Monday, 17 February 2014

दई से हो हंसा निकल गया

दई से हो हंसा निकल गया,
हंसा रयण नी पाया
पाँच दिन का पैदा हुआ,
घटीन की करी तैयारी
आधी रात का बीच म
लिखी गई हौ लेख
सयसर नाड़ी बहोत्तर कोटा,
जामे रहे एक हंसा
काडी मोडी को थारो पिंजरो
बिना पंख सी जाय
चार वेद बृम्हा के है,
सुणी लेवो रे भाई
अंतर पर्दा खोल के
दुनिया म नाम धराई
गंगा यमुना सरस्वती जामे है जल नीर
दास कबिर जा की बिनती
राखौ चरण आधार

जोगी ढ़ुढ़ण हम गया

जोगी ढ़ुढ़ण हम गया,
कोई न देखयो रे भाई
एक गूरु दुजो बालको,
तीजो मस्त दिवानो
छोटा सा आसण बैठणा
जोगी आया हो नाही
जोगि की झोली जड़ाव की,
हीरा माणीक भरीया
जो मांगे उसे दई देणा
जोगी जमीन आसमाना
आठ कमल नौ बावड़ी,
जीन बाग लगाई
चम्पा चमेली धवळो मोंगरो
जीनकी परमळ फास
पान छाई जोगी रावठी,
फुल सेजा बिछाई
चार दिशा साधु रमी रया
अंग भभुत लगाई

अन्त नी होय कोई आपणा

अन्त नी होय कोई आपणा,
समझी लेवो रे मना भाई
आप निरंजन निरगुणा हारे सगुण तट ठाढा
यही रे माया के फंद में
नर आण लुभाणा
कोट कठिन गड़ चैढ़ना,
दुर है रे पयाला
घड़ियाल बाजत पहेर का
दुर देश को जाणा
कल युग का है रयणाँ,
कोई से भेद नी कहेणा
झिलमील झिलमील देखणा
मुख में शब्द को जपणा
भवसागर को तैर के,
किस विधी पार उतरणा
नाव खड़ी रे केवट नही
अटकी रहयो रे निदाना
माया का भ्रम नही भुलणा,
ठगी जासे दिवाणा
कहेत कबीर धर्मराज से
पहिचाणो ठिकाणाँ

सोंहग बालो हालरो


सोंहग बालो हालरो,
हारे निरमळ थारी जोत
नदी सुक्ता के घाट पर,
बैठे ध्यान लगाई
आवत देखीयो पींजरो
हारे लियो कंठ लगाई
सप्त धातु को पींजरो,
हारे पाठ्याँ तिन सौ साठ
एक कड़ी हो जड़ाँव की
वा पर कवि रचीयो ठाट
आकाश झुलो बाँधियाँ,
हारे लाग्या त्रिगुण डोर
जुगत सी झलणो झुलावजो
हारे झुले मनरंग मोर
नही रे बाला तू सुतो जागतो,
बिन ब्याही को पुत
सदाशीव की शरण म आयो
हारे झल बाँझ को पुत
अणहद घुँघरु बाजियाँ,
अजपा का मेवँ
अष्ट कमल दल खिली रयाँ
हारे जैसे सरवर मेवँ

कोई नी मिल्यो म्हारा देश को

कोई नी मिल्यो म्हारा देश को,
हारे केक कहूँ म्हारा मन की
देश पति चल देश को,
हारे उने धाम लखायाँ
चिन्ता डाँकन सर्पनी
काट हुंडी लाया
मन को चहु दिशा छोड़ दे,
साहेब ढूँढी कावे
ढूँढे तो हरि ना मिले
हारे घट में लव लावे
लाल कहू लाली नही,
जरदा भी नाही
रुप कहु तो हैं नही
हारे व्यापक सब माही
पाणी पवन सा पतला,
जैसे सुर्या को धाम
जैसे चंदा की हो चाँदनी
हारे साई हैं मेरो राम
पाव धरन को जगह नाही,
हारे मानो मत मानो

मन भवरा तो लोभीया

मन भवरा तो लोभीया,
माया फुल लोभाया
चार दिन का खेलणा
मीट्टी में भील जाणा
उगो दिन ढल जायेगा,
फुल खिल्या रे कोमलाया
चड़ीयाँ हो कलश मंदिर म
आसा जम मारीयाँ जाय
कीनका छोरा न किनकी छोरीया,
किनका माय नी बाप
अन्त म जाय प्राणी एकलो
संग म पुण्य नी पाप
यहा रे माया के फंद को,
भरमी रयो दिन रात
म्हरो‌२ करतो प्राणी मरी गया
मिट्टी मांस का साथ
छत्रपति तो चकी गया,
गया लाख करोड़
राजा करता तो नही रया
जेको हुई गयो खाक
पींड गया काया झरझरी,
जीन हुई गया नाश
कहत कबीरा धर्मराज से
निर्मल करी लेवो मन

