कसा लेख लिख्या म्हारा सिरजण हारा
करुणा करी करी रोव कसी तारा
कहा छोड़ी अवध न कहा छोड़ी कासी
रोहीत छोड़ीया न थारा चरण की दासी
फुटी गयो भाग न तकदीर हमारा
अब का रे बिछड़ा कब होय मिलना
हरिशचन्द्र का भरी आया नयणा
रोहीत लाल रोव कसो सय सय धारा
खाजो पिजो न स्वामी राज तुम करजो
सुख दुःख की बात न क ध्यान मती धरजो
श्री करतार करे भव से पारा
अखण्ड दिजो मख चुड़ीलो अवात
यही वर पाऊ म्हारा दीना नाच
पाऊ किनारा न गंगा की धारा
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