वरजों जसोदा अपने कान्हा को हमसे कर बलजोरी
दही मेरो खायो न मटकी फोड़ी, मथुरा घाट पर घेरी
जल जमुना जल भरण गई थीं, पीछ सी आयो मुरारी
नदी जमुना पर न्हावण गई थीं, चीर लिया न चुराई
लेकर चीर कदम्ब पर बैठे, तिरिया जल म उंघाड़ी रही
कहती राधा सुनो गिरधारी, मानो तो बात हमारी
गोकुल गाँव का लोग हसत हैं, हसे मथुरा का नर नारी
लिवो लेवो चीर गोपी तुम्हारा, न हो जावो जल से न्यारी
एक एक आवो न मंगल गावो, गाव संग कृष्ण मुरारी
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