मुरली मनोहर मोहन माघव
ग्वालन गर्व हराया हो
एक समय सारी सगरी ग्वाला
जल जमुना पर जाई
चीर छोड़ कर धर पर धरिया
जमुना में कूदी कूदी नहाये
दपड़ चुपड़ श्री कृष्णजी आये
चीर लिया न चुराई
ले कर चीर कदम पर बैठे
मुख से मुरली बजाई
देवो न चीर हमारो गिरधारी
हम नारी जल में उघड़ी हो
एक एक आवो न चीर लई जावो
हो जावो जल से न्यारी हो
डी
सगरी ग्वालन न कियो मनसूबो
कृष्ण क लेवा मनाई
अधबीच जाई न मथन मथायो
कृष्ण क देवा बहाई हो
झर झर नाव चल रघुनंदन की
ग्वालन रही घबराई हो
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तो भी न जल रुकावे हो
हीण जात हीण मती हो तुम्हारी
रखो लाज हमारी हो
हाथ जोड़ कर शरण तुम्हारी
चरणों में शीश झुकवा हो
Saturday, 4 January 2014
मुरली मनोहर मोहन माघव
Labels:
ग्वालन
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