अजमत भारी क्या कहूँ सिंगाजी तुम्हारी
झाबुआ देश भादर सिंग राजा
अरे जिन गई बाजु को फेरी
जहाज वान ने तुमको सुमरा
अरे जिन डूबी जहाज उबारी
नदी सीपराळ बहे जल गंगा
अरे जिन दुहि झोट कुवारी
कहें जण सिंगा सुणो भाई साधो
अरे थारी माया कीरे बलिहारी
अजमत भारी क्या कहूँ सिंगाजी तुम्हारी
झाबुआ देश भादर सिंग राजा
अरे जिन गई बाजु को फेरी
जहाज वान ने तुमको सुमरा
अरे जिन डूबी जहाज उबारी
नदी सीपराळ बहे जल गंगा
अरे जिन दुहि झोट कुवारी
कहें जण सिंगा सुणो भाई साधो
अरे थारी माया कीरे बलिहारी
संगी हमारा चंचला, कैसे हाथ जोड़ावे
काम कोर्ध विष भरी रया
काशी सुख आवे
आया श्री हरी नाम को, सोदा नहीं रे हिसाया
संगत तोता की नहीं
अरे झुटा संग किया
मिट्टी केरा जी धरिया, पाय मनरंग भरिया
पाव पलक कर धरी
अरे वो फेरा किना
राम सुमर ले प्राणी रे मनवा रूठे राज मनावे रे कोई
साधू की वाणी सदा हो सुहाणी ज्यो झिरिया का पाणी
खोजत खोजत खोज लिया रे
कई हिरा कई काणी
चुन चुन कंकड़ महेल बनाया उसमे भंवर लुभाणी
आया इसारा गया पसारा
झूटी अपणी वाणी
राम नाम की लुट कर बंदे गठरी बांधो ताणी
भवसागर से पार उतर जा
नहीं जाय नरक की खाणी
कहें जण सिंगा सुणो भाई साधो यो पद है निरबाणी
या पद की कोई करो खोजना
गुरु कह गये अमृत बाणी
भीमसिंग लागियो झुला नो केरो दान हड़म्बा झुलणा झूली रही रे
भीमसिंग डावाँ पाँव की ठोकर मारिया हो
आरे आसो झूलो गयो रे गगन का माय
बाबा आज तो देखियो डोलो मालवो रे
आरे असी आवत देखि गड़ गुजरात
भीमसिंग इना झुला क थोड़ो थामी दीजो रे
आरे आसा भीमसिंग तुम पुरुष हम नार
भीमसिंग थारी नजर को एक पूतळ्यो रे
आरे आसा घटुध्वज धरियो वोको नाम
भींमसिंग पाँच भाई चल्या बन का माय रे
आरे आसा घर छोड़ी आया सुभद्रा नार
बाबा रे दास कबीर जा की बिनती रे
आरे आसा राखो ते चरण अधार
बैठे पांडव राज सभा में बैठे पांडव राज
हरकती आई कोतमा माय
अर्जुन भीम नकुल सहदेव, राजा धरम का पास
नकुल सरिका बंधव बैठ्या
सभी हरिगा राज
अभिमन्यु तो पुत्र खावे, आयो सभा के माय
भीमसिंग ने माथा हाथ फेरिया है
लियो गोद उठाय
भीमसिंग तो यो कह बोलिया, सुणो राजा धरम
अभिमन्यु की करो सगाई
लेवा तुम्हरो नाम
राजा धरम तो यो कर बोलिया, पूछो वीर सहदेव
चार वेद जिनका मुख माहि
जाण सभी को भेद
हिरा हेत मनावा आओ म्हारा गणपति देवता
निरमळ नीर गवरा नाहवती अंग मैल उतारे
जाको पुतलो बनाविया
मुख अमरीत रालो
गणपति बणाय के दरवाजे पे ठाड़ी
माता निरंजन नाहवती
कोई अवण नी पावे
शिवजी जब आविया दे दरवाजे पे रोखी
