चलो मनवा उस देश को, हंसा करत विश्राम
वा देश चंदा सुरज नही, आरे नही धरती आकाश
अमृत भोजन हंसा पावे = बैठे पुरष के पासा
सात सुन्न के उपरे, सतगरु संत निवासा
अमृत से सागर भरिया = कमल फुले बारह मासा
ब्रह्मा विष्णु महादेवा, आरे थके जोत के पासा
चौदह भवन यमराज है = वहां नहीं काल का वासा
कहत कबीर धर्मदास से, तजो जगत की आसा
अखंड ब्रह्मा साहेब है = आपही जोत प्रकाशा
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