अमर कंट निज धाम है,
नीत नंहावण करणा
वासेण जाल से हो निसरी,
माता करण कुवारी
कल युग महो देवी आवियां
कलूकर थारी सेवा
बड़े बड़े पर्वत फोड़ के,
धारा बही रे पैयाला
कईयेक ऋषि मुनी तप हो करे
जल भये रे अपारा
पैली धड़ ॐकार है,
ऐली धड़ रे मंघाना
कोट तिरत का नावणा
नहावे नर और नारी
मंघावा के घाट पे
पैड़ी लगी रे पचास
आम साम रे वाण्या हाटड़ी
दूईरा लग रे बजार
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