माता हमारी नाहवति
तोहे जाण नी देवा
शिव जी क्रोध जब आविया सीर धड़ सी उड़ाया
गवरा ने सुण पाविया
सीर धड़ से लगाओ
शीव जी जब सीर ढुडीया चवरा फिरि आया
तीन लोक सीर ना मिले
गऊ को सीर लगायो
हर हर हो नरबदा माय उतारा थारी आरती
अमरकंट से तू तो निकलई
आसी आई समुदर का माय
मईया अगल बगल सतपुड़ा विन्द्याचल
थारा दुई दुई भाई कहाय हो
मईया चाँद सूरज थारा खोळा म खेल
आसा मन का मनोरथ होय
मईया राजा रानी थारी परीकम्मा फिर
आसी काया की करो न उधार
मईया दास दासी थारी आरती कर
आसी गलती की करो देवी माफ़
मत कर मान गुमान रे भाई जग में सेवा सुख दाई
ईश्वर का गुड़ समझकर बात बनावणु काई
परभू घट घट की जाणी रया रे
फिर क्यों बात छिपाई
भाड़ा को यो भजन करयो तो मिल्यो डाकू म जाई
झूठो पुन्य बेचकर तू न
झूठो धर्म कमाई
भार भुत या बणी जिन्दगी तुन बिरथा गमाई
जीवन का करतब नि करतो
बणी गई जिन्दगी गंदी
सारा पाप भरयो रे मन म कैसो भजन गाई
ढोल मंजीरा और झांजरी
बिरथा तुन बजाई
अपणा पाप को हिसाब बतईद करील धर्म कमाई
मुफ्त की जो खाई कमाई
दई द पाई पाई
कहें हरिसिंग सुणो रे भाई करो जग म भलाई
दान पुन्य सब करो रे
करी लेवो धर्म कमाई
नानी बाई कर रे अरदास टूट रे नश नाड़ी
हाऊ टक टक देखू वाट न डोला फाड़ी
गरीब बाप छे म्हारो मायरो कुण लावसे
म्हारी सासु मारग बोल कटारी न गडसे
म्हारी नणद बुराई न करसे बोल मख कयसे
म्हारो देवर बड़ो खराब बात न कयसे
म्हारो बाप साधू न की साथ बैल नहीं गाड़ी
म्हारी माँय होती तो आज माण्डवा म आवती
म्हारा माथा फेरती हाथ हाल सब कयती
म्हारो भाई हुतो तो संग म भोजई अवती
म्हारो कुंटुब कबीलों संग म बालक लावती
म्हारा हारा माण्डवा कुण पेरावसे साड़ी
म्हारी करुणा सुणी न आया कृष्ण मुरार
लाया संग राधा रुकमणी जगत करतार
सावलिया सेठ बणी आया हुया तैयार
नानी बाई को सवारयो काज लाया बाजार
हाऊ तुक पेराऊ सायो कुवर क साड़ी
मेहता जी भक्त को प्रभु न बड़ायो रे मान
इना चार युग म हुयो रे अम्मर नाम
म्हारो भगत सिंग न गुरु की बड़ाई शान
कलगी को सायो मन बिड़ो न लई ली आण
ठाकुर भीमसिंग लिख पेन क रे गाड़ी
आनन्दराम दिलदार दोस्त तुम माया गया तोड़ी रे
चड़ी गया निर्मल धाम गेल वैकुण्ठ की सीधी पकड़ी
जलम भूमि गोगाँवा की पैदा हुया न हरी भक्त
बोंदर कन्हैया ने लाड़ लड़ाया न किया परीवस्त
नेम धरम से चलो की नेचो राखो साबुत
सरस्वती होय प्रसन्न धन्न धन्न कहे रे हरी भक्त
कण्ठ बसे हिंगलाज न मुख से बरसे अमरीत
खुड़गाँव में रचा आमीन की वा वा सोबत
प्यारा जी तुम बंकट आनन्दराम पूरा शाहिर
