Tuesday, 15 April 2014

स्वामी हँसे बहुरंगी- बहुरंगी

स्वामी हँसे बहुरंगी- बहुरंगी जिन्ने जन्म लियो ऋषि श्रंगी

उत्तर तट मुख जावो गगन में आसन पलक लगाओ
सोहम ब्रह्मा को सुमिरन करी न, जाकी नही निसंगी

बैठी सुहागेण सनमुख थाड़ी कर्म कपाट खुलाये
दिव्य द्रष्टि चड़ी गयो रे सुरग में, काल देखी रह्यो जंगी

मिले ब्रह्मा में ब्रह्म मिलाए, संत की माया बिहंगी
स्वामी सतगुरु बिन अगले, गुरु ब्रह्मगिर मनरंगी

कहे गरु सिंगा न सुणो भाई साधो ईनी माया क समझो लफंगी

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