सोंहग बालो हालरो,
हारे निरमळ थारी जोत
नदी सुक्ता के घाट पर,
बैठे ध्यान लगाई
आवत देखीयो पींजरो
हारे लियो कंठ लगाई
सप्त धातु को पींजरो,
हारे पाठ्याँ तिन सौ साठ
एक कड़ी हो जड़ाँव की
वा पर कवि रचीयो ठाट
आकाश झुलो बाँधियाँ,
हारे लाग्या त्रिगुण डोर
जुगत सी झलणो झुलावजो
हारे झुले मनरंग मोर
नही रे बाला तू सुतो जागतो,
बिन ब्याही को पुत
सदाशीव की शरण म आयो
हारे झल बाँझ को पुत
अणहद घुँघरु बाजियाँ,
अजपा का मेवँ
अष्ट कमल दल खिली रयाँ
हारे जैसे सरवर मेवँ
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