जबरदेव ओंकार मेला लगता है कई पूंनम का
लगे सामने हटड़ी तमाशा देखो रे उस नगरी का
चार खम्ब का देवळ बणाया न उपर कळस सोने का
धवळई ध्वजा उड़ रही नगाड़ा बज रया भोले सम्भु का
आर नर्बदा न पार कावेरी न बिच में हो मंदर भोले का
गरीब लोग तो पार उतरता पैसा लगता राजा का
कौरव दल सगरा आया न मन्दता में मदत करे
भीम अर्जुन दोनों आये न मंदर का मुख फेर दिया
कोड़या क तो कोड़ फुटिगो न हाथ पाव ओका गळई गया
अब का जमाना ऐसा रे आया बाप को बेटा मार रया
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