मन भवरा तो लोभीया,
माया फुल लोभाया
चार दिन का खेलणा
मीट्टी में भील जाणा
उगो दिन ढल जायेगा,
फुल खिल्या रे कोमलाया
चड़ीयाँ हो कलश मंदिर म
आसा जम मारीयाँ जाय
कीनका छोरा न किनकी छोरीया,
किनका माय नी बाप
अन्त म जाय प्राणी एकलो
संग म पुण्य नी पाप
यहा रे माया के फंद को,
भरमी रयो दिन रात
म्हरो२ करतो प्राणी मरी गया
मिट्टी मांस का साथ
छत्रपति तो चकी गया,
गया लाख करोड़
राजा करता तो नही रया
जेको हुई गयो खाक
पींड गया काया झरझरी,
जीन हुई गया नाश
कहत कबीरा धर्मराज से
निर्मल करी लेवो मन
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