जावा नी दे महाराज बंसी वालो जावा नी दे महाराज
आड़ी लकड़ी कान्हो दई रयो, मोहन मांगे दज
दान लिया बिन जण नी दे रे, रोकी रयो आड़ी वाट
सिर की मटकी रे वालो भूई म धरावे,मांगे दही को दान
भर भर दोन्या दूध पियो रे, रयो तो दियो डुलकाय
मधुर सी मुरली हमन सुणी रे मोहन, गयरो होय रे आवाज
सांझ सवेरा रोज बजती, थारी मुरली म हुईं बेहाल
नरस्याँनु स्वामी न सावरा रे वाला, रुड़ा रमाया रास
जलम जलम की दासी तुम्हारी, राखो तो लाज हमारी
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