आरे कन्हा काँ रम्ई आया हो
हरी न लिया हो हरी का बोलना
चार महिना चत्रमास का कान्हो गैया चरावे
हाथ लकड़ी पाव पावड़ी
मुख मुरली बजावे
श्याळा नि रात आविया कान्हो भीतर सोवे
आठ गोदड़ी न व सिरका
सोलह सगड़ी जलावे
उढाळा नि रात आविया कान्हो बाहेर सोवे
सोलह सौ गोपि का के बिच में
डुले पंख दुलावे
श्रावण में झुला हो झुलीया कान्हो झुला हो झूले
राधे जी झुला हो दई रया
रेशम डोर लगाया
भादव गहिर गम्भीर हैं काना मोहरा हो बोले
कान्हा न बंसी बजाविया
नाचे पंख खिरावे
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