Thursday, 28 November 2013

हिरणी हरि क पुकारे जंगल मऽ

हिरणी हरि क पुकारे जंगल मऽ

हिरणी रे बन म व्साण हो लागी, पार्दी न फन्द लगायो

चै तरफ से घेरा रे डाला, हिरणी क राम अधारा

जब रे पार्दी न फन्द लगायो, न चल्यो हिरणी का पास

हिरणी बिचारी मन घबराणी, न पार्दी क ढ़सी गयो नाग

मन म रे पार्दी ऐसा बुरा रे, न खौब रयो पछताई

चै तरफा सी आग लगी रे, न हिरणी क ली रे बचाई

निकोल हुई जब आई हिरणी, आई प्रभू का द्वारे

प्रभू जी सी कर अरदास, न हरी जी न लाखी लाज

कहत कबीर सुणो भाई साधू, एक पंथ निरबाणी

जनम जनम की दासी तुम्हारी, न रवा प्रभू जी की साथ

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