प्यारा जी ये अमर नाम मुलुक में किया जाहिर
प्यारा जी चंग उमर लगायो चूरो ज्ञान के घर
सुखलाल सेठ यो झुरे की जोड़ी हंसा की तोड़ी
सुरत नजर नहीं आवे की भाई की नीर लेड़ पगड़ी
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आनन्दराम की आनन्द मूर्ति न बहोत लगती प्यारी
धन धन श्री करतार राम तुन तसवीर उतारी
एक एक रे गुण की कहाँ तलक हाउ वर्णा करू सारी
जंगल बोल्या मोर भाई की बोली लग प्यारी
फागुन महिना तो आव आनन्दराम खोब खेल होली
गावS राग मल्हार शहर का मोया नर नारी
प्यारा जी मणिहार गाव तो ख्याल राग की सुहाणी
प्यारा जी सब मोया नगर का लोग तज्या अन्न पाणी
प्यारा जी ये उड़ता पंख सी अन गिरीया कई धरणी
कब होय रे भरत मिलाप की ममता एक दम सी तोड़ी
कठोर मन मती करो खबर लई जाजो आवजो दौड़ी
खुड़गाँव दरम्यान आनन्दराम हुआ की बीमार
भीकनगाँव लई गया की सर्जन दवा अच्छी कर
करणहार करतार लेख कर्मो का नहीं टर
आया राम का दूत भाई क देखी गया नजर
आट वेद नौ पुराण वो तो जाणे सास्तर
नौ दिन भक्ति कर हरी की माला नीत फेर
प्यारा जी हुई बापू साहेब की खबर करणा विचार
प्यारा जी तुम आनन्दराम क जल्दी लावजो जरुर
प्यारा जी ज्यो छूट्या उठ्या न जुवान गया दस बारह
जब गया रे भाई का पास भाई तुम बैठी जावो गाड़ी
अरे हरिजी का सुमिरण करो अभी लई जाँवा तुमक दौवड़ी
भीकनगाँव सी चल्या की बैरण नहीं खुट्ती वाट
लाखी ऐलालई म आया भाई की न मची रही घबराट
मदनसिंग यूँ कहें कालूराम घेरीया अड़घाट
कोई रे जुवान अब दौड़ो पाणी लावो रे भाई साट
कोई रे जुवान अब दवड़ा की गोगाँवा की पकड़ी ली वाट
डोली करी तैयार कहार संग म लिया आट
प्यारा जी तुम बैठी जावो डोलई म न लई जावा घर
प्यारा जी तुम जीव क रखो संतोष दुःख होय दूर
प्यारा जी तुम जरा तो मुख सी बोलो ज्वान सब झुर
था आपई आप हुसियार भाई न हिम्मत खोब पकड़ी
तन मन करी कपट प्राण क तिन दिन लियो जकड़ी
आसाड़ महिना की जिगर दोस्त होण बहोत बुरी हुई रे
सातत्व दिन सोमवार नरबदा म नाँव दुँबी गई रे
दूर दूर का आया मुसाफिर काळ घटा छाई
भरी नांव का बिच म कईकीरांड कपटेण बठी गई रे
अवंधी की संवधि चल हवा न कभी जोर की चली रे
टूटी गया नांव का खम्ब नांव गर्र्यी न बठी गई रे
तिस लड़का धामनोद का डूबी गया न चार की बुरी हुई रे
नत्थू पटेल गोपाल संग म नथी कारेण डूबी गई रे
बैदड़ सोक की कहु रे जगत म, बुरी भई लडाई।
आरे पुरब जन्म को बैर रांड वा लेने को आई॥
पहली लुगाई मिली ब्याव म उमर म छोटी ।
करो म्हारो दुसरो ब्याव म्हारा घर दौलत कीनी कम थी।
