Tuesday, 15 April 2014

तुम देखो दरियाव की लहरी

तुम देखो दरियाव की लहरी-लहरी जहाँ सतगुरु बैठे हेरी
इस दरियाव में बाजा बाजे आठों पहरी,
ताल पखावज बजे झंजरी, 
वहा बंसी बजी रही गहरी
इस दरियाव में साथ समंदर बिच गयब की डेरी, 
डेरी अंदर अलख बिराजे,
वहाँ सुरता लगी रही मेरी
बिना पेड़ का वृक्ष कहिये डाल फुल नहीं बेरी, 
रूप रेख वाके कुछ भी नहीं हैं, 
वो छाय रही चहुँ फेरी
अगम अगोचर निर्भय पद पाया क्या कहू भाई मेरी, 
कहे जण सिंगा सुनो भाई साधो, 
वहाँ निर्भय माला फेरी

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