थारा भरिया समंद माहि हीरा मरजी वाळा लाविया
थारा घट माहि ज्ञान का जंजीरा मालिक सुळझाविया
हा यो मन लोभी लालची रे यो मन काळूकीर,
कुबुद्धि(भरम) की जाल चलावे रे हा
हा बाँघा जो बाँघा कोयल बोले बन माहि बोले रुङा मोर,
समंद वाली लेहरा भी आवे रे हा
हा घास फूस सब जळी गया रे रहि गई समंद वाली तीर,
कोई तो दिन उलट आवे रे हा
हा गोळा छुटीया है गुरु ज्ञान का रे कायर भागो जाय,
सुहूर म सनमुख रयणा रे हा
हा गुरु रा आनंद की खोज में रे सनमुख लड़े रे कबीर,
भजन(ज्ञान) का बाण चलाया रे हा
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