हितु भाई मिल बैट ज्वान की आकल सला होती।
फेकी नीघा चौ तरफ लड़की मिली उमर म थी मोटी।
प्याराजी लालुच म डाल कर ब्याव कीया था उसका॰
प्याराजी वो नही जाणे पडे रे फजीता घर का॰
करण हार करतार करम म् छटी जो लिखी गई॥
हितु भाई मिल बैठ कमेटी टीप रे लिखवाई ।
जल्दी करो तैयारी हल्दी लगने की घडी आई।
आज करो तैय्यारी काल तुम जात जिमाडो रे।
लगी रही दौडा दोड़ सुंदर को जल्दी लावो ब्याई।
प्याराजी
प्याराजी पियर म खबर होने नही हो पाई॰
पियर जो खबरा पाई रातभर नींद नही आई ॥
बडी फजर परभात हुयो भमसारो न पय फाटी।
माय बाप नकी छोरी सुंदर घर से भागी।
हितु भाई जहाँ बैठ ब्याव की सभा कैसी बैठी।
आवत देखी सुंदर क सब नकी होय भागा भागी।
प्याराजी कहु हाथ जोडी अरदास घडेक ठाडा रहीजो॰
प्याराजी मन काई करयो अपराध मक तुम कईजो॰
ये कहा रे हितु भाई सेज म्हारी नदी म डोबाई रे॥
हाथ जोडी आरदास म्हारा सी काई तुम दुख पाई।
पुरब जन्म को बैर म्हारा पर बैंदड़ को लाई।
बाल पणा संग रया सेज संग धोती पर राजी।
हिया म कुशला को डाव भला दुःख किस दिन बुझ जी
प्यारा जी जो हुयो तो अच्छो हुयो म्हारो काई जायग°
प्यारा जी हाउ उंडा कुआँ की नेज खेची मर जाउंगी°
कसी करवट लई न सुतो रात भर नींद नहीं आई रे
दोनों लुगाई मिलकर जवान की सेज बिछा रही रे
चौतरफा से पकड़ा की अब ज्वान गयो रे घबराई
दिन काटना बहुत सा भाई अब रयो चिवड़ाई
उबी नंदी को तिरणु पार हाऊ मरु जहर खाई
प्यारा जी मैं कहूँ सभी को ब्याव किसी ने नहीं करणा°
प्यारा जी ब्याव की जो लालुच करता पड़ता फजीता
ताम्बे का दुलदुला न खोटा कळजुग का पयरा
अरे दौलत के कारण बईण ने सगा भाई मारा जी
पाँच बरस का गया नौकरी न रुपियाँ कमई लाया
बैण घर तो भाई आया सगा माड़ी जाया जी
पाँच रुपैया का कपड़ा लाया न बैण को पिनवाया
किया पाँच पकवान बैण ने भाई जिमवाया जी
आधी रात दरम्यान रांड वा कयती खावीन को
सोया है की जाग्या रे खावीन मारो साला को जी
असल जात छत्री को बेटो कयतो बईयान
तू मारे तो मार पापणी दोष लगे हमको जी
आधीरात अनमोल रांड वा चड़ बैठी छाती
अरे हेड़ा खुटी से खंजर रांड ने मारा भाई को जी
उड़े खून फव्वारा रांड जब करती चतुराई
दिन निकले तो पुलिस आई न तुरंत बंदवाई जी
घुंघट म्याना कपट दिवानी नैना मार क्यो तरसाती।
करार कर के चली कहा जाती जरा मुख नही बतावती॥
नल पनघत पर खडा रे गबरु न चबा रया पानो का बीडा।
जरा मुख से हस दे वो गोरी फिर भरना पानी का घडा
खारीक खोपरा लौगइलाईची न गुड़ खाईगई वा फोकट म्
भंग पिलाकर करु बावरी न
