न्हाये.........ध्यान लग्यो......

टेक. डोलो सजायो रे राई आंगणा,

तिरीया हल्द लगावे



(१) यम न झंडा रोपीया,

रोपीया काया का माय

कुट सके तो लुट ले

उड़ान. लुट लिया हो बाजार...........डोलो......

(२) बम का बाजा बजी रया, बजी रया रनवास

सखीयन मंगल गावियाँ

उड़ान. हुई रई जय जय कार...........डोलो......

(३) हाथ म कंडो रखी लियो, पाछ रड़ परिवार

बिच म काया जाई रई

उड़ान. गई स्वर्ग द्वार...........डोलो......

(४) भाई रे बंधू थारो आई गया,

सजी धजी रे बारात

भाई रोव न वोकी तिरीया

उड़ान. चला रेवा का माय ...........डोलो......

(५) रेवा जी के घाट पर, सल दियो हो रचाय

आग लगाई न पाछा आविया

उड़ान. पाणी अंग लगाय ...........डोलो......



टेक. पति क्यो बैठया उदास रात दिन

कई देवो दिल की बात

(१) पति कहे तीरीया से, तुमको कभी नई कण

तीरीया मन में कभी नही राखे

उड़ान. या खोटी तीरीया को साथ.......रात दिन....

(२)हट पड़ी तीरीया नही माने, अन जरा नही खाये

सब तीरीया तो काई हो सार की

उड़ान. कब कई दिल की बात.......रात दिन....

(३) मणीया बाद भाई गयो रे बाद म,

नही कोई संग सगाली

म्हारा मन म ऐसी आवे

उड़ान. वा करी कृष्ण न घात.......रात दिन....

(४)इतनी बात सुणी तीरीया न,रात को नींद नी आई

सोचत सोचत रैन गवाई

उड़ान. फिरी हुयो परभात.......रात दिन....

(५)घर को धंधो सबई छोड़यो, दबड़ी न पनघट आई

सब सखीयाँ तो बराबरी

उड़ान. वहाँ कही दिल की बात.......रात दिन....

(६)तुक देखी न मन बात कई, तु मती कोई क कैसे

कान कान बा बात चली रे

उड़ान. वा गई कृष्ण का पास.......रात दिन....



टेक. बीरथा जलम हमारो गुरुजी म्हारो



(१) एक क्षण खोया दूजा क्षण खोया,

तीजा म सरण आयो

वन में तो गाय चराये

उड़ान. जंगल बास कियो..........गुरुजी म्हारो.....



(२) राज पाट धन माल सब त्यागू,

म्हारा रे कंठ प्राण आयो

चरण धोवो रे चरणामत लेवो

उड़ान. चलत आयो गस्त..........गुरुजी म्हारो.....



(३) झट मनरंग न गोद उठायो,

मस्तक हाथ फेरयो

राम नाम का शब्द सुणा रे

उड़ान. राम नाम लय लागी..........गुरुजी म्हारो.....











टेक. भीम हरकतो आयो रे राजा

उड़ान. गोकुल से लायो रे राजा.........भीम...



(१) पाँचो पांडव बैठीया महेलम,

बीच म कोटमा माय

पहला सगून तो हुआ रे मुझको

उड़ान. यदुपति दर्शन पावो रे राजा.........भीम...

(२) बहुत प्रेम से पुछण लाग्यो,

कैसी भाई बिम्बाई

जात सी तो भोजन पाया

उड़ान. मोये दियो विश्वास रे राजा.........भीम...

(३) रली मुझसे पुछण लाग्यो,

अली की रे विपता बताई

रभ्यु वचन मुझसे ऐसो सुणायो

उड़ान. बारह बरस वन जाओ रे राजा.........भीम...

(४) हतनापुर से मालुम हुई,

भीम नायळ दई आया

दास धनजी को स्वामी सावळीयो

उड़ान. राखो लाज रघुराई रे राजा.........भीम...





टेक. सतवन्ती न क्यो लायो पीया रे,

कोण हरी लई जाय



(१) कहती मन्दोदरी सुण पीया रे,

या बुथ कहा सी लायो

इनी रे बुथ क भीतर राखो

उड़ान. ओ तपसी दो भाई......पीया रे सतवन्ती...

(२) कहता रे रावण सुण मंदोदरी,

काय को करती बड़ाई

दस रे मस्तक बीस भुजा है

उड़ान. जे क तो बल बताऊ......पीया रे सतवन्ती...

(३) कहती मन्दोदरी सुण पीया रावण,

क्यो करतो राम सी बुराई

चरण धोवो चर्णामत लेवो

उड़ान. नाव क पार लगाव......पीया रे सतवन्ती...

(४) कहत कबीरा सुणो भाई साधु,

राखो ते चरण अधारा

जनम जनम का दास तुम्हारा

उड़ान. राखो लाज हमारी......पीया रे सतवन्ती...