आणो आयो रे पारीब्रम्ह को

आणो आयो रे पारीब्रम्ह को,
सासरिया को जाणो
चालो म्हारा संग की सहेलीया,
आपुण पाणी क जावा
उंडो कुवो न मुख साकरो
आन रेशम डोर लगावा
चालो म्हारा संग की सहेलीया,
आपुण बाग म जावा
चंपा चमेली दवळो मोगरो
फूल गजरा गुथावा
चालो म्हारा संग की सहेलीया,
आपुण शीश गुथावा
कछु गुथा न कछु गुथणा
मोतीयाँ भांग सवारा
चालो म्हारा संग की सहेलीया,
आपुण चोली सीलावा
कछु सीवी न कछु सीवणा
चोली अंगा लगावा
कहत कबीर धर्मराज से,
साहेब सुण लेणा
सेन भगत जा की बिनती
राखो चरण आधार

ऐसी हो प्रीत निकालजो

ऐसी हो प्रीत निकालजो,
जग मे होय नी हाँसी
बैठे बामण चन्दन घसे,
थाड़ी कुबजा हो दासी
फुल फुल्यो रे गुललाब को
माला गुथो हो खासी
राम नाम संकट भयो,
दिल फिरे हो उदासी
तुम हो देवन का देवता
प्रभू तुमन हो राखी
जल डुबन बर्तन तैरिया,
गज कुजर हाथी
पथ राज्यो प्रल्लाद को
लाज द्रोपती राखी
दास दलु की हो बिनती,
राखो चरण लगाई
मृत्यू लोक कैसे जायेगा
मन चिंता उपजाई

सीता राम सुमर लेवो

सीता राम सुमर लेवो, तजी देवो सब काम

सपना की संपत भई, बाधो रे जगराज
भोर भई उठ जागीयाँ, जीनका कोण हवाल
बीगर पंख को सोकटो, उडी चलीयो रे आकाश
रंग रुप वोको कछु नही, वक भुख नी प्यास
वायो सोनो नही उपजे, मोती लग्या रे डाल
भाग बिना नही मीले, तपसंया बीन हो राज
राजा दशरथ की अयोध्या, लक्ष्मण बलवीरा
माता जीनकी हो कोशल्याँ, जीन जल्मीयाँ रघुबीरा
अनहद बाजा हो बाजीया, सतगुरु दरबार
सेन भगत जा की बिनती, राखो चरण आधार

खेती खेडो रे हरिनाम की

खेती खेडो रे हरिनाम की,
जामे मुकतो हे लाभ
पाप का पालवा कटावजो,
काठी बाहर राल
कर्म की फाँस एचावजो
खेती निरमळ हुई जाय
आस स्वास दोई बैल है,
सुरती रास लगाव
प्रेम पिराणो कर धरो
ज्ञान की आर लगाव
ओहम् वख्खर जुपजो,
सोहम् सरतो लगाव
मुल मंत्र बीज बोवजो
खेती लटा लुम हुई जाय
सन को माँडो रोपजो,
धन की पयडी लगाव
ज्ञान का गोला चलावजो
सुआ उडीउडी जाय
दया की दावण राळजो,
बहुरि फेरा नही होय
कहे सिंगा पयचाण लेवो
आवा गमन नी होय

ऐसो करम मत किजो रे सजना

ऐसो करम मत किजो रे सजना
गऊ ब्राम्हण क दिजो रे सजना
रोम रोम गऊ का देव बस रे,
ब्रम्हा विष्णु महेश
गऊ को रे बछुओ प्रति को हो पाळण
क्यो लायो गला बांधी
दुध भी खायो गऊ को दही भी जमायो
माखण होम जळायो
गोबर गोमातीर से पवित्र हुया रे
छोड़ो गऊ को फंदो
सजन कसान तुक जग पेरयासो,
धकील माँस म्हारो
सीर काट तेरे आगे धरले
फिर करना बिस्मला
तोरण तोड़ू थारि मंडप मोडू
ब्याव की करु धुल धाणी
लगीण बारत थारो दुल्लव मरसे
थारा पर जम मरासे
कबीर दास न गवा मंगाई
जल जमुना पहुचाई
हेड डुपट्टो गऊ का आसु हो पोयचा
चरो चारो न पेवो पाणी

जन्म दियो रे हरी नाम न

जन्म दियो रे हरी नाम ने,
आरे खुब माया लगाई
मृत्यु की माया आवीया,
सब छोड़ी रे आस
जम आया रे भाई पावणा
आन मारे सोटा को मार
रोवता बालक तुम न छोड़ीयाँ,
आरे माथा नई फेरीयो हाथ
दुःशमन सरीका हो देखता
झुरणा दई हो जाय
बारह दिन जन्मी सती,
पुरण जन्म की भक्ति
जेम धरम से हो तु भया
कैसा उतरा हो पार
कोप किया रे मन माही,
घरघर आसु बहावे
हंसा की पंछी नही आवे
हस्ता बोलता पंछी उड़ी गया,
मुरख रयो पछताय
झान मीरदिंग घर बाजी रया
सिंग बाजे द्वार

