म्हारा संत सुजान ध्यान लग्यो न गुरु ज्ञान सी
ज्ञान की माला फेर जोगी, बंद में धुणी तो रमावे
जोगी की झोली जड़ाव की = मोती माणक भरीया
बड़े बड़े भवर गुफा में, जोगी धुणी तो रमावे
जेका रे आंगणा म तुलसी = जेकी माला हो फेर
चंदन घीस्या रे अटपटा, तिलक लीया लगाय
मोहन भोग लगावीया = साधु एक जगा बैठा
कई ऋषि मुनी तप करे, इना पहाड़ो का माई
अब रे साधु वहा से चल बसे = गया गुरुजी का पास
गंगा जमुना सरस्वती, बेव रेवा रे माय
जीनका रे नीरमळ नीर हैं = साधु नीत उठ न्हाये
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