टेक. सरग बांदया रे साधू झोपड़ा,

कलु म कीया अधवारा



(१) घर बांदया रे घर की नीव नही,

नही लाग्या सुतार

लावो घर के पारप्ठी

उड़ान. घर बांदया कैलाश........सरग बांदया.....

(२) घर ऊचा धारण नीचा,

दियो जड़ रे आकाश

सागर ताक जड़ावियाँ

उड़ान. जाको वस्तर अपार........सरग बांदया.....

(३) घर छाया घर ना गले, चट घट करी पास

नीरगुण पाणी झेलीयाँ

उड़ान. वो घर का रे माय ........सरग बांदया.....

(४) घर बांदया रे घर की नीव नही,

घर को रची गयो नाम

जहाँ सींगा न जलम लियो

उड़ान. दल्लू आया मेजवान........सरग बांदया.....







टेक. महारो मन लाग्यो बैराग मे,

रमता जोगी की लार



(१) पाव बांध्या हो मीरा घुंगरु,

हाथ ली हो करताल

दुजा हाथ मीरा तुमड़ा

उड़ान. गुण गाया गोपाल..........महारो मन........

(२) एक लांग मीरा सासरो, दुजा मामा ममसाल

तीजा लांग रे मीरा मावसी

उड़ान. चवथा माय रे बाप..........महारो मन........

(३) जहर का प्याला राणा भेजीया,

भेज्या दासी का हाथ

जावो दासी मीरा क दई आवो

उड़ान. आमरीत लीजो नाम..........महारो मन........

(४) जावो दासी होण देखी आवो,

मीरा जीवती की मरती

मरी होय तो वक फेकी दिजो

उड़ान. मीरा जैसी की वैसी..........महारो मन........







टेक. राम भजन कर भाई रे नुगरा,

नाव किनारा आई रे भाई



(१) पैसा सरीका टिपकला, जीसमे अंडा धरावे

आट मास गरब म रइयो

उड़ान. करी किड़ा की कमाई..........रे नुगरा......

(२) इना नरक से बाहर करो,

कळु की हवा खाता

हाथ जोड़ी न कलजुग म आयो

उड़ान. प्रभु क पल म भुलायो..........रे नुगरा......

(३) बाल पणा म खेल गमायो,

जवानी म भरनींद सोयो

दास कबीरजा की बजीर पड़ी रे

उड़ान. अब कह क्यो पछताई..........रे नुगरा......

(४) आयो बुड़ापो न लग्यो रे कुड़ापो,

लकड़ी लिनी हाथ

पाव चल तो ठोकर खावे

उड़ान. जरा सुद नही पाई..........रे नुगरा......





टेक. हारा रे मोरे भाई नाथ मै,

हारा रे मोरे भाई

(१)एक बंद ढूंढा सकल बंद ढूंढा,ढूंढत ढूंढत हारा

तीरथ धाम हम सब ढूंढी आया

उड़ान. प्रभू मिले घटमाही........नाथ मै हारा रे....

(२) नही मेरा यारा नही मेरा प्यारा,

नही मेरा बन्धू भाई

तुम बिन मोहे कोण उभारे

उड़ान. लेवो भाव पसारी........नाथ मै हारा रे....

(३) प्राण बाण सब टुटण लागे,

कायन भयो मन माही

प्रेम कटारी लगी हिरदे मे

उड़ान. ऊबौ हुयो नही जाय .......नाथ मै हारा रे...

(४) नही हम इस पार नही हम उस पार,

सागर भरीयो अपार

बिना मंऊत यो शीर डुबत है

उड़ान. कुंज डुब्यो जल माही........नाथ मै हारा रे...

(५) दिन दयाल कृपा करो हम पर,

गरीब नू काज सुधारो

कहत कबीरा सुणो भाई साधू

उड़ान. जोत मजोत समाणी........नाथ मै हारा रे....

टेक. राम कहाँ मोरी माई भरत पुछे

(१) जब सी भरत अवध म आयो,

मोहे उदासी छाई

आइ घाट घेरियो मोहे परघाट घेरियो

उड़ान. प्रजा रोवे आई.............भरत पुछे......

(२) राजा दशरथ के चारी पुत्र,

चरत भरत रघुराई

चरत भरत को राज दियो है

उड़ान. राम गया बंद माही.............भरत पुछे......

(३) माता कौशल्या मेहलो मे रोये,

बायर भारत भाई

राजा रशरथ ने प्राण तज्यो है

उड़ान. कैकई रई पछताई.............भरत पुछे......

(४) राम बिना रे म्हारी सुनी आयोध्या,

लक्ष्मण बीन ठकुराई

सीता बीन रे म्हारी सुनी रसोई

उड़ान. कोण करे चतुराई.............भरत पुछे......