कहा तक तोहे समझाऊ

कहा तक तोहे समझाऊ,
मन म्हारा
हाथी होय तो तोहे शाकल मंगाऊ,
पाव म जंजीर डलाऊ
लई हो मऊत थारा सिर पर डालू
दईदई अकुंश चलाऊ
लोहा होय तो तोहे घमण मंगाऊ,
उपर घमण चलाऊ
लई रे हथौड़ी जाको पत्र मिलाऊ
जंतर तार चलाऊ
सोना होय तो सुहागी मंगाऊ,
कयड़ा ताव तपाऊ
तुन हो फुक मारी म्हारा तन की
कर गला नीर पाणी
घोड़ होय तो लगाम मंगाऊ,
उपर झीण कसाऊ
चैड़ पैगड़ा ऊपर बैठू
आन चाबुक दई न चलाऊ
ग्यानी होय तो ज्ञान बताऊ,
ज्ञान की बात सुणाऊ
कहत कबीरा धर्मराज से
आड़ ज्ञानी से आङू

पढ़ो रे पोपट राजा राम का

पढ़ो रे पोपट राजा राम का,
सीता माई न पढ़ायाँ
भाई रे पोपट थारा कारणा,
खासा पिंजरा बणायाँ
उसका रंग सुरंग है
उपर चाप चड़ायाँ
भाई रे पोपट थारा कारणा,
खासा महल बणायाँ
उसका रंग सुरंग है
भीतर झरोका लगाया
भाई रे पोपट थारा कारणा,
खासा बाग लगायाँ
चंपा चमेली धवळो मोंगरो
वामे केवड़ा लगायाँ
भाई रे पोपट थारा कारणा,
खासा कुँवा खंडाया
कुँवा खडया घणा मोल का
पाणी पेण नी पाया
अनहद बाजा बाजीया,
सतगुरु दरबारा
सेन भगत जा की बिनती
राखो चरण अधार

होत आवेरो निज धाम को

होत आवेरो निज धाम को,
गुरु न भेज्यो परवाणो
हम कारज निर्माण किया,
परमेश्वर को जाणु
मोल रच्यो निजधाम को
जाकर होय रे ठिकाणा
आरे हल्ला बिहार के,
काई लावो रे बयाना
कस के कमर को जायगो
जामे साध समाना
बहु सागर जल रोखीयाँ,
देव झबर निसाणा
चेहरा देखो निहार के
काहे दल को हो धाम
नाम शब्द ने हो राखजो,
बैकुंट को जाणु
सब संतन का सार है
चाहे सोत परवाणो
तीरवर परवाणो कोजीये,
नही देणा भेद
गुरु मनरंग पहिचाणिया
मानो वचन हमारो

चलो मनवा रे जहाँ जाइयो

चलो मनवा रे जहाँ जाइयो,
संतन का द्वारा
प्रेम जल नीरबाण है
आरे छोटी जायगा निवासी
मन लोभी मन लालची,
मन चंचल चोर
मन का भरोसाँ नही चलीये
पल पल मे हो रोवे
मन का भरोसाँ कछु नाही,
मन हो अदभुता
लई जायगा दरियाव मे
आरे दई दे गरे गोता
मन हाथी को बस मे करे,
मोत है रे संगाता
अकल बिचारी क्या हो करे
अंकुश मारण हारा
सतगुरु धोबी है,
साब सिरीजन हार
धर्म शिला पर धोय के
मन उजला हो कर लो

अमर कंट निज धाम ह

अमर कंट निज धाम है,
नीत नंहावण करणा
वासेण जाल से हो निसरी,
माता करण कुवारी
कल युग महो देवी आवियां
कलूकर थारी सेवा
बड़े बड़े पर्वत फोड़ के,
धारा बही रे पैयाला
कईयेक ऋषि मुनी तप हो करे
जल भये रे अपारा
पैली धड़ ॐकार है,
ऐली धड़ रे मंघाना
कोट तिरत का नावणा
नहावे नर और नारी
मंघावा के घाट पे
पैड़ी लगी रे पचास
आम साम रे वाण्या हाटड़ी
दूईरा लग रे बजार

