है रे काना एक वारी गली म्हारी आईजा
थारी बन्सी की धुन सुणाईजा
मोर मुकूट सिर छत्र विराजे(मोहन)
थारा कुन्डल की झलक दिखळईजा
बिन्द्रा जो बन म कानो रास रचावे
थारी राधा को मन समझाईजा
जमना कीनारे कानो धेनू चरावे
गुवाल बाल न क गेद खेलईजा
नरस्यानु स्वामी न,अंतरयामी
जमना तट प रास रचाईया
No comments:
Post a Comment