Sunday, 30 January 2022

ऐसी भक्ति साधू मत किजीये,


ऐसी भक्ति साधू मत किजीये, जामे होय रे हानी
अन्त काल जम मारसे, गल दई देग फासी
जो मंजारी ने तप कियो, खोटा व्रत लिना
घर से दीपक डाल के, आरे मूसाग्रह लिना
जो हो लास पिघल चली, पावक के आगे
ब्रज होय वहा को अंग
देखत का बग उजला, मन मयला भाई
आख मिची ऋषी जप करे, मछली घट खाई
ग्रह ने गज को घेरिया, आरे कुंजरं दुस पाया
जब हरी का हो नाम लिया, आरे तुरंत ताल छुड़ाया

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