रे साधो देखा हु जग बौराना
साच कहू तो मारन धावे झुटा जग पतियाना
हा हिन्दू रे कहता राम हमारा मुसलमान रहमाना
आपस में दोई लड़ लड़ मरता मरम कोहू ना जाना
हा बहुत मिले हमे नेमी रे धरमी प्रात: करे रे स्नाना
आतम छोड़े पाषण ही पूजे इनका खोटा ज्ञाना
हा आसण मार ढिम्ब धर बैठे मन में बहुत गुमाना
पीतर पाथर पूजन लागे तीरथ बने हे भुलाना
हा माला रे फेरे टोपी रे पेहने छाप तिलक अनुमाना
साखी रे शबद गावत भूले आतम खबर ना जाना
हा घर घर मन्तर देत फिरत है माया के अभिमाना
गरुवा सहित सब शीश ही ढुबे अन्तकाल पछताना
हा बहुत तक देखे पीर ओलिया पड़े है किताब कुराना
करे मुरीद कबर बतलावे उनहू खुदा ना जाना
Tuesday, 27 April 2021
रे साधो देखा हु जग बौराना
Wednesday, 21 April 2021
राम रमे सोई ज्ञानी
Wednesday, 7 April 2021
साचा सतगुरु से मिल बावरी
साचा सतगुरु से मिल बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
बुने माला पाती रे तोड़े पाती-पाती के माहि जीव रे
पाती तोड़े देवन को चड़ावे वो देव तो निर्जीव बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
आरे डाली बृम्हा पाती रे विष्णु फुल शंकर देव रे
फुल तोड़ देवन को चड़ावे वो देव तो निर्जीव बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
हा गारा की गणगोर बणावे पुजेगा लोग लुगाई रे
पकड़ टांग पाणी माहि फेके कहा गई सकलाई वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
देश-देश का भोपा बुलाया ने घर में बेल घुमाया रे
नारियल फोड़ी न नेटि चड़ावे ने गोंळा खुद गटकावे वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
दूध भात की खीर बनाई ने देवतड़ा को चड़वाई
उना देवत उपर कुत्ता रे मुते ने खीर गिलेरी गटकावे वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
जीवता रे बाप को जूता रे मारे मर्या क गंगा लई जावे रे
भूखा था वाको भोजन दिया ने कौओ को बाप बनावे वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
भैरू भवानी कने छोरा छोरि मारे सीर बकरा का काटे
आरे कहे कबीर सुनो भाई साधो तू पुत परायो मती काटे वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
साचा सतगुरु से मिल बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
पियु जी बिना म्हारो प्राण पड़
पियु जी बिना म्हारो प्राण पड़े म्हारी हेली जल बिन मछली मरे
हे कोन मिलावे म्हारा राम से म्हारी हेली हे रोई रोई रुदन करा
म्हारी हेली हो चालो हमारा देश....
के सोतो तिरंग महेल में म्हारी हेली झा जड़ जतन कराय
हे कोन मिलावे म्हारा राम से म्हारी हेली हे रंग भर सेज भिछाय
म्हारी हेली हो चालो हमारा देश....
हा छोड़ी दो पियर सासरो म्हारी हेली छोड़ी दो रंग भरी सेज
छोड़ो पीताम्बर हो म सो म्हारी हेली हे कर लो रे भगनो भेस
म्हारी हेली हो चालो हमारा देश....
हा एक भाण की वहा क्या पड़ी म्हारी हेली करोड़ भाण प्रकाश
हे साहब कबीर धर्मी हो लिया म्हारी हेली हे असल सूरीलो म्हारो देश
म्हारी हेली हो चालो हमारा देश....
हा लगा गुराजी रा बाण....
म्हारी हेली हो चालो गुरजी रा देश....
हा आओ गुरजी रा देश....
म्हारी हेली हो चालो हमारा देश....
Monday, 5 April 2021
जो तू आया गगन मंडल स
जो तू आया गगन मंडल से शीश दिया फिर डरना भी क्या
आरे हो जाऊ शियार सदा गरु आगे मन साबित फिर डरना भी क्या
उन मून खेती धणीया कसेती रात दिना नर सोता भी क्या
हा आवेगा पंछी चुग जावेगा खेती तन मन को फुसलाता भी क्या
नो सौ नदिया बैघठ भीतर सात समुंदर यु ना भी क्या
हा गुरु गम होद भर्या घट भीतर मुरख प्यासा जाता भी क्या
हा जो तेरे घट में नारी सुकमणा गणिका के घर जाता भी क्या
हा शीतल वृक्ष की या छाया छोड़ कर कंकड़ पत्थर पे सोता भी क्या
काँसा पीतल सोना हो या पल्ला लगे रे कोई पारस का
चित्त चोपट का खेल मढ़या है रंग पैचाणो पाचो का
गुरुगम पासा हाथ लिया हैं जीती बाजी हारो भी क्या
कहे कबीर सुणो भाई साधो करम भरम बिच भूलो भी क्या
Saturday, 3 April 2021
बिना गुरु ज्ञान ना पावो मोरे साधू भाया
बिना गुरु ज्ञान ना पावो मोरे साधू भाया, फोकट जनम गवाया हो
हा जल भर कुम्भ रहे जल भीतर भाहेर भीतर वाके पाणी हो
उलट कुम्भ जल, जल ही समाना तब क्या करे वहा ज्ञानी रे मोरे साधू भाया
हाजी बिन करताल पखावज बाजे बिन रसना से गुण गाया हो
हा गावणहार को रूप नही रेखा सतगुरु अलख लखाया रे मोरे साधू भाया
हा हे रे अथाह तहा सब हीनमे दरिया तो लहेर समाया हो
जाल डाल वहा क्या करे ढीमर मीन को होई गयो पाणी रे मोरे साधू भाया
हाजी पंछी को खोज और मीन को मारग ढूंढे से ना कोई पाया हो
हा कहे कबीर सतगुरु मिले पूरा तो भूले को राह बतावे रे मोरे साधू भाया
थारा भरिया समंद माहि हीरा
थारा भरिया समंद माहि हीरा मरजी वाळा लाविया
थारा घट माहि ज्ञान का जंजीरा मालिक सुळझाविया
हा यो मन लोभी लालची रे यो मन काळूकीर,
कुबुद्धि(भरम) की जाल चलावे रे हा
हा बाँघा जो बाँघा कोयल बोले बन माहि बोले रुङा मोर,
समंद वाली लेहरा भी आवे रे हा
हा घास फूस सब जळी गया रे रहि गई समंद वाली तीर,
कोई तो दिन उलट आवे रे हा
हा गोळा छुटीया है गुरु ज्ञान का रे कायर भागो जाय,
सुहूर म सनमुख रयणा रे हा
हा गुरु रा आनंद की खोज में रे सनमुख लड़े रे कबीर,
भजन(ज्ञान) का बाण चलाया रे हा