चली गई माल दुलारी तजी न थारी
सोयो पाव पसारी तजी न थारी
जिसकी जान थारा पास नही रे, सोना क दियो रे गमाई
भरम भंभू का उठण लाग्या = नोटीश प नोटीश जारी
बृम्ह कोठरी बृम्ह का वासा, गीत का मुजरा लेई
नव नाड़ी और बावन कोठड़ी = अंत बिराणी होय
जब हो दिवानी ने दफ्तर खोला, नही शरीर नही श्वास
माता छटी ने डोर रचीयो है = रती फरक नही आव
हिम्मत का हाल टुटी गया रे, रयि हमेशा रोई
सतगुरु राखा अभी ले जाजो=नही तो चौरासी का माही
कहत कबीर सुणो भाई साधो, यो पद है निरबाणी
यही रे पंथ की करो खोजना = रही जासे नाम निसाणी
No comments:
Post a Comment