बाण लाग्या छे लक्षमण भाई न
जीन सजीवन बुलाई रे रघुराई न
अंजनी को लाल हनुमान पेलवान
जीन सजीवन का बीड़ा उटाई न
जहा सजीवन वहा लगी जगा जोत रे
जीन पर्वत लियो उठाई न
पर्वत क लई न चल्या हनुमान पेलवान
बाण मारीया छे भारत भाई न
राम नाम लियो उतो धरती म गीरयो रे
जीन भूमि क दी रे हिलाई न
हुई गी रात भवर हुई रे प्रभात
रामचन्द्र न रुदन मचाई न
नई आयो हनुमान नई लायो सजवनी
छेः महीना की रात बड़ाई न
भरत का बाण पर बठीया हनुमान
गड़ लंका म दियो पहुचाई न
आई गयो हनुमान लई आयो सजवनी
भाई लक्षमण का प्राण बचाई न
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