नीकल चले दो भाई रे बन को
अभी मोरे आगणा म राम रमता,
रमी रयाँ जोगी की लार
माता कोशल्याँ ढुढ़ण नीकली
अन खोज खबर नही आई रे
आगे आगे राम चलत है,
पिछे लक्ष्मण भाई
जिनके बीच मे चले हो जानकी
शिभा वरनी न जाई रे
राम बिना म्हारो रामदल सुनो,
लक्ष्मण बीना ठकूराई
सीता निना म्हारी सुनी रसवाई
अन कुण कर चतुराई
हारे श्रावण जरजे,
भादव बरसे,
पवन चले पखां
कोण झाड़ निच भीजता होयगँ
राम लखन सीता माई रे
भीतर रोवे माता कोशल्या,
बाहर भारत भाई
राजा दशरथ ने प्राण तजो हैं
अन कैकई रई पछताई रे
हारे गंगा किनारे मगन भया रे,
वहा आसण दियो लगाई
तुलसीदास आशा रभुवर की
अन मड़ीयाँ रहि बन्दवाई रे
Thursday, 17 March 2016
नीकल चले दो भाई रे बन को
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वनवासी
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