साचा सतगुरु से मिल बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
बुने माला पाती रे तोड़े पाती-पाती के माहि जीव रे
पाती तोड़े देवन को चड़ावे वो देव तो निर्जीव बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
आरे डाली बृम्हा पाती रे विष्णु फुल शंकर देव रे
फुल तोड़ देवन को चड़ावे वो देव तो निर्जीव बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
हा गारा की गणगोर बणावे पुजेगा लोग लुगाई रे
पकड़ टांग पाणी माहि फेके कहा गई सकलाई वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
देश-देश का भोपा बुलाया ने घर में बेल घुमाया रे
नारियल फोड़ी न नेटि चड़ावे ने गोंळा खुद गटकावे वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
दूध भात की खीर बनाई ने देवतड़ा को चड़वाई
उना देवत उपर कुत्ता रे मुते ने खीर गिलेरी गटकावे वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
जीवता रे बाप को जूता रे मारे मर्या क गंगा लई जावे रे
भूखा था वाको भोजन दिया ने कौओ को बाप बनावे वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
भैरू भवानी कने छोरा छोरि मारे सीर बकरा का काटे
आरे कहे कबीर सुनो भाई साधो तू पुत परायो मती काटे वो बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
साचा सतगुरु से मिल बावरी
क्यों भूलीगी थारो देश रे....
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