Thursday, 24 April 2014

औघड़ पी रे पी रे गुरु ज्ञान बड़ा गम्भीर

औघड़ पी रे पी रे गुरु ज्ञान बड़ा गम्भीरे
आप ही आप मिले जहा जाई, पूछे पूछी अजमत पाई
दोनों का मेल हुआ दरश दीदारे
वन में बैठे दोनों मूर्ति, अनहत बात ज्ञान की झड़ती
रम रही सावरी मूरत सुरत लग धीरे
भागी सिंगा हम दर्शन पाई, सिंगा हमको त्रसा लगी
जल बिन तड़पे प्राण उतर गया नुरे
वन खंड झाड़ी अखंड उजाड़ी, यहा कहा पाणी पाओ साईं
ऋतू उन्ढाळा तपे धुप अघोरे
नैन खोल जब देखन लगा, पर्वत सरिका आगे डोले साईं
यहा पधारो आया है बड़ी पुरे
सदानंद के प्रेम उजागर, संग ध्यान का भरिया सागर
दिन सूखे नदी बहाया नीरे
भागी सिंगा ने दर्शन पाया, साईं बाबा हमको खुद्या लागी
अन्न बिना तलफत प्राण धरत नही धीरे
खेचरी रहती कानों में मुद्रा रहती, एक दिन बैठे ध्यान में
जिन्ने धरा भिखारिनाथ नाम ऊपजा हीरे
बंधन खोल किया हैं न्यारा, साई ने जान बकसा हैं सारा
मुर्दा दिया जीवाय खिलादई गयब से खीरे
औघड़ औघड़ जो नर कहिये नांगा भूखा कबहू ना रहिये
तुम सदा रहो दयाल राख मन धीरे
श्यामगिर वो दल्लू सिपाही, जिन्ने घोड़ा छोड़ मजीद दौड़ाई
अचरज भई बादशाही थकत अम्बिरे
काजी मुल्ला ख कर जोड़े, साधू महर करो हम परे
हिन्दू का देव सच्चा लाल पशु जोरे
दल्लू पतित जब शरण आये, अपनी भक्ति का फल पाए
जिन्ने लिया पदारथ हाथ बहु जल तिरे

निशान बाका कोई जबर देव सिंगा का

निशान बाका कोई जबर देव सिंगा का
तीन खाप अतलस अमरुखा
पटका मोतन जरकस लर का
देश देश का हरिजन आया
देखो हाट जत्रा का
चार खम्ब का देवन बनाया
उपर ध्वजा फैराना
कहें जण दल्लू सुणो भाई साधो
चरणों में चित रहता

Tuesday, 15 April 2014

कहो तो जावाँ गोंडवाना भूप तुम

कहो तो जावाँ गोंडवाना भूप तुम कहो तो जाँवा गोंडवाना
अन मिली आवाँ अपणा बीराणा भूप तुम कहो तो जाँवा गोंडवाना

ब्याव सगाई मंगला हो चारा निवता भेज्या ठिकाणा
जात गंगा का दर्शन पावाँ दस दिन का मेजवाणा

एक पखवाड़ा की म्यादी जो दीजो यहा हैं सवार दीवाना
जो कोई कागज होय हो जरूरी लिखी भेजो बेगा परवाणा

हुया तुरी पर असवार सुरमा बन क किया रे पयाना
जब तुरी को शब्द सुणायो हे कोई भूप घबराणा

उतरया तुरी से भूमि पग दीनो राजा क कियो रे परणामा
कहो तो तुरी की सूद कृ हो चाकर सब मुसकाना

वरी तुरी पर झीं आप नचायो राजा का दिल हरसाना
गोविन्द्गीर जी सदा शरण में धन धन रे मरदाना

स्वामी हँसे बहुरंगी- बहुरंगी

स्वामी हँसे बहुरंगी- बहुरंगी जिन्ने जन्म लियो ऋषि श्रंगी

उत्तर तट मुख जावो गगन में आसन पलक लगाओ
सोहम ब्रह्मा को सुमिरन करी न, जाकी नही निसंगी

बैठी सुहागेण सनमुख थाड़ी कर्म कपाट खुलाये
दिव्य द्रष्टि चड़ी गयो रे सुरग में, काल देखी रह्यो जंगी

मिले ब्रह्मा में ब्रह्म मिलाए, संत की माया बिहंगी
स्वामी सतगुरु बिन अगले, गुरु ब्रह्मगिर मनरंगी

कहे गरु सिंगा न सुणो भाई साधो ईनी माया क समझो लफंगी

दुल्लव बण्या रे निर्वाण सिंगाजी बाबा

दुल्लव बण्या रे निर्वाण सिंगाजी बाबा
निर्गुण के घर भही रे सगाई, ब्याही सतवंती नार
चार खम्ब को मण्डप बणायो, उपर बांधी बंधन वार
मौर बँधायो थारी बाई ने बँधायी, मोतीला झलके द्वार
चौरी में बैठे चौरासी छुड़ाई, दायजो बैकुंठ माह
कहें जण दल्लू सुणो भाई साधो, संतो ने गायो मंगलाचार