(५) आगे आगे राम चलत है, पीछे लक्ष्मण भाई

जिनके बीच मे चले हो जानकी

उड़ान. शोभा वरणी न जाई.............भरत पुछे......





टेक. लाद चल्यो बंजारो अखीर कऽ



(१) बिना रे भाप का बर्तन घड़ीया,

बिन पैसा दे रे कसोरा

मुद्दत पड़े जब पाछा लेगा

उड़ान. घड़त नी हारयो कसारो.......अखीर कऽ....

(२) भात भात की छीट बुलाई,

रंग दियो न्यारो

इना रे रंग की करो तुम वर्णा

उड़ान. रंगत नी हारयो रंगारो.......अखीर कऽ....

(३) राम नाम की मड़ीया बणाई,

वहा भी रयो बणजारो

रान नाम को भजतो लियो रे

उड़ान. वही राम को प्यारो.......अखीर कऽ....

(४) कहेत कबीरा सुणो भाई साधु,

एक पंथ नीरबाणी

इना रे पंथ क मारण दुररो

उड़ान. जग सी है वो न्यारो.......अखीर कऽ....





टेक. हिरणी हरि क पुकारे जंगल मऽ

(१) हिरणी रे बन म व्साण हो लागी,

पार्दी न फन्द लगायो

चै तरफ से घेरा रे डाला

उड़ान. हिरणी क राम अधारा.........जंगल मऽ.....

(२) जब रे पार्दी न फन्द लगायो,

न चल्यो हिरणी का पास

हिरणी बिचारी मन घबराणी

उड़ान. न पार्दी क ढ़सी गयो नाग........जंगल मऽ...

(३) मन म रे पार्दी ऐसा बुरा रे,

न खौब रयो पछताई

चै तरफा सी आग लगी रे

उड़ान. न हिरणी क ली रे बचाई.........जंगल मऽ....

(४) निकोल हुई जब आई हिरणी,

आई प्रभू का द्वारे

प्रभू जी सी कर अरदास

उड़ान. न हरी जी न लाखी लाज........जंगल मऽ....

(५) कहत कबीर सुणो भाई साधू,

एक पंथ निरबाणी

जनम जनम की दासी तुम्हारी

उड़ान. न रवा प्रभू जी की साथ.........जंगल मऽ.....

टेक. आया अयोध्या वाला कुवर दो

(१) राजा जनक तो जग में हो ठाड़ा

शोभा नी वर्णी जाई

उठ सभा दल देखण लागी

उड़ान. उग्या भवन का तारा..........कुवर दो.......

(२) योरे धनुष कोई सी हाले नी डूले,

लख जोधा आजमाया

रावण सरीका पड्या खिसाणा

उड़ान. भवपती गरब राल्या..........कुवर दो.......

(३) लक्ष्मण सुणो बंधु रे भाई,

गुरु कीनी आज्ञा पाई

डावी भुजा सी धरणी तोकु

उड़ान. धनुष की कोण बिसात..........कुवर दो.......

(४) गुरु की आज्ञा पाई न राम बठा हुया,

चरणो म शीश नमाये

इनी रे भूमी पर कोई जोधा रे जल्मीया

उड़ान. धनुष का टुकड़ा उड़ाया..........कुवर दो.......

(५) सिता रे ब्याही न राम घर आया,

घर घर आनंद छाया

माता रे कौशल्या न आरती सजाई

उड़ान. राम बधाई घर लाया..........कुवर दो.......



टेक. कैसे चीर बड़ायो प्रभू ने,

सभी देख बिसमायो



(१) कौरव पांडव मिल आपस में,

जुवा नो खेल रचायो

डार डपट का पासा सकुनी

उड़ान. पांडव राज हरायो............प्रभू ने.......

(२) द्रुपद सुता को बीच सभा में,

नगन करण को लायो

द्वारका नाथ लाज रखो मेरी

उड़ान. तुम बिन कोण बिसायो............प्रभू ने.......

(३) दुःशासन ने पकड़ केश से,

चीर बदन से हतायो

खेचत खेचत अन्त नी आयो

उड़ान. अम्बर देर लगाई............प्रभू ने.......

(४) भीष्म द्रोण दुर्योधन, सब मन से सरमाये

हरी शरण जिनके हरी पालन

उड़ान. तिनको कौन दुखाये............प्रभू ने.......







टेक. जीवणा है दिन चार जगत में



(१) सुबे से हरि नाम सुमरले,

मानुष जनम सुधार

सत्य धर्म से करो कमाई

उड़ान. भोगो सब संसार.........जगत में......

(२) माता पिता गुरु की सेवा किजे,

और पर उपकार

पशु पक्षी नर सब जीवन में

उड़ान. ईश्वर अन् निहारु.........जगत में......

