Monday, 5 April 2021

जो तू आया गगन मंडल स

जो तू आया गगन मंडल से शीश दिया फिर डरना भी क्या
आरे हो जाऊ शियार सदा गरु आगे मन साबित फिर डरना भी क्या

उन मून खेती धणीया कसेती रात दिना नर सोता भी क्या
हा आवेगा पंछी चुग जावेगा खेती तन मन को फुसलाता भी क्या

नो सौ नदिया बैघठ भीतर सात समुंदर यु ना भी क्या
हा गुरु गम होद भर्या घट भीतर मुरख प्यासा जाता भी क्या

हा जो तेरे घट में नारी सुकमणा गणिका के घर जाता भी क्या
हा शीतल वृक्ष की या छाया छोड़ कर कंकड़ पत्थर पे सोता भी क्या

काँसा पीतल सोना हो या पल्ला लगे रे कोई पारस का
चित्त चोपट का खेल मढ़या है रंग पैचाणो पाचो का

गुरुगम पासा हाथ लिया हैं जीती बाजी हारो भी क्या
कहे कबीर सुणो भाई साधो करम भरम बिच भूलो भी क्या

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