Friday, 11 March 2016

मती पुछो बात हमारी सदाशीव

मती पुछो बात हमारी सदाशीव
कड़वा हो तुम्बा अंग भभुती, गला मुंडन माला
कैलाश पर्वत देख्यो सदाशीव = वहा जाई धुणी रमाई
पहाड़ फोड़ी न पार्वती हो नीकलई, आई उना तपसी का पास
पाव म घुंगरु रुमझुम बाज = शीव जी न पलक जगाई
रुमझुम रुमझुम खड़ी हो सामन, पेरी पिताम्बर साड़ी
घुंघट का पट खोल सुन्दरी = कोण पुरुष की नारी
कि तु इन्द्र घर की इन्द्राणी, या वासुक की नारी
कि तु जनक घरकी बहु और बेटी=कोण पुरुष की नारी
नही तो इन्द्र घर की इन्द्राणी ना वासुक की नारी
ना तो जनक घरकी बहु और बेटी= नई छे राणी बिराणी
आसण जुगारा जोगी हो कहिये, बंद बंद धुणी रमाई
तीनलोक का नाथ हो कहिये=हाऊ छे जात की भिलणी
लार लग्या मती आवो रे सदाशीव, आग बिरोज बंदभारी
वाँ रे बस म्हारो भील राज वे = तुमसे ले ग लड़ाई
गंगा हो गवरा नार तुम्हारी, पार्वती पटराणी
हामक तो मत राणी करी राखो= कोई कह दे भील राणी
गंगा गवरा क पीयर पोईचावा, पार्वती भर पाणी
तुम क तो पटराणी करी राखा= कोई नी कहे भील राणी
पाव चलु तो म्हारा पाव दुःख रे, आग सींह को डर भारी
नादिया बठू तो मोहे श्राप लगेगा = खांद बठी घर चालू

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