घुंघट म्याना कपट दिवानी नैना मार क्यो तरसाती।
करार कर के चली कहा जाती जरा मुख नही बतावती॥
नल पनघत पर खडा रे गबरु न चबा रया पानो का बीडा।
जरा मुख से हस दे वो गोरी फिर भरना पानी का घडा
खारीक खोपरा लौगइलाईची न गुड़ खाईगई वा फोकट म्
भंग पिलाकर करु बावरी न
अट्टा हो टट्टा मत कर गोरी न आई जायग म्हारा सट्टा म्।
इश्क बाजी से बच कर रयणा दाणा मंगाई देऊ तोहे नट्टा म्॥
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