असवार कहा से आयो आरे जिन खोप्या

असवार कहा से आयो आरे जिन खोप्या तुरी क नचायो
काया झिरीण कपे शरीर कबहू ने देख्यो एसो वीर
आरे कोई सतवंती को जायो असवार कहा से आयो
कोन नगर रयणा रे भाई चल तोहे रोजी देऊ सवाई
तोहे देख दिल हरसायो असवार कहा से आयो
हरसूद नगर रहणो हमरो जग में सिंगा नाम मेरो
मैं यदुवंशी में जयो असवार कहा से आयो
मुख मेलो तुम मोहे करावो वचन देवो तो संग में आवो
स्वामी मन मुसकायो असवार कहा से आयो
भामगड़ में भुम्यो विराजे नमक उनको खाऊ महाराजे
हाउ आज तलक सुख पायो असवार कहा से आयो
वरी तुरी पर जीन आप नचायो राजा का दुल हरसाना
गोविन्दगीर जी सदा शरण में धन धन रे मर्दाना

तुम देखो दरियाव की लहरी

तुम देखो दरियाव की लहरी-लहरी जहाँ सतगुरु बैठे हेरी
इस दरियाव में बाजा बाजे आठों पहरी,
ताल पखावज बजे झंजरी, 
वहा बंसी बजी रही गहरी
इस दरियाव में साथ समंदर बिच गयब की डेरी, 
डेरी अंदर अलख बिराजे,
वहाँ सुरता लगी रही मेरी
बिना पेड़ का वृक्ष कहिये डाल फुल नहीं बेरी, 
रूप रेख वाके कुछ भी नहीं हैं, 
वो छाय रही चहुँ फेरी
अगम अगोचर निर्भय पद पाया क्या कहू भाई मेरी, 
कहे जण सिंगा सुनो भाई साधो, 
वहाँ निर्भय माला फेरी

Sunday, 6 April 2014

माता रनु देवी आया मेजवान

माता रनु देवी आया मेजवान देवा झालरियो
हा तुम चलो म्हारी गवरा बाई साथ देवा झालरियो

मस्त महीनों चैत को आयो,
चौ दिशा म आनन्द छायो
हा ओ सारी सखिया सजाव सिन्गार देवा झालरियो

हो चैत वद्धि ग्यारस की मुठ धरावा,
तिथि तीजी तीज को पाठ बिठावा
हा रे घर घर होय मंगलाचार देवा झालरियो

सब सखियन मिले खेले पाती,
अपने मन में खोब मुस्काती
हा रे म्हारी रनुबाई की महिमा अपार देवा झालरियो

धाणी घुघड़ा को तम्बुल बाट,
माता क पोइचावण चल्या जब घाट
हा रे राजा धणीयर घोड़ी असवार देवा झालरियो

Friday, 14 March 2014

सब संतन का प्यारा केशवरा बंजारा

सब संतन का प्यारा केशवरा बंजारा बंजारा
बंजारा रे महाराज केशवरा बंजारा बंजारा
डट खजीना बादळ भर भर, कबीर के घर लाये
कबीरा की माता पुछण लागी
= आरे भाई कोण दिशा से आया
वही देश हमारा कहीये अमर लोक से आये
हमारे संत पर वीपत पड़ी है
= आरे भाई बादळ भर भर लाया
हाथ लकड़ीयाँ पाव पकड़ीयाँ, बन बन ढुंढन चाले
हमारे संत को ढुंढ लिया है
= आसा मन का मन मुरझाया
कहे कमाल कहो पीता जी, गुवाल कहा से आये
कहे कबीर सुणो भाई साधू
= आसा मस्तक धर धर लाया

म्हारा गरभ क्यो आयो हटिला बाळा

म्हारा गरभ क्यो आयो हटिला बाळा
माता को दिल भरमायो हटिला बाळा
पईला महिना की आस लगी थी सुभ दर्शन दिखलायो
शिव को शिवाळ्यो न देव को देवाळ्यो = अम्बीका को दर्शन पायो
दूसरा महीना की आस लगी थी बाग बगीया लगायो
दुध दही की कावड़ लायो = रामानंदी तिलक लगायो
कृष्णा गऊवा दूध पिलायो बहुत ही लाड़ लड़ायो
दास दासी न गोद खेलायो = नही धरणी पग दियो

अभीमन्यू म दुःख सळ, सुभद्रा इलवल

अभीमन्यू म दुःख सळ, सुभद्रा इलवल इलवल
इलवल रे महाराज सुभद्रा इलवल इलवल
घोड़ा छोड़ीया रथ मऽ जोत्याँ, बैठी सुभद्रा माय हो
दुर्ग का मारग भूली गया रे
= आरे आसी लगी गई ठंडी लाय
हुयो भमसारो चिड़ीयाँ बोली, डावा बोल्याँ काग हो
दातुन की थारी बखत हुई रे
= आरे वो उठी न भोजन मांग
जिरीदार तो वाको पेरीयाँ, माथ कुसूमल पाग हो
करण फुल थारा हाली रया रे = तु सुतो सोनेरी बाग
नकुल सहदेव तो देवर हमारा, धरम मोटा जेट हो
अर्जुन जी तो पती हमारा=आरे भाई उनकी छे हाऊ नार

