औघड़ पी रे पी रे गुरु ज्ञान बड़ा गम्भीरे
आप ही आप मिले जहा जाई, पूछे पूछी अजमत पाई
दोनों का मेल हुआ दरश दीदारे
वन में बैठे दोनों मूर्ति, अनहत बात ज्ञान की झड़ती
रम रही सावरी मूरत सुरत लग धीरे
भागी सिंगा हम दर्शन पाई, सिंगा हमको त्रसा लगी
जल बिन तड़पे प्राण उतर गया नुरे
वन खंड झाड़ी अखंड उजाड़ी, यहा कहा पाणी पाओ साईं
ऋतू उन्ढाळा तपे धुप अघोरे
नैन खोल जब देखन लगा, पर्वत सरिका आगे डोले साईं
यहा पधारो आया है बड़ी पुरे
सदानंद के प्रेम उजागर, संग ध्यान का भरिया सागर
दिन सूखे नदी बहाया नीरे
भागी सिंगा ने दर्शन पाया, साईं बाबा हमको खुद्या लागी
अन्न बिना तलफत प्राण धरत नही धीरे
खेचरी रहती कानों में मुद्रा रहती, एक दिन बैठे ध्यान में
जिन्ने धरा भिखारिनाथ नाम ऊपजा हीरे
बंधन खोल किया हैं न्यारा, साई ने जान बकसा हैं सारा
मुर्दा दिया जीवाय खिलादई गयब से खीरे
औघड़ औघड़ जो नर कहिये नांगा भूखा कबहू ना रहिये
तुम सदा रहो दयाल राख मन धीरे
श्यामगिर वो दल्लू सिपाही, जिन्ने घोड़ा छोड़ मजीद दौड़ाई
अचरज भई बादशाही थकत अम्बिरे
काजी मुल्ला ख कर जोड़े, साधू महर करो हम परे
हिन्दू का देव सच्चा लाल पशु जोरे
दल्लू पतित जब शरण आये, अपनी भक्ति का फल पाए
जिन्ने लिया पदारथ हाथ बहु जल तिरे
Thursday, 24 April 2014
औघड़ पी रे पी रे गुरु ज्ञान बड़ा गम्भीर
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सिंगाजी
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