Thursday, 24 April 2014

औघड़ पी रे पी रे गुरु ज्ञान बड़ा गम्भीर

औघड़ पी रे पी रे गुरु ज्ञान बड़ा गम्भीरे
आप ही आप मिले जहा जाई, पूछे पूछी अजमत पाई
दोनों का मेल हुआ दरश दीदारे
वन में बैठे दोनों मूर्ति, अनहत बात ज्ञान की झड़ती
रम रही सावरी मूरत सुरत लग धीरे
भागी सिंगा हम दर्शन पाई, सिंगा हमको त्रसा लगी
जल बिन तड़पे प्राण उतर गया नुरे
वन खंड झाड़ी अखंड उजाड़ी, यहा कहा पाणी पाओ साईं
ऋतू उन्ढाळा तपे धुप अघोरे
नैन खोल जब देखन लगा, पर्वत सरिका आगे डोले साईं
यहा पधारो आया है बड़ी पुरे
सदानंद के प्रेम उजागर, संग ध्यान का भरिया सागर
दिन सूखे नदी बहाया नीरे
भागी सिंगा ने दर्शन पाया, साईं बाबा हमको खुद्या लागी
अन्न बिना तलफत प्राण धरत नही धीरे
खेचरी रहती कानों में मुद्रा रहती, एक दिन बैठे ध्यान में
जिन्ने धरा भिखारिनाथ नाम ऊपजा हीरे
बंधन खोल किया हैं न्यारा, साई ने जान बकसा हैं सारा
मुर्दा दिया जीवाय खिलादई गयब से खीरे
औघड़ औघड़ जो नर कहिये नांगा भूखा कबहू ना रहिये
तुम सदा रहो दयाल राख मन धीरे
श्यामगिर वो दल्लू सिपाही, जिन्ने घोड़ा छोड़ मजीद दौड़ाई
अचरज भई बादशाही थकत अम्बिरे
काजी मुल्ला ख कर जोड़े, साधू महर करो हम परे
हिन्दू का देव सच्चा लाल पशु जोरे
दल्लू पतित जब शरण आये, अपनी भक्ति का फल पाए
जिन्ने लिया पदारथ हाथ बहु जल तिरे

निशान बाका कोई जबर देव सिंगा का

निशान बाका कोई जबर देव सिंगा का
तीन खाप अतलस अमरुखा
पटका मोतन जरकस लर का
देश देश का हरिजन आया
देखो हाट जत्रा का
चार खम्ब का देवन बनाया
उपर ध्वजा फैराना
कहें जण दल्लू सुणो भाई साधो
चरणों में चित रहता

Tuesday, 15 April 2014

कहो तो जावाँ गोंडवाना भूप तुम

कहो तो जावाँ गोंडवाना भूप तुम कहो तो जाँवा गोंडवाना
अन मिली आवाँ अपणा बीराणा भूप तुम कहो तो जाँवा गोंडवाना

ब्याव सगाई मंगला हो चारा निवता भेज्या ठिकाणा
जात गंगा का दर्शन पावाँ दस दिन का मेजवाणा

एक पखवाड़ा की म्यादी जो दीजो यहा हैं सवार दीवाना
जो कोई कागज होय हो जरूरी लिखी भेजो बेगा परवाणा

हुया तुरी पर असवार सुरमा बन क किया रे पयाना
जब तुरी को शब्द सुणायो हे कोई भूप घबराणा

उतरया तुरी से भूमि पग दीनो राजा क कियो रे परणामा
कहो तो तुरी की सूद कृ हो चाकर सब मुसकाना

वरी तुरी पर झीं आप नचायो राजा का दिल हरसाना
गोविन्द्गीर जी सदा शरण में धन धन रे मरदाना

स्वामी हँसे बहुरंगी- बहुरंगी

स्वामी हँसे बहुरंगी- बहुरंगी जिन्ने जन्म लियो ऋषि श्रंगी

उत्तर तट मुख जावो गगन में आसन पलक लगाओ
सोहम ब्रह्मा को सुमिरन करी न, जाकी नही निसंगी