राम भरोसे हम रया

राम भरोसे हम रया, कछु खबरा नी पाया
रघुवीर गया हो शिकार को, संग में लक्ष्मण भाई
आठ पहर भटकता रहा, संज्ञा हुई घर आया
चित्रकुट के घाट पर, स्वामी मड़ीयाँ बनाई
सुख सम्पन अन्नद भयो, वहा वन फल हो खाया
गढ़ से रावण आवीयाँ, आरे आया सीता द्वार
भिक्षा देवो वो सीता सुन्दरी, हम जोगी हो आया
थारा म्हारा बिच राम रेखा है, भिक्षा नही देवा जोगी
जब रे आवे राम लक्ष्मणा, भिक्षा तोहे वो देवा
आड़ी हो पटरिया डाल के,, भीक्षा देवो हो माही
कब रे आवग राम लक्ष्मणा, मोहे होवे रे देर
आड़ी हो पटरी डाल के, भीक्षा देती हो माही
जोगी ने रुप बदल हो लियाँ, लईगो लंका के माही
वन से राम जब आवियाँ, सुनी मड़ीया हो पाई
राम कहे रे लक्ष्मण से, बाहर देखो रे भाई
एक लकड़ीयाँ नाही जले, नाही होवे रे उजाला
राम न धनुष चड़ाईयाँ, तब होवे रे उजाला






माय चली कैलाश को

माय चली कैलाश को
आरे कोई लेवो रे मनाय
पयलो संदेशो
उनकी छोरी न क दिजो
आरे दूजा का लोग
तिसरो संदेशो
उनका छोरा न क दिजो
चवथो साजन को लोग
हरा निला वास को डोलो सजावो
उड़े अबिर गुलाल
कुटुंब कबिलो सब रोई रोई मनाव
आरे मुख मोड़ी चली माय
बारह बोरी की उनकी पंगत देवो
आरे उनकी होय जय जयकार

दुखः सुखः मन म नी लावणा,

दुखः सुखः मन म नी लावणा,
रघुनाथ नी घड़ीया
हरिशचँद्र सरीका हो राजा,
जीन घर तारावंती राणी
अपणा सत् का हो कारणा
भर नीच घर पाणी
नल सरीका हो राजा,
जीनकी दमवंती राणी
अपणा सत् का हो कारणा
नही अन्न आरु पाणी
द्रोपती सरीकी हो राणी,
जीनका पांडव स्वामी
चिर दुःशासन खईची हो रयाँ
चीर पुरावे मुरारी
सीता सरीकी महा सती,
जिनका रामचंद्र स्वामी
रावण कपटी लई हो गया
सुंदर बिल सानी
हनुमान सरीका हो महायोद्धा,
बल मे रे बल वंता
सीता की सुद हो लावीयाँ
चड़े तेल लंगोटा

काया नही रे सुहाणी भजन बिन

काया नही रे सुहाणी भजन बिन
बिना रे लोण से दाल आलोणी
गर्भवास म्हारी भक्ति क भूली
न बाहर हूई न भूलाणी
मोह माया म नर लिपट गयो
सोयो तो भूमि बिराणी
हाड़ मास को बणीयो रे पिंजरो
उपर चम लिपटाणी
हाथ पाव मुख मस्तक धरीयाँ
आन उत्तम दीरे निसाणी
भाई बंधु और कुंटूंब कबिला
इनका ही सच्चा जाय
राम नाम की कदर नी जाणी
बैठे जेठ जैठाणी
लख चौरासी भटकी न आयो
याही म भूल भूलाणी
कहे गरु सिंगा सूणो भाई साधू
थारी काल करग धूल धाणी

हरे नोटिस आयारे राजा राम को

हरे नोटिस आयारे राजा राम को,
तामील कर लेना
जमपती राजा आई बैठा,
अरे बैठा पंख पसार
हंसराज को हो लई हो गया
लईगया स्वर्ग का द्वारा
काया सिंगारी राई आगणा,
झुरीया रे सारा
सब साज घर बाजी रयाँ
उड़े रंग गुलाला
माता रोवे रे थारी जलमी,
बईण वार त्योहारा
तीरया रोयवे थारी तीन घड़ी
दुसरो घर बारा
कहत कबिर धर्मराज से,
साहेब सुण लेणा
अन्त का परदा हो खोल के
जीनको अन नी पाणी

आवजो आवजो रे नंदजी का लाल

आवजो आवजो रे नंदजी का लाल गोकूल जरा आवजो
मत जावो रे कुबजा द्वार गोकूल जरा आवजो
जब से ब्रज में तुम आये, छाई खुशी अपार
बाबा नंद को इःख हरयो, हरयो भूमी को भार
= तुम निरधन का रे आधार
कुबजा दासी कंस की, मोह लियो घनश्याम
दासी पर राजी हुया, धन धन श्री भगवान
= याद कर थारी यशोदा माय
प्यासी ब्रज की ग्वालणी, तरसे जमुना को निर
ग्वाल बल तरसे घणा, गईया धरे न धीर
= तुम प्रेम की सुणजो पुकार रे
बाबा नन्द को लड़ीलो, माया बड़ी अपार
भक्ति से मोहबत करे, मुरख करे विचार
= प्रभु राखो ते चरण आधार रे