मवरीयो मवरीयो गुरू सिंगाजी

मवरीयो मवरीयो गुरू सिंगाजी का दरबार
हरियाळो आम्बो मवरीयो रे
भाई रे कीन लगायाँ आम्बा आमळी रे
भाई रे कीन लगायाँ डाळम डाळ
भाई रे सिंगा जी लगाव आम्बा आमली रे
भाई रे लिम्बा जी लगाव डाळम डाळ
भाई रे कीन खोदायाँ कुआ बावड़ी रे
भाई रे कुण बंधाव सरवरी पाळ
भाई रे लिम्बा जी  कुआ बावड़ी रे
भाई रे सिंगा जी बंधाव सरवरी पाळ
भाई रे छोटो सो अम्बो फळ अती घणो रे
आसो कयरी को अंत नी पार
भाई रे दास दल्लू न जा की बिनती रे
गुरू मख राखो ते चरण आधार

सुणी लऽ भजन की बात रे अर्जून

सुणी लऽ भजन की बात रे अर्जून
पिपळो काटि न मंडप छायो, कन्या को धन खावे
सात जलम वोका कोड़ीयाँ का आवसे = कुण मिटाव वोकी कोड़ रे अर्जून
बलेण न खईची न दिवळो जलावे, धारण पोईचीया हाथ
सात जलम वोका बांझ का आवसे = कहा से लावे नानो बाल रे अर्जून
हाल जो चोरे न मोर जो मारे, तोड़े सरवरी पाल
बाल पणा म वोकी माता मरसे = जवानी म मर वोकी नार रे अर्जून
वाट मऽ कोई काटा बिचावे, संत से बैर हिसावे
सात जलम वोका अंधा का आवसे = कुण बताव वोक वाट रे अर्जून

जीन घर भक्ति नी होय वो

जीन घर भक्ति नी होय वो नर कसो सोव से
म्हेर म्हेर महेकाय नींद कसी आवसे
गण पर खड़ीयाँ गणराज पोल पर आवीयाँ
जहाँ रे खड़ीयाँ छबी दार चोर कसा आवीयाँ
आरे म्हारी सांसूजी सोया अटरीयाँ नणद पटसाळ मऽ
म्हारा पियू जी सोया रंग महेल मऽ कूण जगावीयाँ
उठो उठो हो सुहागेण नणंद पीया न जगावीयाँ
महेल मऽ घुसीयाँ चार चोर कर बल जोरीयाँ
रंग मऽ रंग सुरंग लाल रंग पातरी
मोतीयन चोमू थारी चोम पुराव म्हारी आरती
कहेत कबीर धर्म राज सुणो न चित लावीयाँ
वो जन उतरे पार जो राम गुण गावीयाँ

मन मेरा रे किस विधी पार उतरणा रे

मन मेरा रे किस विधी पार उतरणा रे
कोट कोट कंगुरा जड़ीयाँ उपर नाचे मोर
मोर बिचारा क्या करे रे घर का मन चोर
दरिया बिच मे नाव चले और उसमे बैठे लोग
लोग बिचारा क्या के रे पाप भरा घनघोर
घाघर उपर तो झारी बिराजे उसमे भरिया नीर
मेघ माला बरसन लाग्या भिजे कुशुमल चीर

झूलणो बादीयो म्हारी माता गवूर दरबार

झूलणो बादीयो म्हारी माता गवूर दरबार
सिंगाजी झूलणो झूली रया रे
भाई रे कायन केरो थारो पालणो रे
बाबा रे कायन लाग्याँ लम्बा डोर
बाबा रे अगर चंदन को थारो पालणो रे
बाबा रे रेशम लाग्याँ लंबा डोर
बाब रे कायन केरा  खंबा रोपीयाँ रे
बाब रे कायन राळीयाँ आड़ा पाट
बाबा रे चंदा सुरज ना खंबा रोपीयाँ रे
बाब रे बादळ रारीयाँ आड़ा पाट
बाब रे दल्लू हो पतीलजा की बिनती रे
बाब रे राखो ते चरण अधार

माता हो मानो हमारी तुम या बात

माता हो मानो हमारी तुम या बात
खजुरी आपण छोड़ी देवा हो
आसा दुश्मन करी रया घात
माता हो घाट को धोबी हमकऽ मूट मार हो
आसो यो दुखः सयो नही जाय
पती रे बारह बरस को पुण्य जायीयो रे
आसो पायो तो गोदी सींगा समरथ बाल
माता पुन्याती पून्यात करी न हारी गयो हो
आपणो साहेब श्री करतार
भाई मुंदी परगणो नगर पिपळीयो हो
आसो वहा जाई न करा मुकाम

बाळा रे दुर खेलण मती जावो

बाळा रे दुर खेलण मती जावो सिंगाजी म्हारा लाड़ीला रे
आसा बसी रया दूश्मन लोग
बाबा रे पिंजर घड़ाई देवू घर माही रे
आसा छुम छुम चलो आंगण माय
सिंगा रे घर कुवा न घर बावड़ी रे
आसा नित का करो न अस्नान
सिंगा रे घर गाय न घर भईसी न रे
आसा माखण खावो दिन रात

