दूर खेलण मती जावो मेरे ललना, माता यशोदा कहें कान्हा से
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मेवा मिठाई देऊ तेरे मुख में, घुंगरू बांधी देऊ पायन में
इत गोकुल उत मथुरा नगरी, बिच जमुना को दय भारी
उसमे रहता नाग कालिया, जबर जंग कालिया जहरी
जिनके धाक से त्रास पड़त हैं, गोकुल के सब नर नारी
उड़ता जानवर गिरता देह में, उन मुख में अग्नि भारी
ग्वालबाल हरि ने संग लिया हैं,खेलण गए जमुना तट पे
उस गेदन को चोट हो लागी, गेंद गिरी जमुना माहि
गेंद लेने कों दौड़े कृष्णजी, जाई जमुना में कूदे हो
ग्वालबाल सब कहे माता को
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