तेरो कान अलवारी हो जसोदा

तेरो कान अलवारी हो जसोदा
म्हारी राधे पे अखीयाँ मारी हो जसोदा
भरी पिचकारी मोरी राधे पे मारी
हा वो असी चुनरी भिगोई सारी हो
जल जमुना पाणी हाऊ गई थी
हा वो असो पीछे से कंकर मारी हो
माखन मिश्री को वालो चोरी चोरी खावे
हा वो असी दहीया की की मटकी फोड़ी हो
बिन्द्रा जो बन म रास रच्यो हैं
हा वो असी १६ सो गोपीया नाचे हो
मीरा बाई के रे प्रभू गिरधर नागर
हा वो असा हरणा हरक गुण गाव हो

हाथ जोड़ी न करा अरदास

हाथ जोड़ी न करा अरदास, पिया न म्हारी नही मानी
नही मानी हाटेला न बात, समझ की नही मानी
पाव दियो पंश्र में लियो, न घट्यो सजन को मान
पर नारी के कारणे, न हो गई धाव की जान
= सब डूबी गया रे हथियार रे
एक नारी दुबारा भी, न पर धाम असवार
एक भाई विषयर सही, न भोगे हावे वर दास
= आरे बात कहे रे मंदोदरी नाथ
बंदई दियो समुद्र पर फुल, न देख्यो हरी को खेल
बरसऽ नीर हाथ मे, देखन आय हरी का खेल
= अब लंका आये भगवान
दस पेड़ तो पड़ने दे, मन मे राखी धीर
जो कारण सीता हरी, तीलक करे रघुवीर
= नानु मोती राम करे अरदास

भूला रे भटका आया मुसाफीर

भूला रे भटका आया मुसाफीर पनघट उपर सजनी खड़ी।
हस कर घुंघट खोल सुंदरी हमको पिला देना पाणी॥
दुर देश से आया मुसाफीर सुरत देख कर रया खड़ा।
कर जोबन का मोल सुंदरी फिर भरना पानी का घड़ा॥
हुकरा रे तुकरी होने लगी फिर दोनो मे पड़ गया झगड़ा।
जरा मुख से बोल सुंदरी मेरे पास दौलत का घड़ा॥
मेरा महेल तो सबसे हो ऊँचा जड़े काँच सब दुर अयना।
दरवाजे पर रंग ढूला है हाथी की चिल्कार बड़ी॥
मेरे महेल की चार दिवारे उसकी हो रखणा पयचाणी।
जरी पाँच का निसाण उड़ता वहा की बड़ी मौजादारी॥

अभीमन्यू को दुःख सळ

अभीमन्यू को दुःख सळ, सुभद्रा इलवल इलवल
इलवल रे महाराज सुभद्रा इलवल इलवल
घोड़ा छोड़ीया रथ मऽ जोत्याँ, बैठी सुभद्रा माय हो
दुर्ग का मारग भूली गया रे
आरे आसी लगी गई ठंडी लाय
हुयो भमसारो चिड़ीयाँ बोली, डावा बोल्याँ काग हो
दातुन की थारी बखत हुई रे
आरे वो उठी न भोजन मांग
जिरीदार तो वाको पेरीयाँ,
माथ कुसूमल पाग हो
करण फुल थारा हाली रया रे
तु सुतो सोनेरी बाग
नकुल सहदेव तो देवर हमारा,
धरम मोटा जेट हो
अर्जुन जी तो पती हमारा
आरे भाई उनकी छे हाऊ नार

बिंद्राबन म बंशी बाजी बाजी

बिंद्राबन म बंशी बाजी बाजी रही मझदार
सखी म्हारी बाजी रही मझदार
कैसो छे वो थारो बिंद्राबन राधे कैसो गोकूल गाँव
कैसो छे वो थारो कुवर कन्हैयो
अरे काई छे उनको नाम
निचो छे वो थारो बिंद्राबन राधे उचो गोकूल गाँव
सावलई सुरत को थारो कुवर कन्हैयो
आरे कृष्ण छे उनको नाम

हरि भजन बीन नही मख सुद रे

हरि भजन बीन नही मख सुद रे
काऽ गयो चतुर सुजान
लख चौरासी नर फिरी आयो रे
असो ति भी नही गयो अंहकार
नव महीना तक गर्भ म रईयो
असो बायर हुयो बईमान
राम नाम तुन नही लीयो रे
असो पाप कऽ धरी लियो हाथ
बाळ पणो तुन खेल मऽ गवायो
भरी जवानी तिरीयाँ को साथ
आयो बुडापो देख क्यो रोयो रे
थारा सिर पर घुमी रईयो काळ

बिती गयो आसाड़ के रो मास

बिती गयो आसाड़ के रो मास, सरावण बिती रे चल्यो
पाणी नही मिल्यो रे पल भर रे
नदी नाला सुखा भया, सुखी भई सरवर पाल
मोर पपिहा बोली बोले, बोली लगे उदास
= पाणी की पड़ी हड़ताल रे
गऊवा तरसे बछड़ा तरसे, तरसे नर और नार
देवन से बिनती करे, और पुजा करे हर बार
= चारा की पड़ी हड़ताल रे
श्रावण सुदी पंचमी, आयो इन्द्र राय
खुशी भई दुनिया सभी, हरो भयो बनवास
= पंछी दुनिया रही गीलकाय रे
सन् ६३ के साल में, गरबी बणी तत्काल
छोगालाल बिनती करे, प्रभू से बारम्बार
= प्रभू तुम ही लगावो बेड़ा पार रे