अट्टा हो टट्टा मत कर गोरी न आई जायग म्हारा सट्टा म्।
इश्क बाजी से बच कर रयणा दाणा मंगाई देऊ तोहे नट्टा म्॥
छोटी कामिनी वो मोटी मृगनयनी अजमत दिल मिलाया कर
सुतार हरचंद कहें वो नार तू गड़ म सी मोती लाया कर
पहले रोज की कहूँ रे हकीकत रस्ते हो उपर आया कर
एक हाथ में सोटा सीर पर टोपी रख कर आया कर
दुसरे रोज की कहूँ रे हकीकत पनघट उपर आया कर
एक हाथ में घड़ा बगल में धोती हो जोड़ा लाया कर
तीसरे रोज की कहूँ रे हकीकत दरवाजे पर आया कर
प्रेमी की आवाज सुन कर झट दरवाजा खोला कर
चौथे रोज की कहूँ रे हकीकत पलंग मेरा बिछाया कर
गासीप तकिया नरम बिछोना उसपर मौज उड़ाया कर
पाँचवे रोज की कहूँ रे हकीकत गादी हो तकिया लगाया कर
भरी जवानी का जोबन तेरा प्रेमी से प्रेम लगाया कर
जबरदेव ओंकार मेला लगता है कई पूंनम का
लगे सामने हटड़ी तमाशा देखो रे उस नगरी का
चार खम्ब का देवळ बणाया न उपर कळस सोने का
धवळई ध्वजा उड़ रही नगाड़ा बज रया भोले सम्भु का
आर नर्बदा न पार कावेरी न बिच में हो मंदर भोले का
गरीब लोग तो पार उतरता पैसा लगता राजा का
कौरव दल सगरा आया न मन्दता में मदत करे
भीम अर्जुन दोनों आये न मंदर का मुख फेर दिया
कोड़या क तो कोड़ फुटिगो न हाथ पाव ओका गळई गया
अब का जमाना ऐसा रे आया बाप को बेटा मार रया
श्रावण सेरा करी गयो सखी म्हारी छोटी कसरावद उपर
खड़ी खड़ी अबला चीर भींज रही पेरी पीताम्बर जरीदार
छोटी मोटि बूंद को मेवलो बरस झड़िया लग रही चव फेर
सखी चमक उठ बैठ आंगन में गगन गरज रहा सीर उपर
घर चलो की सखीबाई यहाँसे बायर मुझको लगता है डर
बादल गरजे बिजली चमके नंदीया जा रही भर पुर
नंदी रे आर पार दुई गाँव बिच म नंदी रे
वा नंदी रे जाय भरपूर नार कूदी गई रे
एक आस्सी वार का पार भरा रे बजार
- - - - -
तो छोटी कसरावद की छोटी मोटि गलियाँ न राह म मिली गयो दिलभर
पायल बजावती आई आलबेली थारी बिछिया
को पड़ी गयो झनकार
कर घुंघट का पट्ट सावरी न सोहे कानों में हैं बेसर
गँवार गणपत क्या समझेगा मुरख पे पड़ गया घोटाला
वा नार उसे देख रही लोभाणी जी
वो मुरख रया पछताय खाय गिल्खानी
म्हारी नईयाँ लगई दिजो पार रे गोवर धन गिरधारी
मख पोईचई दिजो पईली पार रे
नदीयाँ गहरी नाव पुराणी
आरे आसो नई कोई खेवण हार रे
अद बिच नाव पड़ी मझधार
आरे आसो सूझ नही वार पार
डुबती नाव उबारो कन्हेयाँ
आरे म्हारी बेगा सुणो न पुकार
हाथ जोड़ हम करा बिनमती
आरे आसा तुम करण आधार
मने पियरीयो हैवालो लागरे पिता जी ना जाऊ सासरीयो
सासरा म पिता म्हारी सासू खराब छे
मख मार छे लकड़ी को मार रे पिता जी