Thursday, 13 March 2014

बाबा रे सिंगा न लियो अवतार

बाबा रे सिंगा न लियो अवतार खजूरी मऽ आया पावणा
बाबा रे इन्द्र को झुलणो पावीया हो
आसा आया छे भिमा जी दरबार
बाबा रे अगर चन्न को झुलणो पालणो रे
आसा रेशम लाघ्याँ लंबा डोर
बाबा रे पालणा मऽ बाळो रुदन करी रयो रे
जेका मुख म छे दुध की धार
बाबा रे दल्लू हो पतीलजा की बिनती रे
गुरू मख राखो छे चरण अधार

खुब विचारी सल्ला सिंगाजी आकेला

खुब विचारी सल्ला सिंगाजी आकेला
आकेला रे महाराज सिंगाजी आकेला
पाँच हथियार कस के बांधे,आरे जो लसकर खोजन चला
सयाणी घोड़ी पर झीन कसी न,आरे वो भामगड़ से चला
पाँच फेरा परकम्मा दीना,आरे वो गुरू मनरंग का चेला
कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू, आरे वो गुरू की गोद  में झुला

गुरू मै संसार को सुख भरमाई

गुरू मै संसार को सुख भरमाई, नाहक भरमणा खाई
किनका लड़का न किनका भरतार,केतराक दिनकी सगाई
कौन की कन्या बहिन भान्जी = आरे भाई कौन काहे का जमाई
माता पिता ने जलम दियो है, कर्म संगाती नही कोई
कर्म भाग फल पाईया= आरे भाई जिनने रेखा है बतलाई
यो संसार ओस का मोती, पवन लगे धुल जाई
जब लग काया तब लग माया = आरे भाई अबला ढुळ मुळ रोई
तुम ही मायको क्यो तुम ही सासरो,तुम ही समरथ भाई
तुम ही माता पिता गुरू देवा=आरेभाई दिनो बृह्म लखाई
नित का आणा नित का जाणा, गर्भवास दुःख होई
कहेजण सिंगा सुणोभाई साधू=आरे तुम समझो सोनाबाई

देश लग न मख बुरो राणाजी थारो

देश लग न मख बुरो राणाजी थारो
थारा जो देश मऽ दो जण कपटी
आसो गुरू मिलीयो न रंग रुड़ो
सायो नही पेरू हाऊ साड़ी नही पेरू
नही पेरू बाह भर चुड़ो
पटिया नी पाड़ु हाऊ हिंगुल नी रालू
नही बांदू सिर पर जुड़ो
कहे जण दल्लू सुणो भाई साधू

सिता राम लक्ष्मण भजो प्यारा

सिता राम लक्ष्मण भजो प्यारा
जलम नही आवे बारंबारा
माता पिता ने जलम दियो है
आरे भाई करम लिख्यो हो करतारा
यह संसार रयन को सपनो
आरे नेकी का सौदा करो प्यारा
सागर तो दरियाव भरीयो है
आरे भाई संत नाव चलावो प्यारा
कहे जण दल्लू सुणो भाई साधू
आरे भाई गुरू के चरणो से लगो प्यारा

भिलणी रड़ रे बन का माय

भिलणी रड़ रे बन का माय
आरे इना बन मऽ लगी गई लाय
पड़ेल हुती तो लेख वाचती
आरे यो कर्म वाच्यो नही जाय
कुवारी हुती तो वर घणा रे
आरे मख लगी गया हाल्दी का दाग
कुओ हुतो तो हाऊ थाग लावती
आरे यो सागर थाग्यो नही जाय
कहे कबिरा सुणो भाई साधू
आरे थारा चरणो मे शीश नमाय

अवगुण बहुत कियो, गुरूजी मऽन

अवगुण बहुत कियो, गुरूजी मऽन
नित उठी पाँय जमीनपर धरियो,कईएक जीव नक मारयो
नव मास माता गरभ मे राख्यो = बहुत ही दुःख दुखायो
वाट चलती तिरीया हो निरखी, मंसा मऽ पाप कियो
कहे जण सिंगा सुणोभाई साधू=आरे गुरू का चरण छियो

फल नजीक नजर नही आव

फल नजीक नजर नही आवे, सतगुरू बीन कोण बतावे
बिना पात को सरवर कहिए, लहेर उलट कर आवे
बिना चोच को हंसा कहिए = मोती चुग चुग खावे
बिना मुल को वृक्ष कहिए, डाल नवी जावे
बिना पंख को हंसा कहिए = आकास उड़ी उड़ी जावे
बिना पत्र को बेल कहिए, छाँव नजर नही आवे
बिना फुल का फल लागा = साधू जण कोई खावे
उलट ज्ञान कोई बिरला बुझे, और न बुझण पावे
कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू = चौरासी छुट जावे

मार्.या हो बाण कसी म्हारा सतगुरू

मार्.या हो बाण कसी म्हारा सतगुरू
अन्न नही भावे नींद नही आवे, तन पर विपत कसी
तन का घाव नजर नही आवे, कहाँ लगाऊ दवा घसी
छुरी नही मारी कटारी नही मारी,शबद की सब फल घसी
कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू, मनरंग बाण गया धसी

