Thursday, 30 January 2014

भाग हमारा जागीयाँ,

भाग हमारा जागीयाँ,
हम पाया निदाना
सतगुरू शरण हम सेईयाँ
खुलीयां मुक्ति का द्वारा
भव सागर म डुबता,
देखीयाँ गुरूरायाँ
बैय्याँ पकड़ के उबारियाँ
आहो सत नाम उचारा
क्रिया का अंजाण आबीयाँ,
निरखीयाँ अपरमपारा
हम सब सोया सतगती
हम न लके कोई क्यारा
जागण जग पत पारीयाँ,
धोलई रया तन सारा
चेतन शरण समावीयाँ
मिट्टीयाँ जन्म बिचारा
कहती तारा हरिदास सी,

मानो वचन हमारा
मन का आपा मेटावजो
आरे खोलो निरदागा

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