हिरा हेत मनावा आओ म्हारा गणपति देवता
निरमळ नीर गवरा नाहवती अंग मैल उतारे
जाको पुतलो बनाविया
मुख अमरीत रालो
गणपति बणाय के दरवाजे पे ठाड़ी
माता निरंजन नाहवती
कोई अवण नी पावे
शिवजी जब आविया दे दरवाजे पे रोखी
माता हमारी नाहवति
तोहे जाण नी देवा
शिव जी क्रोध जब आविया सीर धड़ सी उड़ाया
गवरा ने सुण पाविया
सीर धड़ से लगाओ
शीव जी जब सीर ढुडीया चवरा फिरि आया
तीन लोक सीर ना मिले
गऊ को सीर लगायो
No comments:
Post a Comment