हिरणी हरि क पुकारे जंगल मऽ
हिरणी रे बन म व्साण हो लागी, पार्दी न फन्द लगायो
चै तरफ से घेरा रे डाला, हिरणी क राम अधारा
जब रे पार्दी न फन्द लगायो, न चल्यो हिरणी का पास
हिरणी बिचारी मन घबराणी, न पार्दी क ढ़सी गयो नाग
मन म रे पार्दी ऐसा बुरा रे, न खौब रयो पछताई
चै तरफा सी आग लगी रे, न हिरणी क ली रे बचाई
निकोल हुई जब आई हिरणी, आई प्रभू का द्वारे
प्रभू जी सी कर अरदास, न हरी जी न लाखी लाज
कहत कबीर सुणो भाई साधू, एक पंथ निरबाणी
जनम जनम की दासी तुम्हारी, न रवा प्रभू जी की साथ
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