राम सुमर ले प्राणी रे मनवा रूठे राज मनावे रे कोई
साधू की वाणी सदा हो सुहाणी ज्यो झिरिया का पाणी
खोजत खोजत खोज लिया रे
कई हिरा कई काणी
चुन चुन कंकड़ महेल बनाया उसमे भंवर लुभाणी
आया इसारा गया पसारा
झूटी अपणी वाणी
राम नाम की लुट कर बंदे गठरी बांधो ताणी
भवसागर से पार उतर जा
नहीं जाय नरक की खाणी
कहें जण सिंगा सुणो भाई साधो यो पद है निरबाणी
या पद की कोई करो खोजना
गुरु कह गये अमृत बाणी
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