सासरा म पिता म्हारी नंदण खराब छे
मख बोल छे आसला मसला रे पिता जी
सासरा न पिता म्हारी देराणी खराब छे
आसो देवर हुयो न नादान रे पिता जी
रंग म करी मक गीली कन्हैया न
भिंजी म्हारा तन की चोली कन्हैया
पाणी लेवा गई हाऊ जमुना को घाट
सखीयन ना थी रे म्हारी संगात
सकड़ी गलीयन म घेरी
सिर पर घड़ा घड़ीयन म्हारा हाथ
बार-बार मार कानो रंग गुलाल
म्हारी सासु नंदन दे गालई
संग लायो कानो ग्वाल और बाळ
सोला सौ गोपी न हुई रे हैराण
आसी झाकी झाकी न देखू थारी वाट हिरजी म्हारा नहीं आया
आसी किनक कहूँ रे मन की बात हिराजी म्हारा नहीं आया
बयणी म्हारी सब सहेलियाँ घरघर भेला हुया हो
आसी गाव छे मंगलाचार
सखी म्हारी सावन की पूर्णिमा नजीक आई हो
असी राखी बांधूंगा किनका हाथ
बयणी म्हारी बन म झुलाव बन की मोरनी हो
बांगो म बठ कोयल नार
बयणी मन म आसाड़ जो महिना की आस बांधी हो
आसो लाग्यो सावण मास
छोरा रंगरेज का रंगई रंगई न घर लाओ राधेबाई जी की चुन्दडीयाँ
चुन्दडीयाँ रे वाला चुन्दडीयाँ
सब सखीयन में राधे जी सईया
अरे नन्दलाल ने पकड़ी मोरी बईया
अरे असी तड़क रही सोवन चूड़िया
या चुन्दड मोरे मन भाई
सभा मंडप में घटा छाई
कड़ कड़ चमके बिजलियाँ
मोर मुकुट की शोभा न्यारी
पेरी पीतांबर जरी दारी
थारा चरण कमल की बलिहारी
नरस्यानुस्वामी न अन्तर्यामी
अरे वो असी रुडा से रास रमाई
चोर न चोरी कर सके न जुगल न चुगली खाय
सिंगा जी के राज में सिंह चराए गाय
फल टूटे जल में गीरे खीज मिटे नहीं प्यास
सुख तजे गोविंद भजे अंत ही नरक निवास
सिंगा क्या कुँए का बैठणा न फुटली ठीकरी हाथ
जा बैठो दरियाव में तो मोती बांधो गाठ
गुरु जी को प्रणाम करूं पल में कई कई बार
कौवा से हंसा किये करत न लागी वार
संझा सुमरण आरती भजन भरोसे दास
मनसा वाचा कर्मणा ना रहे जम की त्रास
राम नाम निज मंत्र है , रटत प्रीति लगाय
मंगल पर धीरज धरे , कोटि विघ्न टल जाय
श्रवण अपणा मात पीता क लई तीरथ को जाता रे
मात पीता को त्रासा लागी, अरे वो पाणी लेण क जाय
राजा दशरथ न बाण चड़ाया बैठ्या सरवरी पाळा रे
जळ म तुमड़ी डूबवण लागी अरे उन खैची मारीयो रे बाण
श्रवण की आवाज सुणी न आया ओका पासा रे
देखि न मन घबराई गयो रे, अरे तुन काई क मारीयो बाण
राजा दशरथ तुम सुणी लेवो रे तुमक देंवा श्रापा रे
लाल बिरो म्हारो तड़फ रयो है, अरे म्हारा मन म लगई आग
एक बूंद की रचना सारी, गया बूंद बहु तेरा रे
गया बूंद की खोजन कर ले, रया बूंद यूँ रोया रे मूरख
माता कहती पुत्र हमारा पुत्र कहे मेरी माता रे
