बिना गुरु ज्ञान ना पावो मोरे साधू भाया, फोकट जनम गवाया हो
हा जल भर कुम्भ रहे जल भीतर भाहेर भीतर वाके पाणी हो
उलट कुम्भ जल, जल ही समाना तब क्या करे वहा ज्ञानी रे मोरे साधू भाया
हाजी बिन करताल पखावज बाजे बिन रसना से गुण गाया हो
हा गावणहार को रूप नही रेखा सतगुरु अलख लखाया रे मोरे साधू भाया
हा हे रे अथाह तहा सब हीनमे दरिया तो लहेर समाया हो
जाल डाल वहा क्या करे ढीमर मीन को होई गयो पाणी रे मोरे साधू भाया
हाजी पंछी को खोज और मीन को मारग ढूंढे से ना कोई पाया हो
हा कहे कबीर सतगुरु मिले पूरा तो भूले को राह बतावे रे मोरे साधू भाया
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