अब काहे को कलपे रे मूरख
कोई परदेसी आया रे
एक बूंद की रचना सारी, गया बूंद बहु तेरा रे
गया बूंद की खोजन कर ले, रया बूंद यूँ रोया रे मूरख
माता कहती पुत्र हमारा पुत्र कहे मेरी माता रे
मेरी मेरी करे बहु तेरी, संग कछु नहीं लाया रे मूरख
क्या करे सीपन का मोती लाखन हीरा खोया
साच कहु तो कोई नहीं माने जनम का नहीं साथी रे मूरख
No comments:
Post a Comment