गुरू म्हारो अहिलो जनम गयो

गुरू म्हारो अहिलो जनम गयो
आरे मऽन नही मुख राम कयो
एक पण खोयो, दुजो पण खोयो, तीजा मऽ शरण आयो
बन माही गाऊ भैस चराई = जंगल वास कियो
गुरू बृह्मा गुरू विष्णु समाना, नैनन नीर बहायो
नैन खोल गुरू निहारे = गद गद कंठ भयो
गोद उठाय मनरंगा, मस्तक हाथ दियो
कहे जण सिंगा गुरू की महिमा = भव जल पार कियो


(ग्राम खजुरी म बाबा भीमाजी कृष्णा म्हारी बईण भाई लिम्बाजी
गौलई वंश हुयो
गाय भैसी की महिमा छे भारी माता गौर बाई माता हमारी
उनको दूध पियो
पाँच बरस म छोड़ी खजुरी लखाराव घर करी मजूरी
हरसूद वास कियो
पूरब जन्म को पूण्य हमारो आज धन्य हुयो जन्म हमारो
सिंगाजी चरण रयो)

सतगुरू हम पर दया करो,

सतगुरू हम पर दया करो, विधी देवो बताई
जीव बृह्मा कैसा हुआ = कासो पुछो जाई
पवन डोर जीव संचरो, जल सिरजी काया
जा घर से जीव आईयाँ = तुम हमको लखाया
दक्षिण पश्चिम उत्तरा, पुरब फिरी आया
दिव्य द्रष्टि से देख्या नही = जासे भरमाया
दस दरवाजा प्रगट है, चारो कुपल लगाया
दो दरवाजा खुल गया = हंसा सुख पाया
सतगुरू केवल संग ले, जाने थाह बताया
कुवा को जल सागर मिल्यो = जब मारग पाया
कहे सिंगा जी साई पातळो, जाके रूप न रेखा
आवत जात परवा नही = भारी अचज देखा

सतगुरू सबदा हेरी,

सतगुरू सबदा हेरी, तुम देखी दरियाव की लहरी
इस दरियाव मे बाजा बाजे, बाजे आठो पहरी
ताल पखावत बजे झांझरी = जहाँ बंशी बाजे गहरी
इस दरीयाव मे सात समुन्दर, बीज गयब की डेरी
डेरी अंदर अलख बीराजे = वहाँ सुरता लगी रही मोरी
बिना पींड का बीरछ कहिए, डाल गई चहुँ फेरी
पान फुल वाको कछु नही देख्यो=जहाँ छाया रहती गहरी
अगम अगोचर अनुभव ठाड़ी, अब क्या पुछे मेरी
कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू = निर्भय माला फेरी

मारग कौन बताये गुरूजी बिन

मारग कौन बताये गुरूजी बिन
दुर को जाना रहे अंहकारी, मारग नजर न आये
सिधे मारग पर पाँव धरयो = मारग वोही बताये
नदियाँ गहरी जल डुबाये, नीर बहता जाये
गुरू कृपा से पकड़ बुनाये = वोही पार लगाये
मेरा मेरा मत कर, ईस बस्ती में रहन न पाये
कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू = राम नाम गुण गाये

गुरू मै तो तुम्हारो दास,

गुरू मै तो तुम्हारो दास, तुम राखो चरण का पास
सबहि तज शरणा गत आयो, करो ज्ञान प्रकाश
खोलो किवाड़ी उसी जगह की = जहाँ नही मोह को वास
जिस जगह सुरज नही तारा, नही पवन प्रकाश
धुप छाव जहा कछुनही लागे=जहाँ नही भूख और प्यास
झिरमिर झिरमिर मेवलो बरसे, आनंद को जहाँ वास
निज रुप का दर्शन पावाँ = जहाँ बृह्मा जोत प्रकाश
इतनी किरपा करो गुरू जी, ताबेदार हूँ दास
कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू=मोहे पुरण भयो विश्वास

अबको जलम सुधारो गुरू जी

अबको जलम सुधारो गुरू जी म्हारो
नही भूलू जस थारो गुरू जी म्हारो
गुरू बीन सहाय करे कोण जीव की, तीरथ करो रे हजारो
पति बिन सोभा क्या तिरीया की = क्या विधवा को सिंगारो
घड़ी दुई घड़ी करू हाऊ बिनती, बेगि ते सुणो हो पुकारो
आप गुरू जी मेरे पर उपकारी = अवगुण चित न धारो
गुरू बिन ज्ञान ध्यान सब फोकट, फोकट नेम हजारो
बैकुंठ से सब पछा फिरी आया = सुखदेव नारद प्यारो
राम मिलन की राह बताओ, ना मेरी मन मेरी
गुरू सिंगा को दर्शन दिजो = शिर पर पंजो थारो

सदा शरण सुख पाऊ

सदा शरण सुख पाऊ गुरूजी हाऊ
बहुरी न जल आऊँ गुरूजी हाऊ
निंद्राआहार तज्यो म्हारा सामरथ,मुरती म सुरती मिलाऊ
रेन दिवस सौ इक्कीस हजार = निरफल एक नी कोऊँ
काम क्रोध मोह लोभ पुराणा, इनकी नीव बहाऊ
माया की बेड़ी रे तोड़ो म्हारा सामरथ = यो मुख महिमा गाऊँ
तज्यो परिवार न छोड़ी चाकरी, अबतो दास कहाऊ
जसी पपैयाँ अखंड धुन मांड = ऐसो सबद सुणाऊँ
करूणा से नयना भर्या म्हारा सामरथ, लटी लटी शीश नमाऊँ
कहे गुरू सिंगा सुणो भाई साधू = बिना देह सी पुजाऊँ

