म्हारा भरपुर जोगी,
तुमन जगाया जुग जागजो
सोई सोई प्राणी क्या करे,
निगुरी आव घणी निंद
जम सिराणा आई हो गया
आरे उबीयाँ दुई दुई बीर
चुन चुनायाँ देव ढलई गया
आरे ईट गिरी लग चार
फुल फुलियाँ रे हम न देखीयाँ
देख्या धरणी का माय
हरे फुल ऐसो फुलियाँ
आरे बाति मिल नी तेल
नव खण्ड उजीयारा हुई हो रयाँ
देखो हरी जीको खेल
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