Monday, 17 February 2014

भूला रे भटका आया मुसाफीर

भूला रे भटका आया मुसाफीर पनघट उपर सजनी खड़ी।
हस कर घुंघट खोल सुंदरी हमको पिला देना पाणी॥
दुर देश से आया मुसाफीर सुरत देख कर रया खड़ा।
कर जोबन का मोल सुंदरी फिर भरना पानी का घड़ा॥
हुकरा रे तुकरी होने लगी फिर दोनो मे पड़ गया झगड़ा।
जरा मुख से बोल सुंदरी मेरे पास दौलत का घड़ा॥
मेरा महेल तो सबसे हो ऊँचा जड़े काँच सब दुर अयना।
दरवाजे पर रंग ढूला है हाथी की चिल्कार बड़ी॥
मेरे महेल की चार दिवारे उसकी हो रखणा पयचाणी।
जरी पाँच का निसाण उड़ता वहा की बड़ी मौजादारी॥

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