"हम परदेशी पावणा दो दिन का मेजवान"
म्हारा गुरू के चरण है गंगा आरे कोई नहाई लेवो लूला अपंगा जोगी हुई न जटा बढ़ाव, बन बन फिर ऊ नंगा माल खाई न देह फुलाव, बणी रयाँ लाल सुरंगा इत सन्यासी उत बैरागी, तीरथ करी रया दंगा कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू, तुम फिरी रया रे अपंगा
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