जल जमना पाणी जाण दरी मक

जल जमना पाणी जाण दरी मक
म्हारा माथा पर चोमळ अवजक धरी
नाम थारो नटवर नागर छेः श्याम
माथा पर घागर लगी रयो धाम
घाट पर ठाट लग्यौ जाण दरी
दिन म दीवानी न उज्जैन को राज
चंदा की चांदनी को देखो तुम साज
चम चम चमकर मोती की लरी
मोहन का बोल तु मन म समाळ
क्यो खाई राधा तु न शिर पर साळ
लाल लाल होट थारा हुया दुखरी
खोटा खरा की हमन करी पयचाण
मोहन की घाणी म क्यो नाख्यो घाण
मुरकी कहे तुन बावरी करी

है रे काना एक वारी गली म्हारी

है रे काना एक वारी गली म्हारी आईजा
थारी बन्सी की धुन सुणाईजा
मोर मुकूट सिर छत्र विराजे(मोहन)
थारा कुन्डल की झलक दिखळईजा
बिन्द्रा जो बन म कानो रास रचावे
थारी राधा को मन समझाईजा
जमना कीनारे कानो धेनू चरावे
गुवाल बाल न क गेद खेलईजा
नरस्यानु स्वामी न,अंतरयामी
जमना तट प रास रचाईया

बाण लाग्या छे लक्षमण भाई न

बाण लाग्या छे लक्षमण भाई न
जीन सजीवन बुलाई रे रघुराई न
अंजनी को लाल हनुमान पेलवान
जीन सजीवन का बीड़ा उटाई न
जहा सजीवन वहा लगी जगा जोत रे
जीन पर्वत लियो उठाई न
पर्वत क लई न चल्या हनुमान पेलवान
बाण मारीया छे भारत भाई न
राम नाम लियो उतो धरती म गीरयो रे
जीन भूमि क दी रे हिलाई न
हुई गी रात भवर हुई रे प्रभात
रामचन्द्र न रुदन मचाई न
नई आयो हनुमान नई लायो सजवनी
छेः महीना की रात बड़ाई न
भरत का बाण पर बठीया हनुमान
गड़ लंका म दियो पहुचाई न
आई गयो हनुमान लई आयो सजवनी
भाई लक्षमण का प्राण बचाई न

जय जय जगदम्बे मात अम्बिका

जय जय जगदम्बे मात अम्बिका भवानी
चरण शरण लिजे मात अम्बिका भवानी
हिंगलाज से चली मात चौसठ योगिनी सात
लंगूर त्रिशूल हाथ भैरव अगवानी
शुब्र मुकूट शिश धार पवन कंट पुष्प हार
अष्ट भुजा शिश हाथ सिह पर सुहाणी
पिकर मत अतिअपार नैन न पर अति अंगार
देवता की निज वार मृत्यु लोग ठाणी
संतन प्रती पालकी न दुष्ट न क संग्रहारती
हरी दास ज्ञान की भरत भवानी

म्हारा मयंदी सी रंगीयाँ दोई हाथ

म्हारा मयंदी सी रंगीयाँ दोई हाथ रे,
घागर मंहारी भर दिजो
भर दिजो नन्द जी का लाल रे
घागर मंहारी भर दिजो
घागर भरो सिर पर धरो, चलो हमारी साथ
भक्ति से मोहाब्बत करो, मुरख माने पाप
= म्हारा माथा को बोझ तो उतार
मत समझो काहना ऐकली, सखीया म्हारी साथ
प्रेम पिया की लाड़ली, गुजरन म्हारी जात
= घबरी घबरी पाणी की धार भरे
बरसे नाना गज रे, जमना जी के घाट
आज मीले नन्दलाल जी, बिंद्रावन की वाट
= म्हारी छे रे उमर नादान रे
मैं कुवारी ना रही, ब्याही गई परदेश
एक पुरुष की नार हूँ, सुंदर म्हारो वेष
= गोपी आई छे मन में धार रे
लक्ष्मी पति के कर बसे, पाँच अरब मीत लेत
पहला अक्षर छोड़ के, बचे सो हमको देत
= या को सुरता करो बिचार रे

माता गवरा का लाल गजानन


माता गवरा का लाल गजानन नमन करा बार बार
रिद्धी सिद्धी स्वामी चवर ढूलारे करी सेवा सार
कार्तिक स्वामी जी भाई तुम्हारा
शीव शत्रु का रे दुलार
दुध दिप से आरती उतार स्वामी करी जय जय कार
मोदक लाड़ू भोग लगावो
प्रभु मूसा हुया असवार
एक दंत स्वामी दया का सागर सबको करो रे उद्धार
चार भुजा गल फुलन की माला
प्रभू महीमा छे अपरम पार
सब देवन म उचा सिंहासन करी रया जय-जय कार
अमर नाम के श्री गजानन
राखो चरण अधार