म्हारा गुरू के चरण है गंगा

म्हारा गुरू के चरण है गंगा
आरे कोई नहाई लेवो लूला अपंगा
जोगी हुई न जटा बढ़ाव, बन  बन फिर ऊ नंगा
माल खाई न देह फुलाव, बणी रयाँ लाल सुरंगा
इत सन्यासी उत बैरागी, तीरथ करी रया दंगा
कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू, तुम फिरी रया रे अपंगा

जिन दी दरीयाव मऽ डोर

जिन दी दरीयाव मऽ डोर सतगुरू सुरमा
बाबा सिंगाजी लिम्बाजी दोई सारका
जैसे राम लखन की जोड़
बाबा पयको रे परचो हमन सुणीयो
जिन दूही रे कुँवारी झोट
बाबा होवे सदा वहा भण्डारे
जहाँ बणे हो राम जी की रोट
बाबा चन्दा सूरज सा ऊजला
जामे रती भरी नही खोट
बाबा दल्लू हो पतिलजा की बिनती
गुरू राखो ते चरण की वोट

आई गयो जाण जुगारो भोम्या को

आई गयो जाण जुगारो भोम्या को
जेको शब्द लग बहु प्यारो भोम्या को
कौन राजा का तुम हो सिपाई, काई छे नाम तुम्हारो
साची बात कही दिजो रे सुरा = कौन नगर है तुम्हारो रे
ये तन को श्री कर मने, सरसुद नगर है हमारो
लख राम घर करा हो नौकरी = गुरू मनरंग हमारो रे
हिरसिंग धरसिंग शीश नमावे, नैना खोळो हमारो
कुल देवी को हम शीश नमावा= बिनती कर लश्कर सारो
धन तो नैन आखे हीन रहेना, आखीर मास अंधीयारो
कहे गुरू सिंगा सुणो भाई साधू =यो पहिलो पतियारो रे

मनब तु अमोल बाणी बोल

मनब तु अमोल बाणी बोल
आरे थारो तिन लोक मऽ मोल
ओहम सोहम दो पलवा बणायाँ
आरे भाई निरगुण उत्तर से तोल
तन मन धन का बाट बणायाँ
आरे भाई सुरत मुरत सी तोल
आठ नौ मास गरभ मऽ रयो
आरे भाई कळु मऽ झूट मत बोल
एक कायाँ का दस दरवाजा
आरे भाई इधर उधर मत डोल
भव सागर अथाय भरीयो है
आरे भाई सत का पलवाँ तोल
कहे जण सिंगा सुणो भाई साधू
कहे गुरू सिंगा सुणो भाई साधू
आरे भाई अमर वचन नीत बोल

नरबदा वार बसे ॐकार

नरबदा वार बसे ॐकार
पयड़ी पयड़ी राम बसत है
आरे आसा दर्शन करे नर नार
देवुल का समान नादीयाँ की मुरती
आरे आसी गला मऽ घुघर माल
अस्सी अस्सी कोष की साड़ी लगत है
आरे आसा संत उतर गया पार
कहेत कबीर सुणो भाई साधू
आरे आसा राखो ते चरण आधार

देव बड़े हो दयाल सिंगाजी घर

देव बड़े हो दयाल सिंगाजी घर
सदा कर पिरती पाल सिंगाजी घर
जो म्हारा संत की सेवा करसे
आरे उन घर भेंजा  माया जाल
जो म्हारा संत की निंदा करसे
आरे उन घर भेंजा  माया जाल
ईनी धड़ बोया आम्बा आमली
आरे किन धड़ बोयाँ वासेब जाल
कहे गुरू सिंगा सुणो भाई साधू
आसा राखो ते चरण आधार

मेरे सिर पर सिंगा जबरा

मेरे सिर पर सिंगा जबरा
आरे वो सदा करत रहु मुजरा
जहाँज वान ने तुमको सुमरा
आरे वो डुबी जहाँज लई उबरा
अंतःकरण की तुम ही जाणो
आरे गुरू तुम कारण मे उबरा
झाबूआ देश भादरसिंग राजा
आरे गुरू उसने तुमको सुमरा
देव श्री की मोटी महीमा
आरे वो मेला भरीयाँ गेहरा
कुवार महिना पुरण मासी
आरे वहा मेला भरीयाँ गेहरा
कहे जण दल्लू सुणो भाई साधू
आरे वो गुरू चरण मे रहुगाँ

Tuesday, 11 March 2014

जाका पिया से अमर हो जाय

जाका पिया से अमर हो जाय, राम रस ऐसा रे भाई
आगो आगो दल चले रे, साधू पिछे से हरियाँ  होय
बलिहारी उन रूप की हा =आसो जड़ काटे न फल होय
घर राख्या घर उपरी रे, साधू घर राख्या पटसाळ
ऐसा घर कोई राखीयाँ हो = सिधा अमर लोक को जाय
मिठा मिठा सब कोई पिये रे, साधु कड़वा पिये ना कोई
खाटापिये न दुःख उपजे हो=आसो लिम पिये न सुख होय
ध्रुव पिये रे पहेलाद पिये रेसाधू और पिये न रोहित दास
दास कबिर जाकी बिनती हो= ऐसी ओर पिवन की आस