मेरी मेरी करे बहु तेरी, संग कछु नहीं लाया रे मूरख
क्या करे सीपन का मोती लाखन हीरा खोया
साच कहु तो कोई नहीं माने जनम का नहीं साथी रे मूरख
अनहद ओढ़नी रे सतगुरु भली रंगाई दिनी ओहम ताना जुगत करी राखो सोहंग ने रँगवाई रे पाँच पच्चीस पल्ला भरीया यही भात की बुनवाई गगन मण्डल मे देखा तमासा करम कड़ाई चड़ाई रे काम क्रोध की करी लाकड़ी जतन करी न जलाई काशीजी म ओढ़नी बनाई त्रिवेणी म तपाई रे ब्रह्मा जल म लई झकोला धरम धणी न धुलाई असल भात की असल ओढ़नी बहुतों ने रंगवाई रे भादुदास जा परखे ओढ़नी सतगुरु जी ने उढ़ाई
संजा सुमरण आरती, भजन भरोसे दास।
मनसा वाचा कर्मणा, जब तक घट में स्वांस
सिंगा क्या कुवे का बैठणा, फूटा ठीकरा हाथ।
जा बैठो दरियाव पे, तो मोती बांधो गाठ।
जगमत जोत झलक रया मोती, पारीब्रह्म निरंजन आरती
धरती आकाश उमड़ रया बादल, पाँच नाम अमृत का मोती
काहेन को दिवलो न काहेन की बाती, काहेन जोत जले दिनराती
तन को रे दिवलो न मन के री बाती, सोहंग जोत जले दिनराती
कंचन थाल कपूर के री बाती, घीव की होम जले दिनराती
कहे मनरंगजोड़ की या बाती, या आरती तीनों लोक मे रमती
जसोमति आरती संजो हो नरहरि गोकुल म आया
अडिंग धडिंग नगाड़ा बाजे, हरी का नीसाण साजे
कंसराय थारी छात्ती धड़के, थारो बैरी गोकुल गाँव
संत निसाणी करी गया, कोई आया म्हारा दास
खम्ब नहीं पैड़ी नहीं निर्गुण निराधार
आवागमन को गम नहीं, ऐसो ब्रह्म विचार
द्रष्टि आवे जाको द्रष्ट हैं, विषिया को वास
जैसे चंदा की चांदनी, ऐसो मेरो नाथ
धन जीवन कोपर हरा, छोड़ो माया की आस
लोभ लालुच क मती मानो, छुटे गर्भ निवास
माया मद्य में हद्द हैं, खड़ी सिद्धों की पाल
थाव अथाव कछु नहीं, देखो खड़ा आकाश
पन्थ बिना नही चलना, ऐसो अगम अगाध
धरा अम्बर दोई थिर करो, किया मनरंग वास
साबूत रखणा ध्यान धरम पर डट जाणा
डटे जाणा रे महाराज धरम पर डट जाणा
डटे धरम पर हरिशचंद राजा
काशी मे बिक गए तिनो प्राणी
जीन बेची दिया रे परिवार मिल्या रे भगवान
डटे धरम पर मोहरध्वज राजा
रतन कुवर पर आरा चलाया
वो बिकी गयो रे संसार मिल्या रे भगवान
डटी धरम पर मीरा बाई
विष अमृत चरणा मृत है
जीन जहर पियो रे तत्काल मिल्या रे भगवान
डटे धरम पर स्वामी सिंगा जी
असा हाथ से नौबत बाजे
जिन जिवती ली रे संमाधी गया रे प्रभू धाम, मिल्या रे भगवान
पांडव चल्या रे बनवास रईयत सब झुखा हो ठाड़ मं ठाड़
बड़ी फजल प्रभात उठी न लेवा धरम को नाम
पंलग पर सी बठा हुई न, आरे वो धरीया जमीन पर पाव
रईयत रईयत बेटा बेटी हमसे रयो नी जाय
तुम पांडव बनवास सिधारो, आरे हम रवाँ कोण का पास