आरे हा हा रे मञदी रंग लाई

आरे हा हा रे मञदी रंग लाई
रंग लाई केसरीयो लाल मञदी रंग लाई
मञदी घोई न गड़ माता वो न म्हारा वाला
आसो रंग गयो न गुजरात
मञदी वाटू न हाऊ लसर लसर न म्हारा वाला
आर वो आसो बाजुबंद झोळा खाय
मञदी लगई न दोनो हाथ में न म्हारा वाला
आसा हाथ हुवा न लालमँ लाल
मिरा बाई न मञदी लगई न म्हारा वाला
आरे आसी हरक हरक गुण गाय

कयसी बंसी बजई रे नंदलाल

कयसी बंसी बजई रे नंदलाल सुणी हाऊ हुई बावरी
थारी बंसी म मोया नर नार सुणी हाऊ हुई बावरी
सीर पर मोहर मुकूट हैं, गले में मोहन माल।
कानौ में कुण्डल झुले, न शोभा लगती अपार॥
थारा सागर म खोया नोपी ग्वाळ
कंचन कमल मेवा धरे, अन मोहन गैया चराय।
सब ग्वालण को रोककर, लुट कर माखन खाय॥
कैसे मांगे गले का मोहन हार
सब ग्वालण न मत कियो, गई जसोदा के पास।
तेरो कान अलवारी है, अब रोखे जंगल माय॥
नही जाने दे मथुरा को हाट
नरस्यानुस्वामी न सावरा, न रुड़ा से रास रमाय।
मीरा के प्रभू गिरधर नागर हरी हरक गुण गाय॥

राणी सुभद्रा कहे समझाय

राणी सुभद्रा कहे समझाय समर म मत जावो
मत जावो न प्राण आधार समर म मत जावो
हाथ जोड़ी बिनती करे, अन सुणो वीर भरतार
न्यू की रचना रची न गुरु है द्रोणाचार्य
वहा बल बुद्धी का रे अपार
उमर भी नादान है और कौरव बड़ा बतकार
न्यू की रचना बड़ी कठीन है पिया कैसे पावोगे पार
ना संग म किसी को आधार

कसा लेख लिख्या म्हारा

कसा लेख लिख्या म्हारा सिरजण हारा
करुणा करी करी रोव कसी तारा
कहा छोड़ी अवध न कहा छोड़ी कासी
रोहीत छोड़ीया न थारा चरण की दासी
फुटी गयो भाग न तकदीर हमारा
अब का रे बिछड़ा कब होय मिलना
हरिशचन्द्र का भरी आया नयणा
रोहीत लाल रोव कसो सय सय धारा
खाजो पिजो न स्वामी राज तुम करजो
सुख दुःख की बात न क ध्यान मती धरजो
श्री करतार करे भव से पारा
अखण्ड दिजो मख चुड़ीलो अवात
यही वर पाऊ म्हारा दीना नाच
पाऊ किनारा न गंगा की धारा

बैठ पयाल उड़ाया राम को


बैठ पयाल उड़ाया राम को, जरा सुद
हई रावण न सुरुंग लगाई, रामा दल म आयो
राम रे लक्ष्मण सोया भुमी पर, जरा आल नही आई रे
पय फाट्यो रे सुरीजमल उज्यो, राम नजर नही आयो
बड़ा जोधा कर रखवाली, जरा भेद नही पायो
हनुमान जोधा ऐसा रे करीया, दुम का रे कोट बणाया
चन्दा हो सुरज धर धर कापे, धरती न रस्तो बतायो
जब रे हनुमान चल्या लेणक, गीद न शब्द सुणायो
दो रे मुसाफीर का मांस लावजो, जिनकी देवी क चड़ावो
मगरधज और हनुमान का, युद्ध हुआ रे बड़ा भारी
मगरधज को मार घीसेटीयो, जिनको मुसक चड़ायो
जब रे हनुमान चल्या पयताळ, देवी का मंदिर जावे
नल्यो गल्यो रे सब कोई खावे, मंदिर काग उड़ायो
हई रावण ने कड़क उड़ाई, सुमरो श्री जन हारी
धीरसी लक्ष्मण ऐसा रे कैता, हनुमान लेता छोड़ाई

