Friday, 10 January 2014

श्याम सुन्दर बिरज रास म आवो

श्याम सुन्दर बिरज रास म आवो
परदेशी बिलम रहे
जेठ तपे दिन रात, आषाड़ म घटा हो घुमड़ रही
श्रावण झूला झूल श्याम संग कुबजा झूल रही
भादव घोर गंभीर, कुवार म महोरा बोल रहे
कार्तिक करे किलोल गगन में तारा चमक रहें
मांगसीर हैं सूरदास, पोस महीना सोसा क्यों हो करे
माह महीना नहावा जाय  श्याम मोरी बैया क्यों पकड़े
फागुन उड़े गुलाल, चैत महीना केशव फुल रहें
वैशाख महीना नहावा जाय श्याम मोरी बैया क्यों पकड़े

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