मन भाया रे आंनद आया

मन भाया रे आंनद आया रे मंगल गाया
गुरू सिंगाजी मीजवान अपणा घर आया
कुवारी गायँ को गोबर बुलायो
घर आंगण लिपवाया रे भाई
ताँबा केरा कलश धरीयाँ
गंगा जल से भरवायाँ रे भाई
मकमुल केरी गादी बिछाई
सिंगाजी को बिठवाया रे भाई
मनु भाई की बिनती सुणजो
चरणो म शीश झुकवायाँ रे भाई

गुरू सिंगा जी आया मेजवान

गुरू सिंगा जी आया मेजवान
भोळई निमाड़ में पावणा
नगर खजूरी म जनम लियो,
बाबा भिमा घर लियो अवतार हो
माता गवूर का पय हो पीयाँ
आसो गवलई घर लियो अवतार हो
निर्धन को धन दई हो रयाँ
आसा गाय भैसी का रखवाळ हो
कुवारी झोट वहा दुई हो रयाँ
थारा गौरस को बड़ो मान हो

आरे गुरू सिंगाजी को नाम

आरे गुरू सिंगाजी को नाम
जहा बणी रही वैकुंठ धाम
निमाड़ भुवाणो बिठ्ठल जी को ठाणो
आरे वो खजुर जलम है भोम
पतेल डोंगरू जात भिलाळो
आरे वो नमी नमी कर परणाम
नगर पीप्ळीयो मुंदी परगणो
आरे वहा संतन को रे विश्राम
कहे जण दल्लू सुणो भाई साधू
आरे वहा अखण्ड जोत मुधाम

फल नजीक नजर नही आव रे

फल नजीक नजर नही आव रे
सतगुरू बिन कोण बताव रे
बिना पालको सरवर कहिये
आरे वो लहेर उल्टी आव रे
बिना चोच का हंशा कहिये
आरे वो मोती चुग चुग खाय रे
बिना फल को वृक्ष कहिये
आरे वो डाल नमी नमी जाय रे
बिना पंख को हंशो कहिये
आरे वो अकाश मऽ उड़ी उड़ी जाय रे
कहे गुरू सींगा सुणो भाई साधू
आरे वो राम नाम गुण गायाँ रे

सतगुरू ने वचन सुनाया

सतगुरू ने वचन सुनाया
सिंगाजी भामगड़ आया
लखा राव से जुवार कीनो
आरे वो तज घोड़ा न घर आया
ढाल तलवार पाँचो हथियार
आरे वो तवा नदी मऽ डुबायाँ
गुरू शब्द हिरदे में लागे
आरे वो और कछु नही भायाँ
जन्म मरण का दुख है भारी
आरे वो गुरू ने ज्ञान बतायाँ
कहे जन दल्लू सुणो भाई साधू
आरे वो गुरू चरणो में आया

भजन है तीन लोक से बड़ा

भजन है तीन लोक से बड़ा
आरे म्हारा सिर पर साहेब खड़ा
धरती माता कुंजर कहियो
आरे वो आकाश संत पर खड़ा
भर भर प्याला दिया सतगुरू ने
आरे वो सोहम सिखर गड़ चड़ा
सींगा स्वामी बड़ा सक्स है
आरे वो ब्रम्हगीर से भीड़ा
कहे जन सींगा सुणो भाई साधू
आरे जिनका अटल झंडा खड़ा

धन धन रे श्रृंगी सुरमा

धन धन रे श्रृंगी सुरमा
बाबा चवर डुलळाया केशवा
बाबा रे कोण पुरूष का बालका
आसि कोण घर लियो अवतार रे
बाबा कोण माता का पय हो पीयाँ
आसो कोण दियो उपदेशा रे
बाबा माता गवूर का पय हो पीयाँ
आसो गुरू मनरंग दियो उपदेश रे
बाबा दल्लू पतिलजा की बिनती रे
गुरू राखो तो चरण अधार रे

आरे जहाँ गई जान तुम्हारी, सिंगाजी

आरे जहाँ गई जान तुम्हारी, सिंगाजी बनवारी
गवळई वंश को जलम तुम्हारो
आरे जहाँ खजुरी की बलीहारी
ढाल तलवार कमर से बांधी
आरे या सुरत चली निवाणी
पयलो परचो दियो मेटावल
आरे जहाँ जीवती गव्वाँ ऊबारी
कहे जण दल्लू सुणो भाई साधू
आरे वो रयो चरण अधारी

आरे सिंगा जी मुरली वाळा

आरे सिंगा जी मुरली वाळा
आरे वो गऊवन का रे रखवाळा
कौन गाँव का रयणा तुम्हारा
आरे भाई कीनका हो तुम बाळा
नगर खजूरी का रयणा हमारा
आरे हम माता गवरा का बाळा
जात हमारी गवळई कईजो
आरे हम गऊवन का रे रखवाळा
कहे जण दल्लू सुणो भाई साधू
आरे वो राम नाम का चाळा