हतनापुर की रईयत बोली सुणो कोतमा माय
काकड़ पर थारी मड़ी बणावाँ , आरे तुम वहा कटो न बनवास
राजा अर्जून तो ऐसा बोल्या सुणो हमारी बात
बारह बारस एकछण म काटा, आरे हम आवा तुम्हारा पास
राजा भीम तो ऐसा बोल्या सुणो हमारी बात
गदा उठई न कांधा धरिया, आरे तुम चलो मुलाजा तोड़
राजा धरम तो ऐसा बोल्या सुणो सभा चीत बात
गुरू मनरंग और स्वामी गावलीयो, आरे हम रवा तुम्हारा पास
हम परदेशी पावणां,
दो दिन का मेजवान
आखीर चलना अंत को
नीरगुण घर जांणा
नांद से बिंद जमाईया
जैसे कुंभ रे काचा
काचा कुंभ जळ ना रहे
एक दिन होयगा विनाशा
खाया पिया सो आपणां,
दिया लिया सो लाभ
एक दिन अचरज होयगा
उठ कर लागो गे वाट
ब्रह्मगीर ब्रह्म ध्यान में,
ब्रह्मा ही लखाया
ब्रह्मा ब्रह्मा मिसरीत भये
करी ब्रह्म की सेवा
गुरू रे गोवींद दिजो रे बताय
गुरूजी तुम्हारा पय्याँ लागू रे
गुरू रे घट मऽ ईधारो बाहेर सुज नही रे
गुरू म्हारो ज्ञान को दिपक जलाओ
गुरू रे जन्म जन्म को हाऊ तो सोई रयो रे
गुरू मखऽ अवसर मऽ दिजो रे जगाय
गुरू रे भव सागर म जळ उंडो घणो रे
गुरू रे हमक उतारो पयली पार
गुरू रे दास दल्लूजा की बिनती रे
गुरू रे राखो तो चरण आधार
काया नही रे सुहाणी भजन बिन
बिना लोण से दाल आलोणी
गर्भवास म्हारी भक्ति क भूली न, बाहर हूई न भूलाणी
मोह माया म नर लिपट गयो, सोयो तो भूमि बिराणी
हाड़ मास को बणीयो रे पिंजरो, उपर चम लिपटाणी
हाथ पाव मुख मस्तक धरीयाँ, आन उत्तम दीरे निसाणी
भाई बंधु और कुंटूंब कबिला, इनका ही सच्चा जाय
राम नाम की कदर नी जाणी, बैठे जेठ जैठाणी
लख चैरासी भटकी न आयो, याही म भूल भूलाणी
कहे गरु सिंगा सूणो भाई साधू, थारी काल करग धूल धाणी
जेट मास गर्मी को रे महीनों प्रेम प्यास लग जावे
प्रेम प्यास लग जावे गुराजी मन्हे याद तमारी आवे
आसाड़ महिना की आसा जो लागी इंदर चड़ घर आवे
सतगुरु म्हारा समंद समाना धरती धाप घर आवे
सावन में साहेब घर आवे सखिया रे मंगल गावे
पांच सखी मिल मंगल गावे पिया मंगन हुई जावे
भादव हो भक्ति को रे महीनों गुरु बिन जिव दुःख पावे
कहे कबीर सा सुणो भाई साधो चरणों में शीश नमावे
ऐसी भक्ति साधू मत किजीये, जामे होय रे हानी
अन्त काल जम मारसे, गल दई देग फासी
जो मंजारी ने तप कियो, खोटा व्रत लिना
घर से दीपक डाल के, आरे मूसाग्रह लिना
जो हो लास पिघल चली, पावक के आगे
ब्रज होय वहा को अंग
देखत का बग उजला, मन मयला भाई
आख मिची ऋषी जप करे, मछली घट खाई
ग्रह ने गज को घेरिया, आरे कुंजरं दुस पाया
जब हरी का हो नाम लिया, आरे तुरंत ताल छुड़ाया