Saturday, 4 January 2014

बिंद्रावन रच्यो हैं रस जो

बिंद्रावन रच्यो हैं रस जो वहा देखण हाउ नी गई
हाउ नी गई रे महाराज सुहागेण सोच रही
कायन पर मूल धरणी रची हैं
कायन रच्यो आकाश
वासुक पर मूल धरणी रची हैं
सत पर रच्यो आकाश
हो कायन की तुन आरती बनाई
कायन का दीपक लगाया
धरती की तुन आरती बनाई
चंदा सूरज का दीपक लगाय
गऊ मुख चारा नी चारिया
आसी बछड़ा बिन बिलखाय
तो गगन मंडल बिच धाम रच्यो
आसो तारा नो छे प्रकाश
गोपियन संग तुन रास रचायो हैं
बिच म रयो रे गोपाल

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