(३) गलत भाव मन से बिसराजो,

सबसे प्रेम बिहो

सकल जगत के हो अंदर

उड़ान. पुरण बृम्ह अपार.........जगत में......

(४) यह संसार स्वप्न की माया,

ममता मोये निहार

हरि की शरण जोड़ भव बंधन

उड़ान. पावो मोक्ष दुवार.........जगत में......







टेक. कैसे रुप बड़ायो रे नरसींग



(१) ना कोई तुमरा पिता कहावे,

ना कोई जननी माता

खंब फोड़ प्रगट भये हारी

उड़ान. अजरज तेरी माया.........नरसींग.......

(२) आधा रुप धरे प्रभू नर का,

आधा सिंह सुहाया

हिरणा का शिश को पकड़ धरण में

उड़ान. पख से फोड़ गीराया.........नरसींग.......

(३) गर्जना सुन के देव लोग से,

बृम्हा दिख सब आये

हाथ जोड़ कर बिनती कीनी

उड़ान. शान्ति रुप कराया.........नरसींग.......

(४) अन्तर्यामी सर्व को न्यापक,

ईश्वर वेद बताया

हरी नाम सत्य कर समझो

उड़ान. वह परमाण दिखाया.........नरसींग.......







टेक. भज ले हरि को नाम रे मन तु



(१) बाल पणो तुन खेल गमायो,

आयो भरी जवानी

काम म रे तुन वा भी गमाई

उड़ान. नई लियो राम को नाम......रे मन तु.....

(२) आयो हो बुड़ापो न लग्यो हो कुड़ापो,

डोलन लाग्यो सारो

शरीर आखें सी तो सुझ नही रे

उड़ान. पड़यो पलंग का माही......रे मन तु.....

(३) राम नाम हरी क घट म हो राखो,

दिन आरु रानी

मुक्ति होय थारी आखरी घड़ी रे

उड़ान. भेज वैकुन्ठ धाम......रे मन तु.....

(४) कहत कबीरा सुणो भाई साधू,

घट म राखो राम

मनुष जलम काई भाव मिल्यो रे

उड़ान. नई मिल अयसो धाम......रे मन तु.....







टेक. सुख नींदरा म क्यो सोयो मुसाफीर



(१) पंथी रे उबा पथ उपर रे,

गठरी बांदी सीर

तेरा साथी तो कोई नही रे

उड़ान. कर चलने की सुध...........मुसाफीर........

(२) बाट बाट बंद मोवरीया रे,

हरिया देख मती भुले

चलने की तेरी सांची नही रे

उड़ान. रहने की सब झुट...........मुसाफीर........

(३) माता पिता सुत बन्धु जना रे,

पनघट की ये नारी

सब मिलकर ये बिसर जायेगे

उड़ान. सम्पत है दिन चार...........मुसाफीर........

(४) कहेत कबीरा न चैत लियो रे,

सुमरो श्रीजन हारे

एक राम का नाम बिना रे

उड़ान. नही तो बहुत पड़ेगा मार.........मुसाफीर.......







टेक. जायगो हऊ जाणी रे मन तू



(१) पाँच तत्व को पींजरो बणायो,

जामे बस एक प्राणी

लोभ लालूच की लपट चलेगी

उड़ान. जायगो बिन पाणी........रे मन तू.....

(२) भुखीया के कारण भोजन प्यारा,

प्यासा के कारण पाणी

ठंड का कारण अग्नी हो प्यारी

उड़ान. नही मिल्यो गुरु ज्ञानी........रे मन तू.....

(३) राज करन्ता राज भी जायगा,

रुप निरन्ती राणी

वेद पड़न्ता पंडित जायेगा

उड़ान. और सकल अभिमानी........रे मन तू.....

(४) चन्दा भी जायगा सुरज भी जायगा,

जाय पवन और पाणी

दास कबीर जी की भक्ति भी जायग

उड़ान. जोत म जोत समाणी........रे मन तू.....





टेक. अनहद मन म्हारो रमी रयो,

धुन लागी रे प्यारी



(१) उस दरियाव की मछली,

इस नाले में आई

नाले का पानी तोकड़ा

उड़ान. दरिया न समानी............अनहद........



(२) वस्तु घणी बर्तन छोटा,

कहो कैसे समाणी

घर मे धरु बर्तन फुटे

उड़ान. बाहेर भरमाणी............अनहद........



(३) फल मीठा तरुवर ऊँचा, कहो कैसे तोड़े

अनभेदी ऊपर चड़ो

उड़ान. गीरे धरती के माही............अनहद........
(४) बृह्मगीर बृह्मरुप है, बृह्म के माही

बृह्म बृह्म मिश्रीत हुआ

उड़ान. बृह्म में समाये............अनहद........