सिंगा गवलई का जाया

सिंगा गवलई का जाया, नगर खजुरी म जन्मीया
रवि के उदय दरम्यान में = सिंगा जनम धराया
माता हो जीनकी गवुर बाई = पिता भिमा जी कहाया
विद्या मे भरपुर था, रण मे रण सुरा
अन धन लक्ष्मी थी भाग में = चले दुध की धारा
उत्तम भुमि खजुरी है, संत जलम हो पाया
भाई रे लिंबा जी की जोड़ में = बईण कृष्णा बधाया
पान फुल की आरती सजी, हिरा मंगल गाया
धन माता गवुरा की कोख है = जिन बाळो हो जाया

मै तो दूवाली बनु तेरा नाथ जी

मै तो दूवाली बनु तेरा नाथ जी
तु साँचा साहेब मेरा नाथ जी
पाँच हथियार जुगत करी बांधो, नव ठाकुर भव तेरा
जम राजा से लेवुगा लडाई = सनमुख लङुँगा अकेला
दवाद मंगा ले कलम मंगाले, पट्टा लिखवा ले घणेरा
अमरापुर की जमीन लीखा ले = बैकुंठ का बसेरा
चुन चुन कणिका महल बनाया, दस दरवाजा गहेरा
काया गड़ की करो रखवाली = लुटने न पावे डेरा
राम नाम की जहाज बना ले, काष्ठ भरियो बहुसारा
कहे जन सिंगा सुणो भाई साधू = मनरंग उताहरण हारा

आरे म्हारा नजरा मोती आया

आरे म्हारा नजरा मोती आया
आरे म्हारा सतगुरु ने बताया
बिना बारीक नजर नही आवे
आरे म्हारा सतगुरु ने बताया
कंकर पत्थर की मत कर आशा
आरे गुरु हिरालाल परखाया
मोर मुकूट शीर छत्र बिराजे
आरे भाई कून्डल झलक बताया
कहे जण दल्लू सुणो भाई साधू
आरे भाई राम नाम गुण गाया

Monday, 17 February 2014

दई से हो हंसा निकल गया

दई से हो हंसा निकल गया,
हंसा रयण नी पाया
पाँच दिन का पैदा हुआ,
घटीन की करी तैयारी
आधी रात का बीच म
लिखी गई हौ लेख
सयसर नाड़ी बहोत्तर कोटा,
जामे रहे एक हंसा
काडी मोडी को थारो पिंजरो
बिना पंख सी जाय
चार वेद बृम्हा के है,
सुणी लेवो रे भाई
अंतर पर्दा खोल के
दुनिया म नाम धराई
गंगा यमुना सरस्वती जामे है जल नीर
दास कबिर जा की बिनती
राखौ चरण आधार

जोगी ढ़ुढ़ण हम गया

जोगी ढ़ुढ़ण हम गया,
कोई न देखयो रे भाई
एक गूरु दुजो बालको,
तीजो मस्त दिवानो
छोटा सा आसण बैठणा
जोगी आया हो नाही
जोगि की झोली जड़ाव की,
हीरा माणीक भरीया
जो मांगे उसे दई देणा
जोगी जमीन आसमाना
आठ कमल नौ बावड़ी,
जीन बाग लगाई
चम्पा चमेली धवळो मोंगरो
जीनकी परमळ फास
पान छाई जोगी रावठी,
फुल सेजा बिछाई
चार दिशा साधु रमी रया
अंग भभुत लगाई

अन्त नी होय कोई आपणा

अन्त नी होय कोई आपणा,
समझी लेवो रे मना भाई
आप निरंजन निरगुणा हारे सगुण तट ठाढा
यही रे माया के फंद में
नर आण लुभाणा
कोट कठिन गड़ चैढ़ना,
दुर है रे पयाला
घड़ियाल बाजत पहेर का
दुर देश को जाणा
कल युग का है रयणाँ,
कोई से भेद नी कहेणा
झिलमील झिलमील देखणा
मुख में शब्द को जपणा
भवसागर को तैर के,
किस विधी पार उतरणा
नाव खड़ी रे केवट नही
अटकी रहयो रे निदाना
माया का भ्रम नही भुलणा,
ठगी जासे दिवाणा
कहेत कबीर धर्मराज से
पहिचाणो ठिकाणाँ

सोंहग बालो हालरो


सोंहग बालो हालरो,
हारे निरमळ थारी जोत
नदी सुक्ता के घाट पर,
बैठे ध्यान लगाई
आवत देखीयो पींजरो
हारे लियो कंठ लगाई
सप्त धातु को पींजरो,
हारे पाठ्याँ तिन सौ साठ
एक कड़ी हो जड़ाँव की
वा पर कवि रचीयो ठाट
आकाश झुलो बाँधियाँ,
हारे लाग्या त्रिगुण डोर
जुगत सी झलणो झुलावजो
हारे झुले मनरंग मोर
नही रे बाला तू सुतो जागतो,
बिन ब्याही को पुत
सदाशीव की शरण म आयो
हारे झल बाँझ को पुत
अणहद घुँघरु बाजियाँ,
अजपा का मेवँ
अष्ट कमल दल खिली रयाँ
हारे जैसे सरवर मेवँ