"हम परदेशी पावणा दो दिन का मेजवान"
सावल मुरली बजाई मोहन न खरी हो साँझ को पहलो जो पयरों दीवलो जलण नी पायो आदि जो रात को दुसरो जो पयरों भरी निंद्रा चमकाई भयो भमसारा को तीसरो हो पयरों माखन हेड़वा नी पाई भयो दिन निकले को चोथो जो पयरों गौवा धुवन नही पाई
No comments:
Post a Comment