अनहद ओढ़नी रे सतगुरु भली रंगाई दिनी ओहम ताना जुगत करी राखो सोहंग ने रँगवाई रे पाँच पच्चीस पल्ला भरीया यही भात की बुनवाई गगन मण्डल मे देखा तमासा करम कड़ाई चड़ाई रे काम क्रोध की करी लाकड़ी जतन करी न जलाई काशीजी म ओढ़नी बनाई त्रिवेणी म तपाई रे ब्रह्मा जल म लई झकोला धरम धणी न धुलाई असल भात की असल ओढ़नी बहुतों ने रंगवाई रे भादुदास जा परखे ओढ़नी सतगुरु जी ने उढ़ाई
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