बैठी सुहागेण सनमुख थाड़ी कर्म कपाट खुलाये
दिव्य द्रष्टि चड़ी गयो रे सुरग में, काल देखी रह्यो जंगी

मिले ब्रह्मा में ब्रह्म मिलाए, संत की माया बिहंगी
स्वामी सतगुरु बिन अगले, गुरु ब्रह्मगिर मनरंगी

कहे गरु सिंगा न सुणो भाई साधो ईनी माया क समझो लफंगी

दुल्लव बण्या रे निर्वाण सिंगाजी बाबा

दुल्लव बण्या रे निर्वाण सिंगाजी बाबा
निर्गुण के घर भही रे सगाई, ब्याही सतवंती नार
चार खम्ब को मण्डप बणायो, उपर बांधी बंधन वार
मौर बँधायो थारी बाई ने बँधायी, मोतीला झलके द्वार
चौरी में बैठे चौरासी छुड़ाई, दायजो बैकुंठ माह
कहें जण दल्लू सुणो भाई साधो, संतो ने गायो मंगलाचार

असवार कहा से आयो आरे जिन खोप्या

असवार कहा से आयो आरे जिन खोप्या तुरी क नचायो
काया झिरीण कपे शरीर कबहू ने देख्यो एसो वीर
आरे कोई सतवंती को जायो असवार कहा से आयो
कोन नगर रयणा रे भाई चल तोहे रोजी देऊ सवाई
तोहे देख दिल हरसायो असवार कहा से आयो
हरसूद नगर रहणो हमरो जग में सिंगा नाम मेरो
मैं यदुवंशी में जयो असवार कहा से आयो
मुख मेलो तुम मोहे करावो वचन देवो तो संग में आवो
स्वामी मन मुसकायो असवार कहा से आयो
भामगड़ में भुम्यो विराजे नमक उनको खाऊ महाराजे
हाउ आज तलक सुख पायो असवार कहा से आयो
वरी तुरी पर जीन आप नचायो राजा का दुल हरसाना
गोविन्दगीर जी सदा शरण में धन धन रे मर्दाना

तुम देखो दरियाव की लहरी

तुम देखो दरियाव की लहरी-लहरी जहाँ सतगुरु बैठे हेरी
इस दरियाव में बाजा बाजे आठों पहरी,
ताल पखावज बजे झंजरी, 
वहा बंसी बजी रही गहरी
इस दरियाव में साथ समंदर बिच गयब की डेरी, 
डेरी अंदर अलख बिराजे,
वहाँ सुरता लगी रही मेरी
बिना पेड़ का वृक्ष कहिये डाल फुल नहीं बेरी, 
रूप रेख वाके कुछ भी नहीं हैं, 
वो छाय रही चहुँ फेरी
अगम अगोचर निर्भय पद पाया क्या कहू भाई मेरी, 
कहे जण सिंगा सुनो भाई साधो, 
वहाँ निर्भय माला फेरी

Sunday, 6 April 2014

माता रनु देवी आया मेजवान

माता रनु देवी आया मेजवान देवा झालरियो
हा तुम चलो म्हारी गवरा बाई साथ देवा झालरियो

मस्त महीनों चैत को आयो,
चौ दिशा म आनन्द छायो
हा ओ सारी सखिया सजाव सिन्गार देवा झालरियो

हो चैत वद्धि ग्यारस की मुठ धरावा,
तिथि तीजी तीज को पाठ बिठावा
हा रे घर घर होय मंगलाचार देवा झालरियो

सब सखियन मिले खेले पाती,
अपने मन में खोब मुस्काती
हा रे म्हारी रनुबाई की महिमा अपार देवा झालरियो

धाणी घुघड़ा को तम्बुल बाट,
माता क पोइचावण चल्या जब घाट
हा रे राजा धणीयर घोड़ी असवार देवा झालरियो