थारा मंदीर म लागी जगा जोत

थारा मंदीर म लागी जगा जोत देवी म्हारी अन्नपूर्णा
अन्नपूर्णा पुरण म्हारी आस देवी म्हारी अन्नपूर्णा
चनन बूलाई न भवन लीपाऊ देवी अन्नपूर्णा
गज मोतीयन चोक पुराऊ देवी म्हारी अन्नपूर्णा
कंचन भवन बिच आप बिराजो देवी अन्नपूर्णा
आसा नारियल तोरण लगाऊ देवी म्हारी अन्नपूर्णा
पावा जो गड़ म मईयाँ आप बिराजो देवी अन्नपूर्णा
थारा हाथ म सोळा सौ तलवार देवी म्हारी अन्नपूर्णा
नव दिन लावा तुख पावणी देवी अन्नपूर्णा
थारा भक्त न की राखी लिजे लाज देवी म्हारी अन्नपूर्णा

मने पियरीयो हैवालो लाग

मने पियरीयो हैवालो लाग रे पिता जी
ना जाऊ सासरीयो
सासरा म पिता म्हारी सासू खराब छे
मख मार छे लकड़ी को मार रे पिता जी
सासरा म पिता म्हारी नंदण खराब छे
मख बोल छे आसला मसला रे पिता जी
सासरा न पिता म्हारी देराणी खराब छे
आसो देवर हुयो न नादान रे पिता जी

जय जय जय जगदम्बा

जय जय जय जगदम्बा जय माँ काळई हो
माई महा बिकराळ खप्पर वाळई हो
हम नव दुर्गा नव रात मनावा माता अम्बे हो
हो हम गाँवा छेः मंगळावार देवी महा वाळई हो
देवीः अष्ट भुजा बिकराळ खप्पर वाळई हो
हो असा बकरा मारत निदान छेः मतवाळई हो
देवी किया छेः १६ सिनगार बड़ी चनगाळई हो
असा भुत क मारे मार संत पिचकाळई हो
देवी आत्मानन्द सेवक न पाळई हो
असा सेवक छेः चरण आधार पावागड़ वाळई हो

बैदड़ सोक की कहु रे जगत

बैदड़ सोक की कहु रे जगत म, बुरी भई लड़ाई।
आरे पुरब जन्म को बैर रांड वा लेने को आई॥

पहली लुगाई मिली ब्याव की उमर में छोटी रे।
करो म्हारो दुसरो ब्याव म्हारा घर दौलत कीनी कम थी।
हितु भाई मिल बैट ज्वान की आकल सला होती।
फेकी नीघा चौ तरफ की लड़की मिली उमर म मोटी।
प्याराजी लालुच म डाल कर ब्याव कीया था उसका।
प्याराजी वो नही जाणे पड़े रे फजीता घर का।
करण हार करतार करम म् छटी जो लिखी गई॥

हितु भाई मिल बैठ कमेटी टीप लिख वाई रे भाई होण।
जल्दी करो तैयारी हल्दी लगने की घड़ी आई।
आज करो तैय्यारी काल तुम जात जिमाड़ो रे।
लगी रही दौड़ा दोड़ सुंदर को जल्दी लावो ब्याई।
प्याराजी पियर म खबर होने नही हो पाई।
पियर खबरा पाई रातभर नींद नही आई रे॥

बड़ी फजर परभात हुयो भमसारो न पय फाटी।
माय बाप नकी छोरी सुंदर घर से भागी।
हितु भाई जहाँ बैठ ब्याव की सभा कैसी बैठी।
आवत देखी सुंदर क सब नकी होय भागा भागी।
प्याराजी कहु हाथ जोड़ी अरदास घड़ेक ठाड़ा रहीजो।
प्याराजी मन काई करयो अपराध मक तुम कईजो।
ये कहा रे हितु भाई सेज म्हारी नदी म डोबाई रे॥

हाथ जोड़ी आरदास म्हारा सी काई तुम दुख पाई।
पुरब जन्म को बैर म्हारा पर बैंदड़ को लाई।
बाल पणा संग रया सेज संग धोती पर राजी॥

देवी थारो दुध छे केवळ पारीबृह्म

देवी थारो दुध छे केवळ पारीबृह्म
संजोणी हरी जी की काम धेनू हो
कामधेनू तो आकाश रहेती,
हिरद चारो चरती
त्रिवेणी को पाणी पीती
भाई रे उनमुनी करत गुठाण
साँझ पड़े संजोणी घर आवे,
ओहं हुकरे बाळो
मन वाछरु ऊराठो ध्यावे
भाई रे छोड़्यो तो प्रेम को पानो
सतगुरु आसण धुवण बैठे,
तुरीया दवणो हाथ
अनहद के घर घुम्मर बाजे
भाई रे धुवत अखंड दिन रात
बृह्म अगन पर दुध तपायो,
क्षमा शांति लौ लागी
अरण वरण म दही जमायो
भाई रे बृह्म में बृह्म मिलायो
सोहंम शब्द की रवी बणाई,
घट अंदर लौ लागी
माखण माखण संत बिलोयो
भाई रे छाँछ जगत वरतायो
कामधेनू सतगुरु की महीमा,
बिरला जन कोई पावे
कहे जण सुंदर गुरु की किर्पा
भाई रे जोत म जोत समाय