कब के भये बैरागी कबीर जी, कब के भये बैरागी
आदि अंत से आएँ गोरख जी, जब से भये बैरागी
जल्में नही जब का जनम हमारा,नही कोई जग में नांही
पाव धरण को धरती नाही = आदी अंत से लय लागी
धन्धो कार कहुकानी मेला, वही गुरु वही चैला
जब से हमने मंड मड़ायाँ = आप ही आन अकेला
सतजुग पेरी पाव पवड़ियाँ, द्वापुर लीयाँ उड़ा
त्रिताजुग म अड़बद कसियाँ = कलूम फिरीयों नव फेडा
राम भया जब टोपी सिलाई, गोरख भया जब टीका
तासे जब का हो गया मेला = अंत से सुरत लगाई
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