मात पिता के हो कारणा,
श्रवण कावड़ उठाये
मात पिता के कारणा,
श्रवण जंगल जावे
चन्दन लकड़ी काटयाँ
जाकी कावड़ बणाई
मात पिता को बीठाय के,
श्रवण तीरथ चलीयाँ
अध बिच जंगल जाय के
उनको प्यास हो लागी
हाथ तुम्बा उठाय के,
श्रवण सरवर चाल्या
डूब डूब तुम्बा हो बोलियाँ
राजा ने मारा हो बाण
बाण सीना म लागीयाँ,
श्रवण राम पुकारे
राजा मन म हो सोचीयाँ
कोई धर्मी पुकारे
दशरथ दौड़ता आविया,
आया श्रवण का पास
काई पुत्र थारो नाम छे
काई पड़ी गयो काम
श्रवण म्हारो नाम है,
मात पिता म्हारी साथ
प्यास लगी उनक बड़ी जोर सी
हाऊ पानी लेण आयो
राजा बात म्हारी सुणजे,
माता पिता म्हारा प्यासा
यहा सी रे पाणी लई जाई न
उनकी प्यास बुझाओ
श्रवन प्राण जब छोड़ीया,
राजा मन पछतावे
शब्द भेदी रे म्हारा बाण सी
श्रवन मारियो हो गयो
दशरथ पाणी लई न गया,
दुई खुशी हुई गया
श्रवन अपणो आई हो गयो
अपणी प्यास बुझाव
दशरथ तुम्बा बड़ाविया,
पिता न लियो पयचाणी
तु म्हारो श्रवण नही
कहाँ है श्रवण कुमार
श्रवण का माता पिता क,
दशरथ रयो समझाई
शब्द भेदी रे म्हारा बाण सी
श्रवन मारियो हो गयो
इतनी बात सुणी माता न,
पड़ी धरती का माय
अपणा श्रवन की हो याद म
गई स्वर्ग सीधार
पिता क्रोध म आई न,
दशरथ क दियो हो श्राप
पुत्र वियोग म आई न
म्हारा जसो मरी जाय
धन धन श्रवण कुमार है,
नाम करी गयो जग म
कहत कबीर धर्मराज से
साहेब सुण लेणा
Thursday, 30 January 2014
मात पिता के हो कारणा,
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